अम्बिकापुर @ कलम बंद का तैंतीसवां दिन @ खुला पत्र दैनिक घटती-घटना के संपादक के विरुद्ध उनके प्रतिष्ठान के विरुद्ध सरकार और प्रशासन की द्वेषपूर्ण कार्यवाही की लोग कर रहे आलोचना

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-विशेष संवाददाता-
रायपुर/अंबिकापुर 01 अगस्त 2024 (घटती-घटना)।
दैनिक घटती-घटना के कलम बंद अभियान से घबराकर प्रदेश सरकार और प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री जहां एक तरफ बातचीत का रास्ता भी तलाश रहे थे वहीं वह एक षड्यंत्र भी रच रहे थे जो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का मुंह बंद करने उसकी अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने का षड्यंत्र था जो सरकार और स्वास्थ्य मंत्री ने पूरा कर दिखाया। अब सरकार और स्वास्थ्य मंत्री की इस कार्यवाही की चौतरफा निंदा हो रही है। संपादक के पिता की मृत्यु उपरांत होने अंतिम संस्कार कार्यक्रम में संपादक के व्यस्त होने के अवसर को सरकार स्वास्थ्य मंत्री और सरगुजा जिला प्रशासन ने ऐसा भुनाया कि अब उनकी थू-थू हो रही है…और सनातनी सरकार की इस कार्यवाही से लोग आश्चर्यचकित भी हैं…और गुस्से में भी हैं…और लोग आलोचना करते हुए कह रहे हैं कि संपादक के प्रतिष्ठान पर बेदखली की कार्यवाही अनुचित भले न हो समय अवसर उचित नहीं था जिसका ध्यान रखना था। लोग खासकर बुद्धजीवी वर्ग कई तरह की प्रतिक्रिया दे रहा है और इस कार्यवाही को कायरता की भी संज्ञा लोग दे रहे हैं।

साधना कश्यप ने कहा अविनाश जिसका विनाश सम्भव नहीं,जिसके हाथो किसी का भी नाश सम्भव, सबका समय आएगा, बारी बारी से। घटिया लोग, घटिया प्रशासन, घटिया राजनीति इन सबके लिए बस एक शब्द…सरगुजा में थू थू थू…।

वरिष्ट पत्रकार रायपुर सुधीर तम्बोली ने कहा छत्तीसगढ़ में रविवार की सुबह बुलडोजर कार्रवाई हुई। संवारने की बात कहने वाली सरकार उजाड़ने में उतर गई।

