लेख @अब तो मैं भी लिखूंगा

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पिछले तीन दिनों से दो कमरों में अलमारी निर्माण का कार्य चल रहा था, जिसके कारण उन दोनों कमरों का भी सामान अन्य कमरों में शिफ्ट किया गया था। मन बेचैन हो उठा कि कैसे इन सारी चीजों को सुव्यस्थित तरीके से रख लूं। सभी वस्तुएं अत्यंत उपयोगी और महत्वपूर्ण थीं, लेकिन उनका इस तरह से बेतरतीब होना सबको निरर्थक होने की संज्ञा प्रदान कर रहा था। इसी उधेड़बुन में था कि बिटिया ने फोन पकड़ाते हुए कहा कि घंटी बज रही है।
हेलो!
नमस्कार! कैसे हैं?
जी प्रणाम! ठीक हूं।
आज की कार्यशाला के लिए लिंक सभी साथियों को भेज दिया जाये। अन्य साथियों से भी बात कर आवश्यक तैयारी कर ली जाये।”
जी बिल्कुल, बस चाय पी लूं।
दरअसल बात यह है कि शैक्षिक संवाद मंच उत्तर प्रदेश द्वारा शिक्षक साहित्यकार प्रमोद दीक्षित मलय के संपादन में मेरी शिक्षकीय यात्रा नामक आत्मकथा विधा आधारित एक साझा संग्रह शीघ्र प्रकाश्य है। लेखकों को प्रशिक्षित करने के लिए शाम साढ़े चार बजे से एक आनलाइन प्रशिक्षण का आयोजन किया गया था जिसमें डॉ. मुरारी झा (नई दिल्ली)द्वारा लेखन की बुनियाद : देखना, समझना और व्यक्त करना विषय पर शताधिक शिक्षकों से संवाद होना था।
शिक्षक पढ़ाएं या लिखें, शिक्षक क्यों लिखें, शिक्षक क्या लिखें, शिक्षक कैसे लिखें, शिक्षकों के लेख किसको पढ़ना चाहिए, क्या शिक्षकों के लेखों का संज्ञान लिया जाना चाहिए, इन सवालों के तह तक जाना शिक्षा, शैक्षिक व्यवस्था, बच्चे और समाज सबके लिए बहुत आवश्यक है। प्रशिक्षक डॉ0 मुरारी झा ने बड़ी शालीनता और सहजता के साथ संवाद का सिलसिला शुरू किया, जिस देश में 28 करोड़ से अधिक बच्चे पढ़ रहे हों, एक करोड़ से अधिक शिक्षक पढ़ा रहे हों वहां शिक्षा और शिक्षकों के बारे में शिक्षकों द्वारा लिखी किताबें गिनने पर हाथों की अंगुलियां भी पूरी नहीं होती है। यह शिक्षा व्यस्था का दुर्भाग्य है कि शिक्षा के बारे में ऐसे व्यक्ति लिख रहे हैं जिनका शिक्षा से सीधा सम्बंध नहीं है। और इससे भी अधिक दुर्भाग्य यह है कि इन्हीं पुस्तकों को आधार बनाकर नई नीतियों का निर्धारण किया जा रहा है।
अरे! शिक्षकों का लेखन इस स्तर तक शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित कर सकता है क्या? ऐसा कभी सोचा भी न था। तभी मन ने कहा, चलिए, यह बात तो समझ में आई कि शिक्षकों का लिखना जरूरी है। मगर शिक्षक लिखें तो क्या लिखें?”सीखना और सिखाना दोनों ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया है। जो व्यक्ति निर्माण की प्रक्रिया से गुजरता है वह निर्माण के पश्चात खुद को सशक्त महसूस करता है। शिक्षक बच्चों की आवाज को सबसे नजदीक से सुनता है। यदि शिक्षक बच्चों की आवाज लिखेगा तो वह सर्वश्रेष्ठ लिखेगा। शिक्षक को अपने अनुभवों को दर्ज करना है क्योंकि उसके अनुभव सबसे शानदार, प्रामाणिक और उपयोगी हैं। यह रिफ्लेक्टिव नोट आगे चलकर बहुत उपयोगी होने वाला है।
ये अनुभव तो तमाम अलग-अलग आयामों में होते हैं। दिन भर छोडç¸ए, एक ही कक्षा में शिक्षक कई सारे अनुभवों से गुजरता है। तो इन अनुभवों के मध्य सामंजस्य कैसे स्थापित करें?
