नई दिल्ली ,12 जनवरी 2022 (ए)। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि घर के निर्माण के लिए ससुराल वालों से पैसे मांगना दहेज की मांग है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे एक अपराध बताया है. साथ ही कोर्ट ने एक मामले में दोषियों की सजा को बहाल किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि घर के निर्माण के लिए पैसे की मांग करना एक दहेज की मांग है, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 304बी के तहत अपराध है।
सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या के एक मामले में दोषी व्यक्ति और उसके पिता की सजा को बहाल करते हुए यह टिप्पणी की। चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कहा ‘दहेज’ शब्द को एक व्यापक अर्थ के रूप में वर्णित किया जाना चाहिए, ताकि इसमें एक महिला से की गई किसी भी मांग को शामिल किया जा सके, चाहे संपत्ति के संबंध में हो या किसी भी तरह की मूल्यवान चीज के संबंध में। क्या है मामला मध्य प्रदेश की एक महिला ने दहेज उत्पीड़न से परेशान होकर आत्महत्या कर ली थी। महिला को घर बनाने के लिए पैसे देने के लिए ससुराल वाले परेशान कर रहे थे और उसपर दबाव बना रहे थे। महिला का परिवार घर के निर्माण के लिए पैसे देने में असमर्थ था। इस कारण महिला ने परेशान होकर आत्महत्या कर ली थी। निचली अदालत ने इस मामले में महिला के पति और ससुर को आईपीसी की धारा 304बी, 306 और 498ए के तहत दोषी ठहराया था। यह भी पाया गया था कि आरोपी मृतक महिला से घर के निर्माण के लिए लगातार पैसे की मांग कर रहे थे। महिला का परिवार पैसे नहीं दे पा रहा था।
परिणामस्वरूप महिला को लगातार परेशान किया गया और उसे प्रताडि़त किया गया। दोषी पति और ससुर ने इसको मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने यह कहते हुए दोषसिद्धि और सजा के फैसले को खारिज कर दिया था कि मृतक ने खुद ही अपने परिवार से घर के निर्माण के लिए पैसे देने के लिए कहा था। हाई कोर्ट ने पाया कि आरोपियों के खिलाफ 304बी के तहत अपराध स्थापित नहीं किया गया था, क्योंकि मृतक महिला से कथित तौर पर घर बनाने के लिए पैसे की मांग की गई थी, जिसे दहेज की मांग के रूप में महिला की मौत के उक्त कारण से नहीं जोड़ा जा सकता। सु्प्रीम कोर्ट की बेंच ने निचली अदालत के फैसले को सही माना है और हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए आरोपियों को दोषी ठहराकर सजा की बहाली कर दी। दहेज एक सामाजिक बुराई बेंच ने कहा कि दहेज की मांग वाली सामाजिक बुराई से निपटने के लिए भारतीय दंड संहिता में धारा 304बी का प्रावधान किया गया था। बेंच का कहना है कि धारा 304बी के प्रावधान समाज में निवारक के रूप में काम करने और जघन्य अपराध पर अंकुश लगाने के लिए हैं।
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