वरिष्ट पत्रकार रायपुर कमल शुक्ला ने कहा की सत्ता से असहमत पत्रकारों पर लगातार हमले जारी हैं, सत्ता चाहे कांग्रेस की रही हो चाहे बीजेपी की, अत्याचार की इस प्रक्रिया में कोई अंतर कभी भी दिखाई नहीं दिया, आज भी एक ऐसे ही निर्मम और संवेदनहीन घटना सामने आई है, जिसमें सारे नियम कायदों को ताक में रखकर उत्तर प्रदेश के बुलडोजर संस्कृति को एक पत्रकार के खिलाफ छत्तीसगढ़ में प्रयोग किया गया है, घटना अंबिकापुर की है जहां आज सूर्य उगने के पहले भोर में ही एक पत्रकार घटती-घटना के संपादक अविनाश सिंह के कार्यालय और घर में बुलडोजर चलाकर घंटे भर के भीतर ही उस पत्रकार और उसके पुरखों की मेहनत और संपत्ति को चकनाचूर कर दिया गया, मिट्टी में मिला दिया गया । लाखों की आबादी वाले शहर में इकलौते घटती-घटना के संपादक के घर पर ही बुलडोजर चलाया गया, सरकार की नजर में यही एक मात्र नियम विरुद्ध घर था। ज्ञात हो कि उक्त पत्रकार ने पिछले कुछ महीने पहले प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल के खिलाफ और उनके निजी सचिव मरकाम के खिलाफ कई समाचार लगाया था, तब घटती-घटना को सरकारी विज्ञापन रोक देने और पूर्व में दिए विज्ञापन का भुगतान रोकने का आरोप लगाते हुए उक्त पत्रकार ने छत्तीसगढ़ सरकार के खिलाफ ‘‘कलम बंद हड़ताल’’ की घोषणा की थी और इस आंदोलन के तहत हुए पिछले महीने भर से लगातार अपने अखबार और सोशल मीडिया में सक्रिय था। घटती-घटना के पत्रकार अविनाश सिंह ने आज सुबह भूमकाल समाचार से बात करते हुए जानकारी दी की उन्हें 26 जुलाई की शाम को ही अचानक एक ही दिन में मकान और दुकान खाली करने का नोटिस दिया गया था, जिसके जवाब में उन्होंने नोटिस प्राप्त होने के तत्काल बाद उसी दिन उसने मामला कोर्ट में होने की सूचना देते हुए आवेदन देकर समय देने की मांग की थी, पर नोटिस मिलने के 36 घंटे के भीतर ही बिना समान हटाने का मौका दिए बिना सुबह-सबेरे पूरे मकान और आफिस में बुलडोजर चला दिया । ज्ञात हो कि पत्रकार अविनाश सिंह के पिता की मृत्यु हुए भी अभी एक सप्ताह नहीं हुआ है और उनके घर में मृत्युपरांत होने वाले संस्कार चल रहे है,अभी तेरहवीं भी नहीं हुई है, पता चला है कि इस घटना पर प्रदेश भर के पत्रकार आक्रोशित हैं और निकट भविष्य में सरकार के खिलाफ पत्रकार बड़ा आंदोलन करने की तैयारी में है,पिछली सरकार द्वारा पत्रकार सुरक्षा कानून के नाम पर पारित अधिनियम को भी ठंडे बस्ते में डाले जाने से प्रदेश के पत्रकार नाराज हैं। मैं हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में मजबूती से खड़ा रहा हूं, लड़ते रहा हूं, और अब अस्वस्थता के बाद भी इस लड़ाई में तमाम उन साथियों के साथ हूं, जो निर्भीक पत्रकारिता के पक्षधर हैं और पत्रकारिता का गला घोटने वाले इस अन्याय के खिलाफ लड़ना चाहते हैं, पत्रकार सुरक्षा कानून संयुक्त संघर्ष मोर्चा के संयोजक के नाते मैं प्रदेश भर के सभी पत्रकार, रिपोर्टर, संपादक,प्रधान संपादक, सभी पत्रकार संघ, प्रेस क्लब, प्रेस परिषद के सदस्यों,अध्यक्षों,उपाध्यक्षों व सभी पदाधिकारियों से निवेदन करता हूं कि इस लड़ाई में सक्रिय रूप से भाग लेकर प्रदेश में पत्रकारिता की आबरू को बचाए, पत्रकारिता को जिंदा रखने में सहयोग करें और वास्तविक पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने की दिशा में लड़ाई को मजबूत करें।

वरिष्ट पत्रकार फिरोज अंसारी ने कहा कि सच्चाई की राह में चलना वाकई में अब कठिन होता जा रहा है, पिता के मौत का दुःख अभी उतरा भी नहीं था की जिला प्रशासन की एक तरफा कार्यवाही निंदनीय,, अंबिकापुर सरगुजा बीते दिनों मानवता को तार-तार होते देखने का ताजा उदाहरण देखने को मिला,, अंबिकापुर के नमना कला में स्थित एक बेबाक,निडर, निर्भीक और निष्पक्ष हमेशा से सच्चाई का साथ देने वाला दैनिक अखबार घटती-घटना के दफ्तर और सह फर्म मिलन-जोन का होटल पर प्रशासन ने यूपी की तर्ज पर बिल्कुल फिल्मी स्टाइल में जहां पर बुलडोजर चलाकर चंद ही लम्हों में इमारत को जमींदोज कर दिया गया। क्या अब वर्तमान सरकार के खिलाफ सच्चाई लिखने का यही इनाम मिलेगा…अगर सच्चाई लिखने का यही इनाम है…तो निश्चित ही ये लोक तंत्र की हत्या है…यदि खराब सिस्टम के खिलाफ लिखना अपराध है तो यकीनन लोकतंत्र के लिए ये एक खतरा है…। सबसे बड़ी बात ये है कि प्रदेश की मीडिया मूक दर्शक होकर द्वेष पूर्ण कार्रवाई को देखती रही,प्रशासन ने उक्त अखबार के संपादक एवं घटती-घटना अखबार के पूरी टीम के साथ उस समय बदला लिया जब संपादक श्री अविनाश सिंह जी के घर में उनके पिता का निधन हुआ है,अभी दशगात्र भी नहीं खत्म हुआ।

