सूरजपुर,@जिला बदर के आरोपी की अगुवाई में दुर्गा उत्सव कार्यक्रम कैसे मनाया जा रहा था?

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-समरोज खान-
सूरजपुर,20 अक्टूबर 2024 (घटती-घटना)। जिला मुख्यालय सूरजपुर के लिए 13 अक्टूबर की रात काफी भारी रात मानी जायेगी,यह रात हर तरीके से खौफनाक थी, इस दिन जहां देवी प्रतिमा का विसर्जन हो रहा था उसी समय शहर में तांडव भी हो रहा था,वह भी यह तांडव कोई और नहीं जिला बदर का आरोपी कर रहा था,शायद यह रात कभी ना भूलने वाली रात कही जा सकती है,जिसे जिले से ही नहीं जिले के आसपास लगने वाली सरहदी जिले से भी बाहर होना था वह जिला बदर का आरोपी शहर में दुर्गा पूजा व दशहरा मना रहा था, आरोपी बाकायदा इस दुर्गा पूजा में मां जगदंबे दरबार का अध्यक्ष था वही उसका दोस्त आरोपी उपाध्यक्ष। बाकायदा आमंत्रण कार्ड भी छपा था जिसमें इन नामों का उल्लेख था। विधायक कलेक्टर एसपी भी कार्यक्रम में उपस्थित थे,अब इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आरोपी कुलदीप साहू कितना रसूखदार व्यक्ति था? जो अपनी पावर का इस्तेमाल करके जिला बदर के नियम का उलांघन करते हुए शहर में 13 अक्टूबर 2024 की रात को कहर रहा था, और यह करने की हिम्मत उसे कहां से मिली और किसने संरक्षण दिया? यह अब चर्चा का विषय बना हुआ है जिस समय उसका दहशत थी उस समय लोग उसके सामने आने से भी डरा करते थे और आज लोग उसका विरोध कर रहे हैं पर यही विरोध पहले किए होते तो शहर में इतना बड़ा गुंडा नहीं जन्म ले पाता न ही दो महिलाओं की बेरहमी से हत्या हो पाती,जब तक वह जेल में हैं तब तक की लोग खुल के बोल पाएगे या फिर विरोध तब तक करेगे जब तक उसके कारोबार का अंत न हो जाए और आरोपी को सजा ना मिल जाए।
वर्तमान घटना की जानकारी अनुसार 13 अक्टूबर की रात को सूरजपुर कोतवाली के नजदीक पुराना बस स्टैंड में स्थित चौपाटी में निगरानी बदमाश एवं जिला बदर कुलदीप साहू ने अपने साथियों के साथ पुलिस आरक्षक घनश्याम सोनवानी पर कढ़ाई का खौलता तेल उड़ेल कर जानलेवा हमला किया था। उसके बाद अपने पिता समेत अन्य सहयोगियों के साथ उसने स्विफ्ट डिजायर कार से कोतवाली के समीप प्रधान आरक्षक तालिब शेख एवं उदय सिंह को कुचलने की कोशिश कर जानलेवा हमला किया था। उसी रात कुलदीप साहू ने प्रधान आरक्षक तालिब शेख की पत्नी और पुत्री की चाकू से गोद गोद कर नृशंस हत्या की वारदात को अंजाम दिया था। उसके बाद फरार हो रहे उक्त घटनाओं के मास्टरमाइंड मुख्य आरोपित कुलदीप साहू ने उसे रोकने की कोशिश कर रहे विश्रामपुर टीआई अलरिक लकड़ा व पुलिस टीम पर फायरिंग की थी। इसके जवाब में टीआई ने भी बचाव में उस पर फायरिंग की थी, लेकिन वह भागने में सफल हो गया था। जिलाबदर होने के बावजूद नगर में बेख़ौफ़ घूम रहे आरोपित कुलदीप साहू ने अपने एक साथी के साथ 29 जून की रात साढ़े दस बजे एक बर्थडे पार्टी में शामिल होकर अपने दोस्त के साथ उसकी कार से पुराना बाजारपारा लौट रहे रुपेश को रोक कर पैसों की मांग करते हुए गाली गलौज कर जान से मारने की धमकी देने के बाद मारपीट की थी। उसके विरुद्ध कोतवाली में 27 अपराध दर्ज हैं। उसके बावजूद कोतवाली पुलिस द्वारा उसकी गिरफ्तारी नहीं किए जाने से उसे पुलिसिया संरक्षण प्राप्त होने का आरोप लगना स्वाभाविक है।
यूपी के बहराइच में एनकाउंटर हो सकता है तो छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के मामले में क्यों नहीं?