लिखते समय शिक्षक को यह विचार दिमाग से निकाल देना चाहिए कि वह जो लिख रहा है बहुत साधारण है। जो चीज आप लिखते हैं वह आपके लिए साधारण हो सकती है लेकिन पढ़ने वाले के लिए वह प्रेरक और उपयोगी हो जाती है। शिक्षक को अपने अनुभवों को नियमित रूप से दर्ज करते रहना चाहिए। कुछ समय पश्चात जब आप उसे पढ़ेंगे तो उसके मध्य स्वयं ही पैटर्न बनते दिखाई देंगे और तब आप उसको एक महत्वपूर्ण पुस्तक के रूप में रि-प्रोड्यूस कर पाएंगे। यदि इन बातों को तारीख के साथ दर्ज करें तो आपके पुस्तक की ऑथेंटिसिटी और अधिक बढ़ जाएगी। लिखने के लिए महत्वपूर्ण चरण हैं पढ़ना, अवलोकन, समझना, चिंतन और फिर व्यक्त करना। कमरे में धीरे-धीरे अलमारी के हिस्से तैयार हो रहे थे। कमरा व्यवस्थित होने की राह पर चल पड़ा था। इधर संवाद जारी था।
शिक्षक तो पढ़ाने के लिए प्रायः पढ़ते ही रहते हैं। फिर लिखने के लिए हमें क्या पढ़ना चाहिए? सर्वप्रथम ऐसी पुस्तकों का चयन करना चाहिए जो शिक्षकों द्वारा लिखी गई हैं। इसमें गिजुभाई बधेका की पुस्तक दिवास्वप्न अत्यधिक महत्वपूर्ण है। तोत्तोचान, बच्चे की भाषा और अध्यापक, टीचर आदि महत्वपूर्ण हैं जिन्हें लेखन शुरू करने से पूर्व अवश्य पढ़ना चाहिए। इसके बाद दूसरा काम है अवलोकन। शिक्षक का सामान्य अवलोकन पढ़ने वाले के लिए बहुत खास होने वाला है। शिक्षक अपने दैनिक जीवन में किए गए अवलोकन के प्रति चिंतन करता ही है। बस जरूरत है इन चीजों को नोट करने की। नोट करने के प्रति शिक्षकों में एक रिजेक्शन सा रहता है। आप नहीं लिखेंगे तो आपके बारे में कोई और लिखेगा और फिर वही नरेटिव समाज में जाएगा जो वास्तविकता से बिल्कुल परे होगा। पल भर के लिए मन ने कमरे की सैर कर ली और संवाद से पुनः जुड़ गया।
यदि शिक्षक लिखने लगें तो उनके लिए क्या संभावनाएं हैं और वह शेष समाज को कैसे प्रभावित कर सकता है?
एक शिक्षक से पूछें कि वह क्यों लिखता है तो उसका प्रायः यही जवाब होता है कि वह अपने लिए लिख रहा है। यह उचित भी है। पहले स्वयं के लिए लिखिए और धीरे-धीरे आपका लेखन प्रभावी और धारदार होता चला जाएगा। आपका लेखन पाठ्यक्रम डेवलपमेंट के लिए, व्यवस्था निर्माण के लिए, असेसमेंट के तरीकों को डेवलप करने के साथ ही नीति निर्धारण में भी उपयोगी हो सकता है।
सत्र समाप्ति की ओर था। मैं कमरे के एक कोने में बैठे–बैठे अपने घर को व्यवस्थित होने की खुशी महसूस कर पा रहा था। तभी पड़ोस के मंदिर की सायंकालीन आठ बजे की आरती के मंगल स्वर कानों में घुलने लगे थे।
दुर्गेश्वर राय
गोरखपुर उत्तरप्रदेश


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