वरिष्ठ पत्रकार आनंद शर्मा ने कहा छत्तीसगढ़ अंबिकापुर प्रशासन ने शोक दिवस पर ही व्यापारी प्रतिष्ठान तोड़ दिया। यह मामला डॉ. प्रिंस जायसवाल की फर्जी मास्टर ऑफ पब्लिक हेल्थ डिग्री से जुड़ा है। साबरमती यूनिवर्सिटी ने पुष्टि की है कि यह डिग्री फर्जी है। घटती-घटना अखबार में यह खबर प्रकाशित की जा रही थी, लेकिन डॉ. प्रिंस ने 27/05/2024 को जिला प्रशासन अंबिकापुर को आवेदन दिया कि घटती-घटना अखबार कार्यालय तथा व्यापारिक प्रतिष्ठान शासकीय भूमि पर अतिक्रमण कर बनाया गया है। इसके कुछ दिन बाद जनसंपर्क कार्यालय ने घटती-घटना अखबार के विज्ञापन मौखिक रूप से बंद कर दिए। घटती -घटना अखबार संपादक ने जब अधिकारियों से पूछा,तो उन्होंने बताया कि यह निर्णय स्वस्थ मंत्री के खिलाफ समाचार प्रकाशित करने के कारण लिया गया है। घटती-घटना अखबार के संपादक ने कलम बंद अभियान एक महीने से चला रखा था और आदरणीय प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री से न्याय की गुहार लगा रहे थे। संपादक ने कहा कि बेदखली से उन्हें आपत्ति नहीं है, लेकिन बेदखली के समय और तरीके का विरोध है। एक ओर भारत के प्रधानमंत्री देश जोड़ने का काम कर रहे हैं, पर वहीं मंत्री जी छत्तीसगढ़ सरगुजा संभाग में पार्टी की छवि को खराब किया जा रहा है।

पत्रकार विनीत मिश्रा ने कहा यह उदाहरण देखने को मिला अंबिकापुर के नमना कला स्थित एक बेबाक, निडर,निर्भीक और हमेशा सच्चाई का साथ देने वाला दैनिक अखबार घटती-घटना के दफ्तर और सह फर्म मिलन जोन होटल पर प्रशासन ने यूपी की तर्ज पर फिल्मी स्टाइल में बुलडोजर चलाकर चंद घंटे में जमींदोज कर दिया। क्या सच्चाई लिखने का यही नतीजा होता है सारे प्रदेश की मीडिया मूक दर्शक होकर द्वेष पूर्ण कार्रवाई को देखती रही, प्रशासन ने उक्त अखबार के संपादक एवं घटती-घटना अखबार के पूरी टीम के साथ उस समय बदला लिया जब संपादक श्री अविनाश सिंह जी के घर में उनके पिता का निधन हुआ है अभी दशगात्र भी नहीं खत्म हुआ और प्रशासन ने रविवार को सुबह 5ः00 बजे 6 बुलडोजर ले जाकर उनके दफ्तर और होटल पर खड़ा कर दिए। अब अगर बात कर लो प्रशासन की तो उनके द्वारा यह कहा गया की 70 डिसमिल जमीन पर अवैध अतिक्रमण था…तो मेरा एक पत्रकार होने के नाते प्रशासन से सीधा सवाल यह है…कि क्या अंबिकापुर शहर में केवल एक ही व्यक्ति के द्वारा अतिक्रमण किया गया है…क्या शहर में अन्य स्थानों पर अवैध अतिक्रमण नहीं है…अगर नहीं है तो कोई बात नहीं और है तो उन पर वर्षों से कार्यवाही क्यों नहीं हो रही…। वहीं अगर बात की जाए घटती-घटना अखबार के संपादक श्री अविनाश सिंह जी की या अखबार के पूरे टीम की तो बड़ी ही शालीनता से उन्होंने प्रशासन की इस क्रूर कार्रवाई को स्वीकार किया और बिल्कुल शांत और सौम्य स्वभाव से पूरी अतिक्रमण की प्रक्रिया को बैठकर देखते रहे,वहीं स्वास्थ्य मंत्री और सरकार के खिलाफ आवाज उठाने का परिणाम सरकार ने अपने तुगलकी फरमान से तो सुना दिया पर क्या छत्तीसगढ़ प्रदेश के सभी मीडिया संगठनों को इस तरह की क्रूर कार्रवाई के खिलाफ आवाज नहीं उठानी चाहिए। मैं विनीत मिश्रा जिला अध्यक्ष भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ सरगुजा प्रशासन द्वारा की गई इस कार्रवाई का पूर्णतः विरोध करता हूं और अविनाश भैया के साथ इस विषम परिस्थिति में भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ की सरगुजा इकाई सदैव तत्पर है।

