अंबिकापुर,27 सितम्बर 2024 (घटती-घटना)। हिंदू राष्ट्र धर्म सभा को लेकर अंबिकापुर पधारे शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने शुक्रवार को पत्रकार वार्ता के दौरान कहा कि हम अहिंसा के पक्षधर हैं लेकिन अहिंसा के नाम पर कोई सताता है तो हमारे पास शस्त्र धर्म भी है। नम्रता के नाम पर अन्याय नहीं होना चाहिए। जो व्यक्ति समझाने से भी नहीं समझते उन्हें समझाने के लिए शस्त्र बल भी जरूरी है। हिंदू भी केवल अहिंसा के पक्षधर रहेंगे तो अपने अस्तित्व की रक्षा कैसे कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र सभी हैं। ब्राह्मणों में विद्या क्षत्रिय में बाल वैश्य में विभूति और सेवा के लिए शूद्र को बनाया गया है। सभी एक साथ मिलकर चलेंगे तभी अपने अपने सिद्धांत की रक्षा कर सकेंगे। चारों अगर संपन्न होंगे तो ही अपने अस्तित्व की रक्षा करने में समर्थ हो सकेंगे। स्वतंत्रता के बाद जाति के नाम पर विद्वेष उत्पन्न किया गया। प्रसाद के नाम पर अगर कोई विकृत पदार्थ का प्रयोग करता है तो वह क्राइम है। धर्म परिवर्तन के नाम पर उन्होंने कहा कि सनातन धर्म दर्शन, विज्ञान, व्यवहार तीनों दृष्टियों से परिणूर्ण है। सेवा के नाम पर हिन्दूओं को धर्म परिवर्तन का जघन अपराध चल रहा है। और यह कार्य शासन की सहभागिता के कारण हो रही है। कुछ धर्म विशेषों का नाम लेते हुए कहा कि सेवा के नाम शोषण किया जा रहा है। सिद्धांतों, आध्यात्म की रक्षा करने से भारत संपन्न होगा। उन्होंने कहा विक्रमादित्य के बाद से अब तक सनातन परम्परा को लोगों ने कुचलने का ही प्रयास किया है। युवाओं द्वारा किए जा रहे आत्महत्या के बारे में उन्होंने कहा कि आधुनिक शिक्षा में योग्यता के अनुसार नौकरी नहीं मिलने के कारण लोग आत्महत्या कर रहे हैं। प्रइवेट कंपनियों में भी नौकरी की होड़ मची है। सनातन बोर्ड के सवाल पर उन्होंने कहा कि बोर्ड है ही नहंी, चार शंकराचार्य हैं। बोर्ड बनाने की आवश्यकता पहले से ही। शासनतंत्र इसकी उपयोगिता को समझे। सुसंस्कृति,सुशिक्षित, सुरक्षित, संपन्न, सेवा प्रायिण, स्वस्थ्य, अभिकर्तव्य, समाज की संरचणा यही राजनितिक की परीभाषा है। उन्होंने तंज करते हुए कहा कि भारत में मंत्री तो बहुत है परंतु राजा कौन है इसका पता ही नहीं। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार के नेता भारत को चाहिए उसे प्रकार के नेता प्राप्त नहीं हुए। चुनाव की प्रक्रिया ही ऐसी है जिसमें स्वच्छ शासन तंत्र का मिलना ही कठिन है।
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