- संगठन के किसी भी बैठक में न हीं दिख रही हैं, और न ही बैठक में शामिल होने की आ रही है फोटो
- बैठकों में बुलावा नहीं मिलता या कांग्रेस से दूरी बनाना और बीजेपी के नजदीकी आने का प्रयास है जनपद उपाध्यक्ष का?
- क्या उपाध्यक्ष द्वारा चंद कांग्रेसियों को सीढ़ी बनाकर किया गया था स्वार्थ पूरा?
- त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में कांग्रेस पार्टी का समर्थन भी संदेह के घेरे में
- विगत विधानसभा चुनाव में भी पार्टी के प्रति निष्ठा पर उठा था सवालिया निशान…बीजेपी में शामिल होने की सुगबुगाहट शुरू
- कांग्रेस पार्टी से विधायक की दावेदार थी, अब क्या बीजेपी में जाकर जिला पंचायत उपाध्यक्ष की दावेदार बनेंगी…या फिर वहां भी विधायक की दावेदारी पेश करेंगी?
- क्या भाजपा सरकार में जनपद उपाध्यक्ष पति नियमित स्कूल पढ़ाने जाएंगे या फिर कांग्रेस सरकार जैसा हाल रहेगा?

-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर,17 दिसम्बर 2024 (घटती-घटना)। एक शिक्षक अपनी पत्नी के सहारे राजनीति की सीढ़ी चढ़ रहे थे और इस सीढ़ी पर वह चढ़ने का प्रयास तो निचले पायदान से शुरुआत की,लेकिन बहुत तेजी से ऊपर पायदान पर पहुंचने का उनका गलतियों वाला प्रयास उनको भारी पड़ गया। जनपद चुनाव अपनी पत्नी को लड़वाया और फिर उन्हें बैकुंठपुर का जनपद उपाध्यक्ष बनाया। इन सभी प्रक्रिया में उन्होंने कांग्रेस पार्टी का खूब प्रयोग किया। कांग्रेस के विधायक से लेकर कांग्रेस के युवा नेताओं को भी खूब इस्तेमाल किया। उसके बाद वह चुनाव में खर्च हुए धन के अर्जन में जुट गए और क्षेत्र के पंचायत में हो रहे कार्यों में भ्रष्टाचार भी देखने को मिला। पर इसी दौरान उन्होंने सीढ़ी के अंतिम छोर में पहुंचने के लिए वह विधायक बनने का ख्वाब देखने लगे। उसमें भी उनके कांग्रेस पार्टी के ही लोगों ने खूब सपोर्ट किया और उन्हें विधायक का दावेदार कांग्रेस के लिए बनाया। यह बात अलग है कि उन्हें मौका नहीं मिला और वह चूक गई, पर वहीं से वह सीढ़ी के निचले पायदान पर फिर आकर खड़ी हो गई और जिस पार्टी के दम पर उन्होंने जनपद चुनाव जीता, उपाध्यक्ष बनी अब उन्हीं से वह किनारा कर चुकी है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि अब पार्टी के किसी भी कार्यक्रम में वह जाती नहीं दिख रही हैं। अब सिर्फ वह फिर से जनपद व जिला पंचायत चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं। अब देखना यह है कि इस बार वह कांग्रेस को तो छोड़ चुकी नजर आ रही है। अब क्या भाजपा की तरफ उनका झुकाव दिख रहा है? क्योंकि वह अभी भी मतलब की राजनीति को देखते हुए भाजपा की तरफ से अपने आप को आगामी विधानसभा में विधायक प्रत्याशी बनवाने का ख्वाब शायद देख रही हैं? यही वजह है कि वह इस बार जनपद नहीं,जिला पंचायत लड़ने की सोच रही हैं। ताकि यह चुनाव जीत कर जिला पंचायत उपाध्यक्ष बन जाए और फिर बीजेपी से विधायक प्रत्याशी बन जाएं ऐसा वह सोच रही हैं। क्योंकि एक तो बड़े समाज वर्ग से आती हैं और राजनीति को भुनाना जानती हैं। अभी वर्तमान में जब क्षेत्र की सांसद महोदया का आगमन कोरिया जिले में हुआ या, भूतपूर्व विधानसभा अध्यक्ष और वर्तमान सांसद पति चरण दास महंत का आगमन हुआ, प्रदेश प्रभारी का आगमन उपाध्यक्ष के गृह क्षेत्र में हुआ, इन सभी कार्यक्रमों में उपाध्यक्ष नदारद रहीं। अब इन कार्यक्रमों में उनके नदारद रहने का कारण क्या था, यह तो वही जाने। परंतु पार्टी में ही जो खुसर पुसर सुनाई देती है, उसके अनुसार जिला कांग्रेस संगठन अब उन्हें किसी कार्यक्रम के लिए न्यौता ही नहीं देता। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि बीजेपी में जाने की अटकलों के कारण जनपद उपाध्यक्ष ने कांग्रेस पार्टी से दूरी बना ली है। कांग्रेस पार्टी से दूरी बनाने की एक वजह यह भी हो सकती है कि जिन माध्यमों को सीढ़ी बनाकर जनपद उपाध्यक्ष ने यहां तक का सफर तय किया था, अब वह साथी काफी पीछे छूट चुके हैं।

क्या भाजपा सरकार में जनपद उपाध्यक्ष पति नियमित स्कूल पढ़ाने जाएंगे या फिर कांग्रेस सरकार जैसा हाल रहेगा?