पत्रकार प्रयण सिंह राणा ने इस घटना की निंदा करते हुए लिखा की कुटिल, कुत्सित तंत्र की शर्मनाक कुचाल…! छी…! घिन आ रही थी…आज एक होटल गिराने की कार्यवाही देखकर। क्या शर्म नहीं आई? उन अफ़सरों को जो आज कार्यवाही को निकले थे। ये जानते हुए कि होटल संचालक लोटा-छुरी (हिंदू मान्यता अनुसार चिता को अग्नि देने के बाद किया जाने वाला संस्कार) लिए सफ़ेद कपड़ों में बैठा है। जिसके पिता के चिता की राख भी ठंडी नहीं हो पाई थी। इतनी भी क्या जल्दी थी? क्या न्यायालय से भी अधिक शक्तिशाली दल-बल था आज का? न्यायालय भी ऐसे मामलों में मानवीयता का परिचय देती है। संभव है कि होटल शासकीय ज़मीन पर हो। हो सकता है होटल संचालक ने कब्ज़ा किया हो लेकिन इस शहर में कई ऐसी और भी तो ज़मीनें हैं…जिन पर रसूखदारों ने कब्ज़ा कर रखा है…उन पर कार्यवाही कब…? अफ़सरों की होटल गिराने की संजीदगी देखकर मंद बुद्धि बालक भी कह सकता था कि कार्यवाही विद्वेषपूर्ण है। किसी के इशारे पर है। आपको इल्म है ये क्यों हुआ? नहीं! मैं बताता हूँ इसका कारण क्योंकि पत्रकारिता वर्तमान युग का कोढ़ है। उसी तरह जैसे मध्यकालीन युग का कोढ़ सांप्रदायिकता थी। नतीजा दोनों का एक है। सांप्रदायिकता अपने घेरे के अंदर पूर्ण शांति और सुख का राज्य स्थापित कर देना चाहती थी,मगर उस घेरे के बाहर जो संसार था,उसको नोचने-खसोटने में उसे जरा भी मानसिक क्लेश नहीं होता था। ‘‘प्रजा अपने प्रतिनिधि कितनी ही सावधानी से क्यों न चुने, पर अंत में सत्ता गिने-गिनाए आदमियों के हाथ में चली जाती है।यह व्यवस्था अपवादमय, विनष्टकारी और अत्याचारपूर्ण है।’’ आदर्श व्यवस्था वह है, जिसमें सबके अधिकार बराबर हों, कोई मंत्री या अफ़सर बनकर तो कोई महान बनकर जनता पर रौब न जमा सके। ‘‘विधान-परिषदों में द्वितीय श्रेणी के राजनीतिज्ञ और तृतीय श्रेणी के विचारक एकत्रित हो गये हैं। इन्होंने केवल जनता का दमन किया है। अपने कुचालों से देश व राज्य को कलंकित किया है।’’ आज के तानाशाही रवैये ने हर उस व्यक्ति के ज़ेहन में विष की गाँठ बाँध दी है जो आज भी मुर्दों के इस शहर अंबिकापुर में जिंदा है। जिसमें सोचने-समझने की तनिक भी शक्ति बची है। जो सही को सही और ग़लत को ग़लत कहना जानता है। मेरा मानना है कि ‘धन्य है वह सभ्यता जो तानाशाही, अफ़सरशाही का अंत कर रही है। जल्दी या देर से दुनिया उसका अनुसरण अवश्य करेगी। हां, इस सभ्यता और उसके गुट के लोग अपनी शक्ति प्रदर्शन की लाख कोशिशें करेंगे लेकिन उसका विरोध भी होगा। जो सत्य है एक दिन उसकी विजय होगी और अवश्य होगी।

