आज भी वैज्ञानिकों में मंगल ग्रह का आकर्षण कम नहीं हुआ है। वैज्ञानिकों, कवियों, स्वप्नदृष्टाओं और कहानीकारों की कल्पनाओं का मंगल ग्रह, जिस लाल ग्रह के रूप में जाना जाता है, वह सदियों से प्रेरणा देता आया है। हम ने कभी मंगलवासियों के बौद्धिक विकास की बात की है तो कभी मंगल की सुनसान भूमि की धूल के तूफानों की चर्चा की है। पिछले कुछ समय से ऐसी ऐसी ऐसी अटकलें कर रहे हैं कि मंगल पर जीवन के विकास की कितनी संभावनाएं हैं? जल्दी ही प्रकाशित हुए एक शोधपत्र के अनुसार बर्फ से घिरा मंगल ग्रह माइक्रोबियल जीवन टिका सकता है, ऐसी परिस्थिति रखता है।
जब तक मंगल ग्रह पर जीवन होने का सही सबूत नहीं मिलता, तब तक शछजी के इस जल्दी के इस शोध में क्रातिकारी सूचना दी गई है कि मंगल के बर्फीले पानी के नीचे सूक्ष्म जीवाणु पल सकते हैं। इस अध्ययन के अनुसार जीवों के मंगल के बर्फ के स्तरके नीचे सूक्ष्म पिघले पानी के जलाशयो में पानी मिल सकता है। कंप्यूटर मोडलो के आधार पर वैज्ञानिकों ने दर्शाया है कि जिस तरह पृथ्वी पर कठिन परिस्थितियों में फोटो सिंथेसिस हो सकता है। जर्नल में प्रकाशित शोधपत्र के अनुसार शोधकर्ताओं में नासा की जेट प्रोपल्सन लैबोरेटरी के आदित्य खुल्लर और एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के फिल क्रिस्टनसन का समावेश होता है।
सूक्ष्मजीवों के संकेत : हिमस्तरों के रहस्य
अभी तक मंगल ग्रह पर अति सूक्ष्म कही जाने वाले जीवसृष्टि भी वैज्ञानिक नहीं खोज सके हैं। इस वजह से वैज्ञानिकों में निराशा है। अभी जल्दी नासा को शोधकर्ताओं ने जो शोधपत्र प्रकाशित कराया है, उसमें संभावना व्यक्त की है कि मंगल की सतह के नीचे 9-10 फुट के अंतर में सूक्ष्म जीव सृष्टि का विकास हो सकता है।
पृथ्वी के ऊपर सामान्य रूप से शेवाल, फूग अंर माइक्रोस्कोपिक साइनोवैक्टेरिया जैसे तमाम सूक्ष्म जीव प्रकाश संश्लेषण से ऊर्जा प्राप्त करते हैं। शोध करने वाले आदित्य खुल्लर का कहना है कि ब्रह्मांड में कहीं भी जीवन खोजना हो तच मंगल ग्रह के बर्फीले प्रदेश तक मनुष्य सब सं पहले पहुंच सकता है और मंगल ग्रह पर पानी का बर्फ एकदम उचित जगह पर है। नासा का पसवरंस रोवर फरवरी,2021 में मंगल ग्रह के जेजेरो क्रेटर पर उतरा था। उस स्थान पर कभी सरोवर होने का निर्देश मिला था। फर्सिवरंस रोवर के काम में मुख्य रूप से प्राचीन सूक्ष्म जीवों के चिह्न खोजने और पत्थर के नमूने इकट्ठा करने का समावेश है। भविष्य में पृथ्वी पर इन नमूनों को लाने के लिए मिशन का आयोजन है, जिससे इनका अधिक से अधिक परीक्षण किया जा सके।
मंगल ग्रह के तमाम इलाकों, जैसे कि टेरा, सिरेनम आदि वैज्ञानिकों के अध्ययन के केंद्र बिंदु हैं। माना जाता है कि मंगल के इन इलाकों में सफेद, धूलवाली पट्टियां पानी की बर्फ की जमावट है। वैज्ञानिकों का मानना है खि भूतकाल में मंगल ग्रह पर हिमयुग आ गया होगा। जिससे अनुमान लगाया जाता है कि आज भी मंगल ग्रह की सतह पर काफी बर्फ जमी पड़ी है। संभावना है कि यह बर्फ धूल मिश्रित है। वैसे भी पृथ्वी पर जो क्रायोकोनाइट होल्स जैसी रचना मिली है, वैसी ही रचना मंगल पर बर्फ के नीचे होने की संभावना है। अब सवाल यह उठता है कि क्रायोकोनाइट होल्स में सूक्ष्म जीव कैसे अपना जीवन बचा सकते है?
