- -कैसे पता चलेगा कौन था नाबालिक बच्चे का हत्यारा और क्यों लगाई नाबालिक बच्चे ने फांसी?
- -पटना थाना पर आरोप है नाबालिक को डराने व प्रताडि़त करने का… डर में झूला फांसी पर?
- -बालकों की देखरेख व संरक्षण अधिनियम 2015 का क्या पटना पुलिस ने नहीं किया पालन?
- -पटना पुलिस ने यदि साइकिल मिलने के दिन ही तत्परता दिखाकर खोजबीन की होती तो मिल जाता गुमशुदा बालक का शव और दूसरे नाबालिक की नहीं जाती जान…और मामला हो जाता साफ
- -नाबालिक से पूछताछ करने में भी पटना पुलिस ने नहीं किया नियमों का पालन
- -पुलिस भी नाबालिक की हत्या व नाबालिक के आत्महत्या के बीच फंसी…मामला अभी भी अधर में अटका
- -यदि पुलिस को दूसरे नाबालिक पर था संदेह तो फिर उसे बाल संरक्षण गृह में क्यों नहीं रखा?
- -कड़ाई से पूछने की बजाय पुलिस ने बालको से कैसे पूछताछ की जाती है उस दृष्टिकोण से क्यों नहीं पूछा?
- क्या पुलिस की वर्दी व पुलिस का हावभाव देखकर डर गया नाबालिक और लगा ली फांसी?
- -पुलिस नाबालिक के हत्या का मामला कैसे सुलझाएगी…पुलिस ने नहीं रखा धैर्य जिस वजह से उलझ गया मामला?
बैकुंठपुर/पटना 26 नवम्बर 2024 (घटती-घटना)। कोरिया पुलिस एक बार फिर उलझी नजर आ रही,उलझन की वजह यह है कि एक नाबालिक की गुमशुदगी की रिपोर्ट आती है और पुलिस तत्काल उसे खोजने पर जोर नहीं डालती है, मामला तब सामने आता है जब गुम हुए नाबालिक का साइकिल मिलता है, साइकिल मिलने के बाद पूछताछ में पुलिस की तेजी आती है,पुलिस अपनी तेजी दिखाने के चक्कर में यह भूल जाती है कि उन्हें भी नियम व कानून का पालन करना होता है, पर शायद पटना थाना पुलिस यह बात भूल गई और नाबालिक का पता लगाने के लिए एक नाबालिक को थाना ले आई जिसे नहीं लाना था ऐसे ही पुलिस थाने, क्या पटना के थाना प्रभारी को यह बात नहीं पता थी? की नाबालिक बच्चों को थाने नहीं लाया जा सकता है वह भी वर्दी में खासकर? शायद उन्हें नहीं पता था इसलिए उन्होंने अपने वर्दी वाले स्टाफ को भेजकर उसे नाबालिग को थाने बुलाया और फिर अपने स्तर से पूछताछ की और बिना परिजनों को सुपुर्द किए ही घर के बाहर छोड़ आए, ऐसा परिजनों का आरोप है, पुलिस ने क्या पूछताछ की…कैसे पूछताछ की…किस स्तर की पूछताछ की जो नाबालिक बच्चा सुबह अपने घर में फांसी के फंदे पर झूलता नजर आया? इसके बाद मामला और तेजी से गरमाया, गरमाए भी क्यों ना क्योंकि मामला तब सामने आया जब पुलिस ने नाबालिक बच्चों को थाने लाया और थाने लाने के बाद नाबालिक बच्चे का शव घर पर झूलता मिला, एक तरफ जहां नाबालिक बच्चे को पुलिस ढूंढ रही थी और ढूंढने में सफलता नहीं मिली थी, उधर दूसरी तरफ एक नाबालिक बच्चा अपने घर में फांसी के फंदे पर झूलता नजर आया, इसके बाद पुलिस की आंखें खुली और फिर पुलिस ने पहले गुम हुए नाबालिक बच्चे को खोजने के लिए डॉग स्मयड का कुाा मंगवाया जो पुलिस पहले भी मंगवा सकती थी, पर मंगवाई नहीं? जिस दिन गुम नाबालिक का साइकिल मिला था और जिस दिन नाबालिक बच्चे को पुलिस थाने लेकर आई थी, उसी दिन यदि पुलिस डॉग स्म्ॉड को बुलाकर छानबीन करती तो शायद गुम हुए नाबालिक का शव मिल जाता और जिस नाबालिक बच्चे ने फांसी लगाई वह बच जाता और पूरे मामले का खुलासा हो जाता, अब पुलिस खुद उलझ गई है और उलझने के साथ कहीं ना कहीं पुलिस ने बच्चों की देखरेख व संरक्षण अधिनियम 2015 का भी उल्लंघन कर दिया है।
क्या पटना थाना प्रभारी से दो जगह काम कराया जा रहा है इसलिए वह नहीं संभाल पा रहे हैं पुलिस थाना और मामले को उलझा दिया
पुलिस थाना पटना के प्रभारी वर्तमान में दो दो प्रभार सम्हाल रहे हैं,वह थाने के साथ साथ साइबर क्राइम के भी जिला प्रभारी हैं। अब शायद यही वजह है कि वह दो दो जगह के प्रभार को झेल नहीं पा रहे हैं और उनसे इस मामले में नाबालिक बच्चों से जुड़े अपराध मामले में बड़ी चूक हो गई और एक नाबालिक की मौत आत्महत्या की वजह से हो गई जो पुलिस की प्रताड़ना या उसके डर की वजह से हुई यह जनचर्चा है। पुलिस थाना पटना के प्रभारी इस मामले में कहीं न कहीं जरूर सवालों के घेरे में हैं क्योंकि वह जरा भी समझदारी दिखाते एक नाबालिक बच गया होता आत्महत्या नहीं करता।
क्या उन पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही होगी जिन्होंने बच्चों के देखरेख व संरक्षण के लिए बने अधिनियम का उल्लंघन किया?