सामाजिक कार्यकर्ता अंचल ओझा इस पर कहा की कौन सही कौन गलत का फैसला सरकार, प्रशासन और समाज के ठेकेदार 15 दिन बाद भी कर सकते थे। शासकीय जमीन पर कब्जा 15 दिन बाद भी हटाया जा सकता था। किंतु इस फोटो को देखिये पिता को मुखाग्नि देने के बाद 13 दिनों के जो संस्कार भारतीय संस्कृति में हैं उसका नियमित पालन एक पुत्र कर रहा था,लेकिन तभी एकाएक यह हुआ कि जिस पुत्र ने अभी पिता का दशगात्र भी नहीं किया है जो पारिवारिक रूप से दुःखी है, विपरीत परिस्थितियों में है, जिसके सर से पिता का साया उठ चुका है। उसके व्यापार व व्यवसाय को नुकसान पहुचाने की सरकार की कायरता पूर्वक कार्यवाही कैसे होती है। मैं सदैव बोलता हूं भाजपा केवल धर्म के नाम पर राजनीति करती है,न तो उसे धर्म शास्त्र का ज्ञान है न हिन्दू धर्म का। अरे! यह हमारी संस्कृति का बड़पन्न है कि यदि हमारे पड़ोसी से हमारी नहीं बनती या किसी से कोई दुश्मनी है फिर भी हम ग़मज़दा परिवार के साथ आ खड़े होते हैं। लोग जानते हैं कि इनके यहां अभी कुछ टाइम चूल्हा नहीं जलेगा,कई तरह की मनाही है, इस पर तमाम विरोधाभास होने के बावजूद, दुश्मनी होने के बावजूद सहयोग का हाथ बढ़ाते हैं।ग़म के समय सबकुछ भूल कर उनके साथ खड़े होते हैं। किंतु सदैव धर्म और हिन्दू, हिंदुस्तान के नाम पर राजनीति चमकाने वाली पार्टी के लोग कैसे किसी को तबाह करते हैं,यह आज अम्बिकापुर ने देखा है। आज किसी के साथ घटित हुआ है कल किसी और के साथ भी होगा। बुलडोजर न्याय-अन्याय ऐसे ही होता है। यह फोटो बहुत कुछ बता रहा है। हाथ में लोटा-छुरी लिए,तन पर धोती लपेटा एक व्यक्ति प्रशासन और सरकार के उस मार को बर्दाश्त करने की तैयारी कर रहा है जो शायद कलम चलाने से उपजा है। शासकीय जमीन पर कब्ज़ा सरकार,प्रशासन, निगम कभी भी खाली करा सकती है, किन्तु व्यक्ति के विपरीत परिस्थितियों को देख कर 10-15 दिन का समय दिया जा सकता है, देश के न्याय व्यवस्था में यह बात दर्ज है। लेकिन शायद वह पुस्तकों तक ही सीमित है, जमीन पर हकीकत कुछ और है। अभी भी पीçड़त को अधिकार है कि वह न्यायालय शुरू होते ही इस कार्यवाही की पूरी शिकायत कर सकता है। वैसे मुझे लगता है यह जमीन की बेदखली का मामला न होकर एक राजनीतिक रंजिश है, जो सत्ता, पावर, सिस्टम के बल पर चल रहा है। अन्यथा इसी अम्बिकापुर में कई ऐसे व्यवसायिक प्रतिष्ठान हैं जो सरकारी जमीन पर काबिज़ हैं, लेकिन उधर न तो सरकार का ध्यान है,न प्रशासन का न निगम का। यह बदले की कार्यवाही से ज्यादा कुछ नहीं था। 35-40 सालों से अधिक का कब्जा था, इन 35-40 सालों में किसी ने न कब्जा करने से रोका न कभी कोई खाली कराने आया। लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ की 10-15 दिन की मोहल्लत तक नहीं दी जा सकती थी। ऐसी क्या आफ़त आ पड़ी थी कि बाहर से बकायदे इस होटल को गिराने मशीन लेकर आया गया। भोर में दबिश क्यों दी गई। सवाल कई है लेकिन जवाब किसी के पास नहीं है।