सूर्य की किरणें और बर्फ : मंगल पर जीवन की संभावना
मंगल ग्रह का सूर्य से अंतर,वहां के बहुत पतले वातावरण के कारण मंगल पर बर्फ का अस्तित्व खोजने का प्रश्न हमेशा चर्चास्पद रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जिस तरह सूखी बर्फ वायु में परिवर्तित हो जाती है,उसी तरह मंगल की सतह पर बर्फ के स्वरूप में रहने वाला पानी सीधे वायु में परिवर्तित हो सकता है। परंतु इस परिस्थिति में कुछ स्थानों को अल्प मात्रा में बची बर्फ के नीचे के पानी पर लागू नहीं होती। वैज्ञानिकों नं कंप्यूटर मौडल की जांच कर के निष्कर्ष निकाला है कि मंगल पर ऐसी परिस्थिति का निर्माण हो सकता है कि वहां सूक्ष्म जीव सृष्टि विकसित हो सकती है।
मंगल ग्रह की बर्फ का अध्ययन करने वाले फिल क्रिस्टेंसन समझाते हैं कि मंगल की बर्फ का घन स्तर अंदर से पिघल सकता है। सूर्य की किरणें ऊपर के स्तर से गुजर कर, नीचे के स्तर में स्थित धूल के रजकणों का तापमान बढ़ा सकती हैं। उस समय यहां ग्रीन हाउस जैसा इफेक्ट खड़ा हो सकता है। जहां गर्मी बर्फ के अंदर सुरक्षित रहती है। जिससे मंगल के बर्फीले स्तर के नीचे पिघले पानी के जलाशय होने की संभावना हो सकती है। बर्फ के ऊपर के स्तर में सजीव सृष्टि का विकास दो तरह से लाभदायक साबित हो सकता है। एक ऊपरी सतह की बर्फ से पिघले पानी का वाष्पीकरण से रोकेगा, दूसरा मंगल के पास कोई रक्षात्मक चुंबकीय क्षेत्र नहीं है, ञो सूर्य की जहरीली किरणों और कॉस्मिक रेडिएशन से बचाएं। पानी के ऊपर 8 से 9 मोटी बर्फ की परत, माइक्रोबियल जीवन को सूर्य की जहरीली किरणों और कॉस्मिक रेडिएशन से रक्षा कर सकती हैं। यह अध्ययन दर्शाता है कि मंगल पर पृथ्वी की तरह बर्फ की सतह के नीचे 3 मीटर (9 फुट) तक सूक्ष्म जीव सृष्टि का विकास हो सकता है।
बर्फ के अंदर सृष्टि
पृथ्वी पर खास कर आर्कटिक और एंटार्कटिका ञैसे युगल इलाकों में बर्फ की परत के नीचे जीव अलग-अलग रूपों में जीवंत रहते हैं।इन भागों में खास प्रकार की रचना देखने को मिलती है, जिसे वैज्ञानिक क्रायोकोनाइट होल्स कहते हैं। यह रचना बर्फ और मिट्टी के धूल के रजकणों से मिल कर होती है। बर्फ की सतह पर सूर्य की किरणें पड़ कर परिवर्तित हो जाती हैं। जिससे सतह का तापमान कम रहता है। जिस बर्फ में मिट्टी या धूल के रजकण रहते हैं, वे रजकण सूर्य की किरणों को अधिक शोषित कर लेते हैं। जिसके कारण उनका तापमान सतह की बर्फ की अपेक्षा अधिक होता है। अमुक गहराई में पहुंचने के बाद वहां पानी का सूक्ष्म सरोवर हो, इस तरह की रचना हो जाती है। पृथ्वी पर इस तरह की रचना में सूक्ष्मजीव जैसे कि फूग,शेवाल और साइनोवैक्टेरिया देखने को मिले हैं। जो फोटोसिंथेसिस द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करते हैं और अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं। पृथ्वी के कुछ भागों में कठिन परिस्थिति होने के बावजूद जीव विकसित हैं। पृथ्वी पर क्रायोकोनाइट की बस्ती एंटार्कटिका, ग्रीनलैंड और नार्वे के स्वालबार्ड द्वीपसमूह स्केंडिनेवियन देश के उत्तरी किनारे और उत्तरी ध्रुव के बीच एक टापू की चेन है। सवाल यहां यह उठता है कि मंगल के बर्फीले मैदान में माइक्रोबियल इकोसिस्टम कैसे विकसित हो हकता है। डा.