उार प्रदेश में भी भाजपा की सरकार है और छाीसगढ़ में भी भाजपा की सरकार है पर उत्तर प्रदेश के कई घटनाओं में एनकाउंटर की बात आई है अभी फिलहाल में ही बहराइच में एक एनकाउंटर हुआ पर वही छत्तीसगढ़ में जब ऐसी घटनाएं होती हैं तो एनकाउंटर से सरकार क्यों थर्रा जाती है या फिर पैसे लेकर आरोपियों को सह देती है? भले ही सूरजपुर की घटना को लेकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बंद कमरे में पुलिस अधिकारियों की जमकर क्लास ली। उनका बैठक में प्रश्न था की आरोपी जब एक दिन पहले थाने में आकर धमका गया था तो पुलिस एक्शन क्यों नहीं ली? अपराधियों के खिलाफ पुलिस सख्ती क्यों नहीं बरत रही? सीएम का गुस्सा अपनी जगह सही था। वैसे गुस्से में आम जनता भी है और प्रदेश के 80 हजार पुलिस परिवार भी। फिर भी पुलिस ने बलरामपुर बस स्टैंड से नाटकीय ढंग से मुख्य आरोपी को गिरफ्तार किया, क्या उससे पुलिस परिवारों का खून खौला? आरोपी हाफ पैंट में टसन के साथ चल रहा था और पुलिस उसके साथ फोटो खिंचवा अपने आपको बहादुर साबित कर रही थी? क्या पुलिस अधिकारियों के मानसिक दिवालियापन की पराकाष्ठा पार नही हुई? जब हाफ पेंट में ही आरोपी को प्रेस के सामने पेश कर दिया ऐसा लग रहा था कि आरोपी कहीं से घूम कर आ रहा हो। जिस समय पुलिस बलरामपुर में अपराधी के साथ फोटो सेशन करवा रही थी,उसी दौरान टीवी पर यूपी के बहराइच कांड के जख्मी आरोपी का वीडियो चल रहा था, जिसमें वह कराह रहा था और कहा साहब अब गल्ती हो गई, अब कभी ऐसा नहीं होगा। एनकाउंटर के दौरान में दोनों के पैर में गोली लगी थी। क्या उस घटना को छ्त्तीसगढ़ पुलिस नहीं देखी थी? और छाीसगढ़ की पुलिस को बताते हैं की मुख्य आरोपी को बचाने उसके पुलिसिया परजीव एक्टिव हो गए है। सूत्रों का दावा है कि योजनाबद्ध ढंग से उसे गढ़वा से बुलाया गया, यह गारंटी देकर कि कुछ नहीं होगा, आ जाओ। फिर कहानी पूरी पलट दी गई,गढ़वा से अंबिकापुर आ रहा था यही कहानी वायरल होगी। तभी पुलिस की सूचना मिली और उसे बलरामपुर बस स्टैंड में दबोच लिया गया। पता नहीं,छाीसगढ़ पुलिस व सरकार में पानी बचा है या नहीं? हेड कांस्टेबल के घर में घुसकर पत्नी और बेटी की हत्या हो जाती है, उसके बाद भी खून गरम नहीं होता? मुख्य आरोपी के अहसान से दबे सूरजपुर पुलिस का एक धड़ा उसे बचाने में जुट गया है? जाहिर है।
ऐसे मामलों में जाति धर्म समुदाय से ऊपर उठकर मानवता के दोषियों का बहिष्कार करना चाहिए
सुरजपुर दोहरे हत्याकांड और सभी आरोपियों की गिरफ्तारी से पहले और उसके बाद की जो तस्वीर सामने आई और जिस तरह का मानव समाज का चेहरा सामने आया उसके बाद यह एक प्रश्न खड़ा हो गया कि क्या अब जघन्य अपराधों महिलाओं के प्रति होने वाले घृणित अपराधों को लेकर समाज केवल उग्र प्रदर्शन तक सीमित रहेगा और वह भी एक दो दिन का आंदोलन प्रदर्शन जहां संपçायों का ही नुकसान करता मानव समाज दिख जाएगा, दंगे या खुद भी वह आतंक के माध्यम से ही वह विरोध दर्ज करेगा, समाज ऐसे अपराधों और अपराधियों के लिए न तो चिंतन करेगा जिससे भविष्य में ऐसी कोई घटना घटती न हो वहीं वह ऐसे उदाहरण भी प्रस्तुत उन अपराधों अपराधियों के लिए प्रस्तुत नहीं करेगा जो अपराध घटित हो चुके हैं जिनके अपराधी आरोपी जाहिर हो चुके हैं। समाज को ऐसे मामलों में कोई बड़ा निर्णय जहां लेना चाहिए जाति धर्म समुदाय से ऊपर उठकर ऐसे मामले में मानवता का दोषी मानकर ऐसे आरोपियों को समाज से बहिष्कृत करना चाहिए उन्हे सहयोग मदद करने वालों को भी बहिष्कृत करना चाहिए जिससे समाज का दबाव अपराधों में एक लगाम का काम कर