कविता @ सरल हृदय छला जाता है

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एक दिन बदल जाता है सच्चा मन भी
बार-2 दोष दो बदल जाता जीवन भी
बदलाव से सहजता ही चला जाता है
सरलता से युक्त मन ही छला जाता है
मानस के मति की अब कहनी क्या है
जीवन समर की आगे नियति क्या है
चंचल मन जो वक़्त पर बदल जाता है
सरलता से युक्त मन ही छला जाता है
जीवन बन गया क्या कठपुतली जैसा
आरम्भ क्या और इसका अंत ये कैसा
जो दूसरों के इशारे कैसे चला जाता है
सरलता से युक्त मन ही छला जाता है
छलते है लोग जब तक है आप सरल
छलाते हुये अक्सर पी लेते कटु गरल
खेला किसी के मन से खेला जाता है
सरलता से युक्त मन ही छला जाता है
सरल हृदय जब पत्थर जैसे बन जाता
सहजता सारी मानस से निकल जाता
अब उसे ही पत्थर दिल कहा जाता है
सरलता से युक्त मन ही छला जाता है
सच की राह मे चलने से डरते है लोग
आडम्बर और दिखावे मे उलझें लोग
सच नहीं झूठ के सहारे चला जाता है
सरलता से युक्त मन ही छला जाता है
प्रमेशदीप मानिकपुरी
धमतरी (छत्तीसगढ़)


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