आदित्य खुल्लर कहते हैं कि मंगल ग्रह पर दो प्रकार की बर्फ है। पानी जमने से बनी बर्फ और कार्बन डायोक्साइड द्वारा बनी बर्फ, जिसे हम सूखी बर्फ कहते हैं। शोधपत्र में प्रकाशित जानकारी के अनुसार वैज्ञानिकों ने पानी की बर्फ का अध्ययन किया है, जो दर्शाता है कि मंगल ग्रह पर भूतकाल में हिमयुग होना चाहिए। उस समय बर्फ और धूल मिश्रित हिमप्रपात हुआ होना चाहिए। अब वह कम मात्रा में बची है, जिसमें धूल के कण भी मिश्रित हैं।
मंगल के रहस्यमय कोने
मंगल के प्रख्यात खोजी फिल क्रिस्टेंसन, जिन्होंने मंगल की बर्फ पर दशकों से अध्ययन किया है, वह कहते हैं कि मंगल की घन बर्फ र शिलाएं नीचे से पिघल सकती हैं। यह अध्ययन उन्होंने नासा के मार्स ओडिसी आर्बिटर और ताप विसर्जन इमेजिंग सिस्टम द्वारा किया है। उन्होंने अपने पूर्व अध्ययन में दर्शाया है कि मंगल की धूल युक्त बर्फ में तापमान बढ़ कर प्रवाही पानी हो सकता है, जो माइक्रोबियल जीवन के लिए अनुकूल परिस्थिति का निर्माण भी कर सकता है। वैज्ञानिकों की कंप्यूटर मौडलिंग द्वारा पता चला है कि 0.01 से 0.1 प्रतिशत धूल की मात्रा वाली बर्फ, ग्रह की सतह के नीचे 5 से 38 सेंटीमीटर की गहराई में सूक्ष्म जीव के जीवन को टिकाए रहने के लिए सहारा दे सकता है। माडल में मंगल ग्रह के दोनों गोलार्द्ध में 400 अक्षांस पर छोटे एलियन जीव की बस्ती 2.15 से 3.10 मीटर की गहराई तक अस्तित्व रखते हैं। इस अध्ययन के बाद शोधकर्ताओं ने मंगल के अन्य इलाकों का नक्शा बनाना शुरू किया है, जहां पिघला पानी बड़ी मात्रा में जमा हो सकता है। यह इलाके भविष्य में मानव और रोबोटिक मंगल अभियान के लिए महत्वपूर्ण स्थान बन सकते हैं।
मंगल का अध्ययन अभी पूरा नहीं हुआ है। वैज्ञानिक मंगल के आकर्षक ग्रह के रहस्य उजागर करने में लगे हैं। ये शोध विज्ञान जगत की समझ को और अधिक गहराई तक ले जाने की क्षमता रखता है। बर्फ की परत के नीचे फोटोसिंथेसिस होने की संभावना यह दर्शाती है कि जीवन अतिशय कठिन परिस्थितियों में भी टिका रह सकता है। मंगल पर जीवन के लिए संभवना के बारे में पता करें तो लगता है कि मंगल पर कलकल बहती कोई नदी नहीं है, परंतु बर्फ और धूल की परत के नीचे अदृश्य कोनों में सूक्ष्म जीव टिक सकते हैं। शोध बताते हैं कि जीवन खिन्हीं भी परिस्थितिओं में उद्भव अंर विकास कर सकता है। अगर भविष्य में मंगल ग्रह पर माइक्रोबियल जीवन मिलने की गौरवमय सिद्धि साबित होगी तो हम ब्रह्मांड को देखने और समझने का अभिगम सदंतर बदल जाएगा।
वीरेंद्र बहादुर सिंह
नोएडा उत्तरप्रदेश
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