लेख@ बस्तर का प्रथम कृषि महाविद्यालयःशहीद गुण्डाधूर कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,जगदलपुर

Share

ये तो विश्व विख्यात है की छत्तीसगढ़ धान का कटोरा है और उन्हीं धान-धान्य के अनैक किस्मों को विकसित करने वाला, संरक्षित और संवर्धन करने वाला इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के अंतर्गत शहीद गुण्डाधूर कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र अपना 24 वां वर्षगांठ मना रहा है।
सन 1981 में जब बस्तर जिला रायपुर संभाग से अलग होकर 16 फ़रवरी को नया संभाग बनाने की घोषणा हुई तब बस्तर संभाग में करीब 8 तहसील और 32 विकासखंड शामिल हुए पर इतने बड़े संभाग में कृषि अनुसंधान की एक भी संस्थान नहीं थी, तब भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद और जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के अंतर्गत कुम्हारवंड फार्म, जगदलपुर को क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र का दर्जा मिला, जिसकी विधिवत स्थापना तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अर्जुन सिंह जी द्वारा 21 मार्च 1981 में हुआ था। शैक्षिणक संस्था कृषि महाविद्यालय की स्थापना 20 सितम्बर 2001
को हुई थी, जिसमें सीजी पीएटी के माध्यम से बीएससी कृषि पाठ्यक्रम में दाçख़ला मिलता है। महाविद्यालय में सत्र 2016 से पीजी के पाठ्यक्रम की शरुआत हुई थी। समय समय पर खेलकूद,सांस्कृतिक कार्यक्रम,के साथ-साथ अन्तरमहाविद्यालय युवा उत्सव-मड़ई, एनएसएस/ एनसीसी के कार्यक्रम भी संचालित होते रहते है। महाविद्यालय के अंतर्गत करीब 8 अनुसंधान परियोजना संचालित हो रहें, जो की भारतीय कृषि अनुसन्धान केंद्र नई दिल्ली के आधीन है, जिसमें धान,कंद, लघुधान्य, ताड़,काजू, और बरानी फसल शामिल है। जिले में कृषि विज्ञान केंद्र बस्तर भी संचालित हो रही जिसका स्थापना 01 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल श्री दिनेश नंदन सहाय और प्रथम मुख्यमंत्री श्री अजीत जोगी के कर कमलों द्वारा हुआ था। अखिल भारतीय समन्वित धान सुधार अनुसंधान परियोजना का मुख्यकार्यभार महाविद्यालय की अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन वैज्ञानिक बस्तर की बेटी के नाम से विख्यात डॉ. सोनाली कर है, महाविद्यालय से बस्तर धान 1, और इंद्रावती धान की नई किस्म अभी हाल में ही विकसित की गई है। केरा बस्तर, बस्तर का प्रथम विकसित नारियल का किस्म है, डॉ. बीना सिंह, वैज्ञानिक उद्यानिकी और डॉ. पी के सलाम शस्य वैज्ञानिक ताड़ परियोजना के मुख्य कार्यवाहक है। छत्तीसगढ़ का प्रथम काजू की किस्म इंदिरा काजू 1 भी इस महाविद्यालय की देन है जिन्हें श्री विकास रामटेके इस परियोजना को अपने उचित दिशा निर्देश में रखें है। हमारे महाविद्यालय को करीब दो बार कंदीय फसल में अखिल भारतीय स्तर पर सर्वश्रेष्ठ अनुसन्धान केंद्र के रूप में नवाजा गया था। वर्ष 2016 और 2022 में एआईसीपीआर कंद फसल को सर्वश्रेष्ठ केंद्र का दर्जा मिला था। यह परियोजना की शुरुआत 1987- 88 में हुई जिसका मुख्य उपलब्धि यह है की शकरकंद में 5 नवीन किस्म विकसित हुए जिसमें इंदिरा नवीन, इंदिरा मधुर, इंदिरा नंदिनी, सीजी शकरकंद प्रिया, सीजी शकरकंद नारंगी कसावा में सीजी कसावा 1, अरबी में 3 किस्म विकसित किए गए- इंदिरा अरबी -1, सी जी अरबी -2, साखेन बंडा -1,डांग कांदा में सीजी डांग कांदा -1,और बस्तर की पारंपरिक कंदीय फसल में तिखुर के एक किस्म सीजी तिखुर 1 और अन्य कंदीय फसलों में सीजी रतालू-1, सीजी रतालू -2 शामिल है और अभी वर्तमान में डॉ. पद्माक्षी ठाकुर इस परियोजना की मुख्यकार्यवाहक है। अनुसंधान के क्षेत्र में भारतीय रबर अनुसंधान संस्थान, कोटोट्याम, केरल एवं इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के संयुक्त तत्वाधान में छत्तीसगढ पहली बार रबर की खेती किये जाने के अन्तर्गत हमारे महाविद्यालय परिसर में रबर के पौधों का रोपण दिनांक 22 जून 2023 को किया गया। इस परियोजना के नोडल अधिकारी डॉ. ए. के. ठाकुर को नियुक्त किया गया। लघु धान्य परियोजना के अंतर्गत इंदिरा रागी, सीजी कुटकी , सोन कुटकी जैसे अनेक किस्म विकसित किए गए, वर्ष 2017 और 2021 में एआईसीपीआर लघु धान्य फसल को सर्वश्रेष्ठ केंद्र का दर्जा मिला था। अभी हाल में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने शहीद गुण्डाधूर जी की मूर्ति का लोकार्पण महाविद्यालय परिसर में किया जो कि बस्तर विकास प्राधिकरण के वित्तीय सहयोग से निर्मित किया गया है। महाविद्यालय परिसर के दिव्य सभागार जिला प्रशासन की पहली पसंद होती है, चिराग परियोजना, बस्तर में एक पेड़ माँ के नाम, रीपा जैसे कई योजनायें की शुरुआत इसी सभागार परिसर से होती रही है।
उत्कर्ष कुमार सोनबोइर,

कृषि महाविद्यालय जगदलपुरु (छ.ग.)


Share

Check Also

कविता @ आओ इनसे सीखें…

Share पहले शिक्षक हैं हमारे मात पिताजिन्होंने अच्छे हमें संस्कार सिखाए।दूसरी शिक्षक है यह दुनिया …

Leave a Reply