राजनीति एक पूर्णकालिक कार्य है। इसे अंशकालीन नियोजित नहीं किया जा सकता। जबकि वर्तमान जनपद उपाध्यक्ष महज एक मोहरा मात्र हैं, और उनकी राजनीति का सारा बागडोर उनके शिक्षक पति ने संभाल रखा है। निश्चित ही पूर्णकालिक राजनीति के चक्कर में वह अपने शिक्षकीय जीवन से विमुख हैं,जिसका परोक्ष अपरोक्ष रूप से नुकसान उनके पदस्थ स्कूल में दर्ज छात्रों को हो रहा होगा। विगत कार्यकाल में जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और क्षेत्र की तत्कालीन विधायिका का हाथ जनपद उपाध्यक्ष के ऊपर था, तो जनपद उपाध्यक्ष के पति अपने शिक्षकीय जीवन को भी बड़ी आसानी से मैनेज कर चल रहे थे। और आए दिन राजनीति और ठेकेदारी के चक्कर में जिला और जनपद में दिखाई देते रहे। परंतु वर्तमान में प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या जैसे पिछली सरकार में उपाध्यक्ष के शिक्षक पति ने अपनी मनमर्जी चलाई, वर्तमान भाजपा की सरकार में भी वही रवैया चलता रहेगा या भाजपाई इस बाबत सक्रिय होंगे। वैसे लगता नहीं कि इस दिशा और दशा में कोई सुधार होगा क्योंकि भाजपा से नजदीकियों के चलते और भाजपा में शामिल होने की अटकलों के बीच कुछ हो पाना संभव नजर नहीं आता।
क्या उपाध्यक्ष द्वारा चंद कांग्रेसियों को सीढ़ी बनाकर किया गया था स्वार्थ पूरा?
विगत चुनाव के पूर्व जनपद उपाध्यक्ष के परिवार का माहौल गैर राजनीतिक था। परंतु सत्ता का संरक्षण, विधायक का सर पर हाथ और युवा कांग्रेसी नेताओं के साथ के सहारे जनपद उपाध्यक्ष ने राजनीति में कदम रखा। और सत्ता के समर्थन से न केवल जनपद का चुनाव जीता बल्कि उपाध्यक्ष का चुनाव भी जीता। पूरे चुनाव में जिले के युवा कांग्रेसियों की टीम ने तन मन धन के साथ अपना सहयोग उपाध्यक्ष को दिया। परंतु आज स्थिति उलट है। आज ना तो पूर्व विधायक का साथ उपाध्यक्ष के प्रति है, ना ही युवा कांग्रेसियों का वह लगाव वर्तमान में विद्यमान है, जो विगत चुनाव पूर्व था। अब इसका कारण चाहे जो भी हो, पर जनपद उपाध्यक्ष पति के साथ देने वाले ही उन पर गैर जिम्मेदाराना व्यवहार का आरोप लगाते रहे हैं। आलम तो यह भी है कि विगत चुनाव में जब विधानसभा की सीट कांग्रेस ने गवां दी थी तो जनपद उपाध्यक्ष पति ने इसका जश्न भी मनाया था और सोशल मीडिया में व्यंगात्मक पोस्ट भी डाला था। इन सब बातों का लबोलुआब यही निकलता है कि विगत चुनाव में वर्तमान जनपद उपाध्यक्ष और उनके पति ने तत्कालीन विधायक और युवा कांग्रेसियों को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल किया था और मतलब पूरा हो जाने के बाद उनसे किनारा कर लिया।
भाजपा में सम्मिलित होने की सुगबुगाहट, भाजपाई करेंगे स्वीकार या देंगे उन्हें नकार?
