लेख@ देश को जरूरत है एक और गांधी की

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NOVEMBER 1ST – 227

इतिहास में अपने आप में यह एक पहला उदाहरण है कि महात्मा गांधी ने देश के सभी समुदायों तथा क्षेत्र के लोगों को इकट्ठा करके शांतमई ढंग से अंग्रेजों से देश को आजाद कराया। अन्यथा संसार के अलग-अलग देशों में खून खराबा किए बिना सत्ता परिवर्तन नहीं होता। महात्मा गांधी एक बैरिस्टर थे अगर वह चाहते तो अपना जीवन ठाठ से बिता सकते थे लेकिन उन्होंने देश हित में सब कुछ त्याग दिया, देश को आजाद कराने के लिए लोगों को में स्वतंत्रता प्राप्त करने की भावना को जागृत किया। देश आजाद कराने में कांग्रेस तथा कई और राजनीतिक दलों का योगदान भी रहा है। अनेक लोगों ने अनेक प्रकार की कुर्बानियां दीं, फांसी के फंदे को चूमा, काले पानी की सजा भुगती। महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन, भारत छोड़ो आदि तरीके इस्तेमाल किये। सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद सेना का गठन करके अंग्रेजों से टक्कर लेने का काम भी किया। अंततः 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हुआ। महात्मा गांधी सभी धर्मों की इज्जत करते थे, उनका प्यारा भजन…. ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सम्मति दे भगवान… आज भी महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने के लिए विभिन्न अवसरों पर गाया जाता है। महात्मा गांधी जात पात में विश्वास नहीं रखते थे। इसी बात को लेकर उन्होंने एक समाचार पत्र… हरिजन… भी निकाला, जिसमें उन्होंने छूत छात, हरिजनों के प्रति सहानुभूति दिखाने की बात कही। महात्मा गांधी ग्रामीण क्षेत्र का विकास करने के पक्ष में थे। बेरोजगारी को दूर करने के लिए उन्होंने खादी तथा ग्राम उद्योग को बढ़ावा देने की वकालत की। वह विदेशों पर निर्भर रहने के बदले में स्वदेशी लहर के पक्ष में थे अर्थात वह विदेशों पर निर्भर नहीं रहना चाहते थे। वह शांति के पुजारी थे। साधारण जीवन तथा उच्च विचार में विश्वास रखते थे। उनका यह मत था कि राजनीति जन सेवा का एक माध्यम है। उन्होंने अपना सारा जीवन एक लंगोटी में इसलिए बिता दिया क्योंकि उनका यह मानना था कि जब देश में अनेक गरीब लोगों के तन पर कपड़ा नहीं फिर मैं कपड़े कैसे पहन सकता हूं। महात्मा गांधी के बारे में यह बात प्रचलित है के उनके तीन बंदर थे जिन्होंने आंख, कान तथा मुंह पर हाथ रखा हुआ था जिसका मतलब यह है कि महात्मा गांधी बुरा देखने, बुरा सुनते तथा बुरा कहने में यकीन नहीं रखते थे। दिल्ली में राजघाट में उनकी समाधि बनी हुई है। संसद भवन में भी उनकी बड़ी मूर्ति बनी हुई है जो कि उनके स्वतंत्रता संग्राम में योगदान तथा विचारों का द्योतक है। विभिन्न देशों में महात्मा गांधी की प्रतिमाएँ स्थापित की गई है जो कि लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। महात्मा गांधी के बारे में इतना कुछ जानने के बाद अब हम यह देखना चाहेंगे कि आज का भारत महात्मा गांधी के सपनों का भारत है या नहीं। इसमें कोई शक नहीं कि आज हम आजाद हैं और देश का शासन चलाने के लिए हमारा अपना संविधान है। लेकिन अगर देखा जाए तो महात्मा गांधी तथा देश के अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों ने जो सोच कर देश के लिए कुर्बानियां दी थी आज का भारत वैसा भारत बिल्कुल नहीं है। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने देश का ऐसा हाल कर रखा है कि अगर महात्मा गांधी तथा अन्य स्वतंत्रता सेनानी आज जीवित होते तो देश की दुर्दशा देखकर उनको अपनी कुर्बानिया पर अफसोस होता। महात्मा गांधी जात-पात के खिलाफ थे लेकिन आज के हमारे विभिन्न राजनीतिक दल जात-पात की राजनीति के आधार पर लोगों को बांटकर वोट बटोरने में लगे हुए हैं। विभिन्न धर्मों में भेदभाव पैदा करके उन में दंगे फसाद करवा रहे हैं और वोटो की राजनीति कर रहे हैं। हमारे देश में राष्ट्रीय नेता कम हैं, हिंदू नेता, मुस्लिम नेता, दलित नेता, आदिवासी नेता आदि ज्यादा है। ऐसे में देश में एकता तथा अखंडता कैसे रह सकती है। हमारे देश के राजनेता राजनीति को जन सेवा का एक साधन न समझ कर सत्ता प्राप्ति का एक साधन समझने लगे हैं। देश जाए भाड़ में, उन्हें सिर्फ अपनी कुर्सी तक मतलब है। सत्ता पर कब्जा होना चाहिए। लोगों में फूट पड़ती है, पड़ने दो, हिंसा होती है, होने दो, जैसा विकास देश में होना चाहिए, नहीं होता, कोई बात नहीं। बस कुर्सी सलामत रहनी चाहिए। उसके लिए चाहे साम, दंड ,भेद कोई तरीका अपना ना पड़े कोई फर्क नहीं पड़ता। नैतिकता, गरिमा, मर्यादा आदि का उल्लंघन होता है कोई बात नहीं। संविधान की अवमानना होती है, कोई बात नहीं। कुर्सी सलामत होनी चाहिए। महात्मा गांधी साधारण जीवन और उच्च विचारों में विश्वास रखते थे। आज देश में एक भी ऐसा नेता नहीं है जो महात्मा गांधी के इन विचारों के ऊपर चलता हो। महात्मा गांधी स्वदेशी आंदोलन के सहारे अंग्रेजों से देश आजाद करने में सफल हुए। लेकिन आज हमने अपनी आवश्यकताएं इतनी बढ़ा ली हैं कि देश में विकास के बावजूद भी हम विदेशों पर बहुत मामलों में निर्भर रह रहे हैं। यह ठीक है कि विदेशों से सहायता लेकर भी विकास किया जा सकता है लेकिन अगर विदेशों से लिया हुआ कर्ज जीडीपी के बराबर होने लगे तो वह तो देश की बुरी आर्थिक स्थिति का चिन्ह माना जाएगा। आज हमारे देश में बेरोजगारी, कीमतों में वृद्धि, भ्रष्टाचार, कुपोषण, महिलाओं का शोषण, कृषि की अवहेलना, बड़े-बड़े कॉर्पोरेट का फलना फूलना, आम आदमी की आमदनी का कम होना आदि बातें कभी भी महात्मा गांधी के विचारों का हिस्सा नहीं थी जबकि वह भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने का आंदोलन चला रहे थे। यू महात्मा गांधी के नाम पर विभिन्न राजनीतिक दल लोगों को बेवकूफ बनाकर वोट तो मांगते हैं, विभिन्न राजनीतिक दल सरकार के प्रति विरोध प्रकट करने के लिए राजघाट पर जाकर धरना और प्रदर्शन भी करते हैं, परंतु उनमें से कोई भी अहिंसा, शांति, नैतिकता, संयम, साधारण जीवन, समरसता आदि में यकीन नहीं रखता। भारत में 15 अगस्त और 26 जनवरी सरकारी कार्यक्रम बनकर रह गए हैं। अधिकांश लोग उन स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में नहीं जानते जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व लुटा दिया। राजनीतिक दल सभी के हित की बात तो करते हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि अपने-अपने दल के लोगों को उच्च पदों पर आसीन करके अपनी कुर्सी भविष्य के लिए पक्की करते हैं। महात्मा गांधी ने कभी भी ऐसा नहीं चाहा था। महात्मा गांधी कृषि, लघु तथा ग्राम उद्योग का विकास करने के पक्ष में थे जबकि आज की सरकार बड़े-बड़े उद्योगों का विकास कर रही है, आर्थिक नीतियां ऐसी बनाई जा रही हैं कि और अमीर हो जाए और गरीबों की स्थिति में कोई सुधार न हो। विभिन्न धर्म के लोगों में भेदभाव इतने बढ़ गए हैं कि वो एक दूसरे को शक की नजर से देखते हैं। ऐसे में देश को एक और गांधी की आवश्यकता है जो की आजादी से पहले वाले महात्मा गांधी के सपनों को साकार कर सके। देश में लोग धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा आदि को भूलकर भाईचारे से एक दूसरे के साथ रहकर अपना काम धंधा करके रोटी, कपड़ा और मकान की समस्या को हल ही ना कर सके बल्कि आत्मनिर्भर भी हो।
प्रोफेसर शाम लाल कौशल
रोहतक हरियाणा


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