सके। समाज का ऐसा कोई बहिष्कार या कोई एक राय होकर लिया गया निर्णय भी ऐसे अपराधों पर भविष्य में अंकुश लगा सकता है और पुनः ऐसी कोई पुनरावृति रोक सकता है लेकिन ऐसा होगा यह अभी तो नजर नहीं आता न ही समाज इस हेतु कोई विचार ही करता नजर आ रहा है। वैसे अब केवल दंड का कोई कठोर विधान जहां ऐसे अपराध की पुनरावृति रोक सकता है वहीं समाज से बहिष्कृत करने का कोई उदाहरण भी आरोपियों को या ऐसे अपराध से प्रेरित होने वालों के लिए एक रुकावट उत्पन्न करने का कारण हो सकता है।
जिस मंच में एसपी कलेक्टर मौजूद रहे उसी स्थल के आस-पास कुख्यात आरोपी घूमता रहा…
सूत्र बताते है की जिला बदर होने के बाद भी कुख्यात बदमाश कुलदीप साहू प्रशासनिक सहभागिता से सूरजपुर की एक समिति द्वारा जिला मुख्यालय के स्टेडियम में आयोजित दशहरा आयोजन में मां जगदंबा दरबार दुर्गा पूजा समिति पुराना बाजार पारा के अध्यक्ष होने के नाते आमंत्रित किया गया था और वह वहा पर मौजूद था। रावण दहन के इस कार्यक्रम में मंच पर क्षेत्रीय विधायक समेत कलेक्टर एसपी एवं तमाम आला अधिकारी और जनप्रतिनिधि मौजूद थे। इतना ही नहीं कोतवाली से एक फर्लांग दूरी पर बाजार पारा सूरजपुर में समिति अध्यक्ष कुलदीप साहू की अगुवाई में नौ दिनों तक दुर्गा उत्सव कार्यक्रम धूमधाम से मनाया गया और सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था। उसके बावजूद कोतवाली पुलिस ने उसे गिरफ्तार करना उचित नहीं समझा और उसने दोहरे हत्याकांड समेत तीन अलग-अलग स्थान पर पुलिस पर जानलेवा हमला करने की वारदात को बेखौफ अंजाम दिया,अरोपियो मंच पर था या नहीं इसकी पुष्टि दैनिक घटती-घटना नहीं करता।
युवाओं को ऐसे अपराध और आरोपी प्रेरित करने का करने का करते हैं काम,यदि बेहतर उदाहरण हो जाए प्रस्तुत, युवाओं के लिए होगा एक संदेश
ऐस अपराध और ऐसे आरोपी युवाओं को प्रेरित करने का काम करते हैं यह कहें तो ऐसे अपराधों से युवा प्रेरणा भी ले सकते हैं ऐसा कहना गलत नहीं होगा। ऐसे मामलो में दंड का कठोर विधान और समाज का कोई ऐसा निर्णय जो आरोपियों सहित उनके अपराध को लेकर उनके बहिष्कार का हो वह एक संदेश बनने का काम कर सकता है। युवाओं के लिए कोई अपराध प्रेरणा न बने बल्कि युवाओं को उस अपराध के परिणाम से भय का आभास हो यह अब समाज को भी कानून के साथ साथ ध्यान देना होगा।।वैसे कहीं कल कोई युवा खुद को कुलदीप साहू का साथी मित्र या भाई छोटा बताकर न अपराध करने लगे यह भी ध्यान देना होगा सभी को मिलकर।
पुलिस के कार्यशैली से संतुष्ट क्यों नहीं?
शहर के लोगो का मानना है जिलाबदर होने के साथ ही उगाही करने के लिए मारपीट करने के फरार आरोपी को नगर में रहते हुए भी गिरफ्तार नहीं करना कानून को ठेंगा दिखाना कहा जा सकता है तथा जिलाबदर किए गए निगरानी बदमाश कुलदीप साहू के दशहरा कार्यक्रम में मंच साझा करने से पुलिसिया संरक्षण से इंकार नहीं किया जा सकता। यदि उसे कोतवाली पुलिस गिरफ्तार कर ली होती तो उक्त गंभीर घटनाएं घटित ही नहीं होती। उसका कबाड़ कारोबार पुलिसिया संरक्षण में ही संचालित हो रहा था। पूरे मामले में पुलिस की भूमिका संदेह के दायरे में है। हम पुलिस की कार्यशैली से संतुष्ट नहीं है। दोहरे हत्याकांड की न्यायिक जांच के लिए हाईकोर्ट की शरण लेना ही ज्याद सही होगा। जिलाबदर होने के बाद भी उसके नगर में बेखौफ घूमने और उसकी गिरफ्तारी नहीं किए जाने के कारणों की उच्च स्तरीय जांच कर कर उसे संरक्षण देने वालों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए


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