विगत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की ओर से एक दावेदार के रूप में सामने आ चुकी वर्तमान जनपद उपाध्यक्ष का लगाव हाल फिलहाल कांग्रेसियों से ज्यादा भाजपाइयों में नजर आता है। पिछले विधानसभा चुनाव में इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा था, जब विधानसभा की टिकट के लिए पैनल में नाम आने पर कुछ कांग्रेसियों ने ही इसका खुलकर विरोध किया था कि जनपद उपाध्यक्ष का लगाव पूरी तरह कांग्रेस से न होकर भाजपाइयों के साथ भी सांठगांठ से है। और इस बात को इतना बल मिला कि जनपद उपाध्यक्ष की दावेदारी कमजोर पड़ती गई और अंततः उन्हें टिकट से हाथ धोना पड़ा। यह बात दीगर है कि विगत 5 सालों में जनपद उपाध्यक्ष ने जितना लगाव भाजपाइयों के साथ दिखाया, उनके साथ अपना समय व्यतीत किया, अपने स्वयं की पार्टी कांग्रेस के लिए उतना कार्य नहीं किया। जबकि जनपद उपाध्यक्ष होने के साथ-साथ वह कांग्रेस के जिला कार्यकारिणी में पदाधिकारी भी हैं। अब आने वाले समय में यह देखने वाली बात होगी कि भाजपा की तरफ झुकाव होने से क्या भाजपा संगठन उन्हें स्वीकार करेगा।
क्या कांग्रेस संगठन भावी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में करेगा जनपद उपाध्यक्ष के लिए समर्थन?
आने वाले कुछ ही समय में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव होना है,और निश्चित ही अपनी राजनीतिक साख को बचाए रखने के लिए और अगले पायदान पर चढ़ने के लिए राजनीति में सक्रिय बने रहना जरूरी है। और जिसका एकमात्र विकल्प है चुनाव जीतकर अपना प्रोटोकॉल बचाए रखना। परंतु दुविधा वाली बात यह है कि जैसा देखने सुनने को मिल रहा है, जनपद उपाध्यक्ष की कांग्रेस संगठन से दूरी है, और भारतीय जनता पार्टी में उन्होंने प्रवेश नहीं किया है। क्या ऐसे में कांग्रेस संगठन वर्तमान जनपद उपाध्यक्ष को जनपद या जिला के चुनाव में अपना अधिकृत प्रत्याशी घोषित करेगा। विगत चुनाव में युवा कांग्रेसियों की मदद से साा पक्ष के विधायक का खुला समर्थन प्राप्त हुआ था। जिसकी बदौलत जनपद का चुनाव और बाद में उपाध्यक्ष के चुनाव जीतने के लिए राह आसान हुई थी। परंतु इस बार जनपद उपाध्यक्ष और उनके पति के साथ ना तो विगत चुनाव वाली परिस्थिति है, न हीं वैसा समर्थन है। इसके अतिरिक्त जिला कांग्रेस संगठन में भी जनपद उपाध्यक्ष का समर्थन करने वाला कोई बड़ा चेहरा नजर नहीं आ रहा है। अगर ऐसे में पार्टी समर्थित प्रत्याशी होने का मौका नहीं मिला तब वर्तमान उपाध्यक्ष के लिए यह बड़ी ही सोचनीय बात हो जाएगी। ऐसी परिस्थिति के निर्माता वह स्वयं है, क्योंकि उपाध्यक्ष का चुनाव जीतने के बाद दो नाव की सवारी का परिणाम मिलने का समय अब आ गया है।
पार्टी का प्रचार प्रसार छोड़,झोला बांटकर केवल स्वयं के प्रचार में रत जनपद उपाध्यक्ष
क्षेत्रीय राजनीति के कई अवसरों पर यह देखने सुनने को मिला है कि कांग्रेस पार्टी में जिला संगठन कार्यकारिणी में अहम पद मिलने के बाद भी विगत 5 वर्षों में जनपद उपाध्यक्ष ने पार्टी के लिए कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया । न ही पार्टी के रीति-नीति को आगे बढ़ाने में और ना ही लोगों को कांग्रेस की विचारधारा से जोड़ने का कोई प्रयास जनपद उपाध्यक्ष के द्वारा किया गया। गाहे बगाहे मौकों पर जब भी जनपद उपाध्यक्ष को मौका मिला, वह अपनी स्वयं के प्रचार प्रसार में मशगूल रहीं। स्वयं के प्रचार प्रसार के आगे उन्होंने पार्टी के अस्तित्व को परे रखा और शायद इसका कारण यह भी हो सकता है कि अपनी भविष्य की राजनीति की दिशा परिवर्तन की संभावनाओं का ख्याल रखते हुए किसी एक पार्टी के प्रति निष्ठा नहीं जताई।