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@कविता @भुईयां ह जम्मो सिरावत हे

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भर्री,भाठा,धरसा,सरार,अउ परिया सिरावत हे
शहरीकरण के सुरसा म,भुईंया हर लीलावत ह
जनसंख्या के बढ़ाई म,भुईंया कम होत जात हे
जिनगी हर कईसे होही,सोंच के मन घबरात हे।
अंधाधून रुखराई के, कटाई म जंगल नंदावत हे
जंगल के जीव-जनावर ह,भूख म कलबलात हे।
नदिया,नरवा दिनों-दिन, परिया होवत जावत हे
भुईंया के बरदान म करिया बादर हर मंडरात हे।
खेत-खार,के धान-पान हर अब घटते जावत हे
बखरी-बारी के साग-भाजी हर घलो नंदावत हे।
बड़े-बड़े, कल-कारखाना,रोज, खुलत जावत हे
हवा,पानी महुरागे,भुईंया के भेंट चढ़त जात हे।
अशोक पटेल आशु
शिवरीनारायण, छत्तीसगढ़


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