- राजपत्र प्रकाशित होने के बाद भी पटना नगर पंचायत कार्यालय का बोर्ड नहीं लग पाया
- ग्राम पंचायत नगर पंचायत का बोर्ड लगाने नहीं दे रहा और नगर पंचायत के अधिकारी पंचायत के हर निर्माण कार्य पर नोटिस जारी कर अवैध बता रहे हैं

-रवि सिंह-
कोरिया/पटना,11 दिसम्बर 2024(घटती-घटना)। छत्तीसगढ़ में पहली बार ऐसा दृश्य देखने को मिल रहा होगा जो आज तक देखने को नहीं मिला, यह मामला है एक ग्राम पंचायत से नगर पंचायत बनने का, जहां ग्राम पंचायत से नगर पंचायत होने की खुशियां होनी थी, वहां खींचातानी जारी है, खींचातानी इस कदर जारी है की दो कार्यालय संचालित हो रहे हैं एक तो पंचायत कार्यालय जो पहले से ही था दूसरा नगर पंचायत बनते ही नगर पंचायत के अधिकारी बैठा दिए गए, ताकि पूर्ण तरीके से नगर पंचायत की कार्यवाही शुरू हो सके, इसके लिए राजपत्र से लेकर सारी वैधानिक कार्यवाही पूरी भी की गई, अब स्थिति यह है कि नगर पंचायत कार्यालय का बोर्ड नहीं लग पा रहा है, क्योंकि ग्राम पंचायत नहीं लगने दे रहा है, वहीं पंचायत के निर्माण पर नगर पंचायत कार्यालय के अधिकारी नोटिस जारी कर अपनी कार्यवाही करते हुए अवैध निर्माण बता रहे हैं, अब यह लड़ाई नगर पंचायत कार्यालय वर्सेस ग्राम पंचायत कार्यालय हो गई है। जहां एक तरफ नगर पंचायत कार्यालय का बोर्ड बनकर आता तो है पर वह बोर्ड सरपंच के घर में रखा जाता है, उस बोर्ड को नगर पंचायत कार्यालय में नहीं लगने दिया जाता है, अभी की स्थिति में ग्राम पंचायत कार्यालय का ही नाम लिखा हुआ है अब ऐसे में तनातनी की स्थिति निर्मित हो रही है और हो सकता है कि कानून व्यवस्था भी बिगड़ सकती है, वहीं दूसरी तरफ 12 दिसंबर को न्यायालय में लगी याचिका पर क्या निर्णय आता है इस पर भी लोगों की निगाहें टिकी होंगी क्योंकि 12 दिसंबर को सुनवाई है।

क्या पटना सरपंच नगर पंचायत पटना की अध्यक्ष मनोनीत होने के बाद भी सरपंच बने रहना चाहती हैं?
वैसे पटना की निर्वाचित सरपंच को बकायदा राज्य सरकार ने प्रथम अध्यक्ष मनोनीत कर दिया है। सरपंच फिर भी अध्यक्ष नहीं बनना चाहती या वह खुद को अध्यक्ष नहीं कहलवाना चाहती। सरपंच की अब तक की मंशा को समझा जाए तो यही लगता है कि वह सरपंच ही रहना चाहती हैं। वैसे याचिका के पीछे और नगर पंचायत के विरोध में याचिकाओं का खर्च वही वहन कर रही हैं यह दबी जबान में लोग कह रहे हैं, वहीं लोगों का कहना है कि उनकी टीम के लोग भी उनके साथ अंदर ही अंदर यही चाहते हैं कि पटना अब नगर पंचायत न बने। वैसे यदि कांग्रेस की सरकार होती तो नगर पंचायत का विरोध नहीं होता और उनकी टीम के लोग भी सरपंच को विरोध से रोकते यह भी माना जा रहा है।
जब तक शपथ ग्रहण नहीं होगा तब तक क्या अध्यक्ष मान्य नहीं होंगे?
वैसे अध्यक्ष मनोनीत होने उपरांत भी सरपंच वर्तमान खुद को अध्यक्ष मानने को तैयार नहीं हैं वैसे क्या वह शपथ ग्रहण के बाद अध्यक्ष खुद को मानेगी यह भी एक सवाल उठ रहा है। वैसे सरपंच विरोध में भी है क्या वह शपथ के लिए तैयार भी होंगी यह भी एक सवाल है।
आज 12 दिसंबर पर टीका है पटना सरपंच व नगर पंचायत अध्यक्ष का फैसला
आज 12 दिसंबर का दिन पटना नगर पंचायत के भविष्य के लिए निर्णायक होगा। क्या याचिका पर यह सुनवाई अंतिम होगी और नगर पंचायत ही बना रहेगा पटना। वैसे पटना नगर पंचायत के विरोध में लगी याचिका में यदि अगली तारीख मिलती है तो क्या वहां चुनाव होगा या नहीं नगरीय निकाय का जो अब संभावित है जल्द यह भी एक प्रश्न खड़ा होगा वहीं अंतिम रूप से निर्णय आने में यदि विलंब होता है तो क्या पटना चुनाव अधर में लटक जाएगा यह भी एक प्रश्न है।
पंचायत अपना पूरा कार्यकाल पूरा करना चाहती है ताकि फंड खर्च कर सके फंड खर्च न कर पाए इसलिए नगर पंचायत अधिकारी डाल रहे अड़ंगा?
पंचायत की समिति अपना पूरा कार्यकाल समाप्त करना चाहती है जिससे वह अपना पूरा कार्यकाल पूर्ण कर सके और वह पूरा फंड खर्च कर सके वहीं नगर पंचायत सीएमओ यह नहीं चाहते कि पूरा फंड खर्च हो और वह इसीलिए अड़ंगा लगा रहे हैं। दोनों का अपना अपना स्वार्थ है और दोनों के स्वार्थ का मूल यदि देखा जाए तो पैसा है,पैसा कौन खर्चे करे यही विवाद की जड़ है वैसे नए सीएमओ भी पैसा खर्च करने में काफी उस्ताद नजर आ रहे हैं। अपने लिए साज सज्जा खेल के लिए जुगाड रहने के लिए हर सुविधा का वह ध्यान फंड से कर रहे हैं यह नजर आ रहा है।
जिला पंचायत भी पटना को मान चुका है नगर पंचायत
जिला पंचायत कोरिया ने भी मान लिया है कि पटना नगर पंचायत हो गया है बस नहीं मानने में वह हैं जो सरपंच के साथ हैं और उनके साथ ही पंचायत में पदाधिकारी हैं। वैसे यह माना जा रहा है कि लड़ाई श्रेय की भी है यदि यही सब कुछ पूर्व सरकार के कार्यकाल में होता अब तक नगर पंचायत पूर्ण अस्तित्व में होता वहीं अब चुकी श्रेय भाजपा नेताओं को मिल गया यही कारण है कि विरोध में अंदर से विपक्ष के लोग शामिल हैं।