पटना थाना अंतर्गत चंपाझर गांव में घटी घटना आज प्रदेश की ऐसी घटना है जो कानून व्यवस्था पर तो नहीं लेकिन कानून के रखवालों के कार्यप्रणाली और मनमानी पर सवाल जरूर खड़ा करती है।नाबालिकों से कैसे पूछताछ करनी है,क्या इसके नियम हैं, बाल संरक्षण या बाल अपराध मामले में पुलिस को क्या ध्यान देना आवश्यक है इसका पूरे मामले में पुलिस ने ध्यान नहीं रखा। नाबालिक से पूछताछ या उसे पूछताछ के लिए पुलिस थाने लाने के क्या नियम हैं क्या सावधानियां बरती जानी चाहिए यह भी ध्यान पटना पुलिस ने नहीं रखा और एक नाबालिक ने आत्महत्या डर और पुलिसिया भय से कर ली,मामला आदिवासी नाबालिक एक छात्र से भी जुड़ा है और अब सवाल उठता है कि क्या अब उन पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही होगी जिन्होंने कानून का पालन नहीं किया बाल कानून का? क्या पुलिस इस तरह का उदाहरण देकर अपनी गलती स्वीकार करेगी और पुलिसकर्मी जिन्होंने गलती की कानून का पालन नहीं किया उन्हें दंडित करेगी। वैसे इसकी संभावना कम है लेकिन फिर भी इस मामले में लोग कार्यवाही की मांग कर रहे है।
पटना पुलिस मामले को सुलझाने के बजाय उलझा ले गई
पटना पुलिस के द्वारा एक गुम नाबालिक की खोजबीन मामले को ऐसा उलझा दिया गया कि मामला एक अन्य नाबालिक की आत्महत्या से जुड़ गया। वैसे पटना पुलिस यदि चाहती तो यह मामला जल्द सुलझ जाता और एक नाबालिक की जान भी बच जाती और डॉग स्मयड की जरूरत भी नहीं पड़ती। नाबालिक से यदि पुलिस ने समझदारी दिखाकर पूछताछ की होती और उससे डर भय दिखाने की बजाए नाबालिक की तरह व्यवहार कर किसी काउंसलर के माध्यम से पूछताछ करवाई होती वह न आत्महत्या करता और वही गुमशुदा नाबालिक की हत्या का राज खोलता एक साक्ष्य बनता यह कहा जा सकता है।
सोशल मीडिया पर पुलिस ने लापरवाही होना भी कबूला फिर बाद में किया डिलीट
सूत्रों का कहना था किओ पुलिस ने सोशल मीडिया पर लापरवाही की बात स्वीकार की ऐसा बताया जा रहा है वहीं बाद में इसे डिलीट किया गया। लापरवाही की बात डिलीट नहीं करनी थी यह लोगों का कहना है और लोगों का कहना है कि वह तो हुई ही। लापरवाही ही है जो एक नाबालिक आत्महत्या कर गया अपनी जान दे गया।
इस अधिनियम के तहत बच्चे को थाने नहीं लाया जा सकता
पुलिस किसी भी जुर्म में पकड़े गए नाबालिग बच्चे को थाने नहीं ले जा सकती, किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के मुताबिक, बच्चों के साथ अपराधों से निपटने के लिए खास प्रक्रिया का पालन करना ज़रूरी है, इस कानून के तहत, पुलिस 18 साल से कम उम्र के बच्चों को गिरफ़्तार नहीं कर सकती या जेल नहीं भेज सकती।