लक्ष्मी नारायण लहरे कवि/लेखक अपने कविता के माध्यम से भी इस घटना पर संदेश दिया और कहा कि क्यों न सच लिखूं …?
डर कर मैदान तो छोड़ सकता नहीं ?
मेरे कर्तव्य और अधिकार तो कोई छीन सकता नहीं
अंतिम व्यक्ति के लिए आवाज उठाना क्या गलत है ?
लिख तो रहा हूं तुम्हारे उत्सव और आंदोलन की खबर
फिर क्यों तुन्हें है मुझसे बैर
मैं भी तो आम आदमी हूं
बस एक पत्रकार हूं
क्या मेरे अधिकार नहीं है
मेरे अभिव्यक्ति तुम्हें चुभते हैं
कल ही तो छापा था तुम्हारे खुशी भरे खबर
क्या तुम्हारे सिर्फ उत्सव का खबर छपेगा ?
ऐसा क्या लिख दिया जो तुम्हें बुरा लग गया
घटती-घटना तो ही लिखा था
मैंने कोई तुम्हारी निजी जिंदगी पर क्या कोई टिप्पणी किया ?
मेरे तो आशियाने ही तोड़वा दिए
क्या मैं इतना गलत था
फिर पूरे देश के पत्रकार गलत हैं?
अगर सच लिखना जुर्म है साहिल
तो कौन भला है आज ?
कोई बेघर होने के लिए क्या पत्रकारिता करेगा
क्यों न सच लिखूं ?
क्या सच लिखने से अंजाम बुरा होगा
डर डर कर क्या पत्रकारिता होगी ?
क्या जुर्म, घटना, अत्याचार, भ्रष्टाचार, समस्या, पर लिख नहीं सकता
फिर देश का चौथा स्तंभ कहां है ?
ठीक कहते थे ललित सुरजन जी
पत्रकारिता को चौथा स्तंभ मैं नहीं मानता
डर कर पत्रकारिता अब छोड़ना पड़ेगा ?
पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कोई कानून ही नहीं
कौन भला अपना घर फूंकेगा
पत्रकार क्या आज स्वतंत्र है ?
अब अखबारों में सिर्फ और सिर्फ उत्सव छपेगा
ईमानदार को तो सजा मिलेगा
क्यों न सच लिखूं …?
सच तो लिखना ही होगा ?

उपेन्द्र गुप्ता, युवा पत्रकार, पीटीआई ने कहा अम्बिकापुर में आज दिनांक 28 जुलाई 2024 को दैनिक अख़बार घटती-घटना के मालिकानों द्वारा संचालित एक होटल और प्रेस की बाउंड्री को जिस तरह और जिस समय पर जमींदोज किया गया यह पहली नज़र में हीं द्वेषपूर्ण और बदले की कार्यवाही प्रतीत होती है। शहर में सैकड़ों कब्जाधारियों को अनदेखा कर एक अखबार संचालक के खिलाफ उस वक्त यह कार्यवाही की गई जब वह पितृ शोक से ग्रस्त हैं और लगातार वह प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री से संबंधित समाचार प्रकाशित कर रहे थे। प्रशासन की ऐसी बेदखली की कार्यवाही तब स्वागत योग्य जरूर होती, जब शहर में वर्षों से सरकारी बेशकीमती जमीनों पर काबिज नामचीन और पहुंच वाले लोगों के खिलाफ भी प्रशासन इसी तरह का रुख अपनाता।

अशोक ठाकुर वरिष्ठ पत्रकार रायपुर ने लिखा कि जिस हर्फ को बिखरना था खुशबुओं की तरह न जाने कैसे खो गए सियासत की फिजाओं में, मैं कोई शायर नहीं लेकिन सियासत का गंदा खेल और सियासतदारो के गूंगे बहरे पस्तदारो के गंदी सियासत ने मुझे यह शेर लिखने पर मजबूर कर दिया। मैं चाहता तो दुष्यंत कुमार जी की जीवंत शेर यह भी लिख सकता था,अब तो इस तालाब का पानी बदल दो। कमल के फूल मुरझाने लगे हैं,पर क्या करें। छत्तीसगढ़ के सियासत का हाल यह है कि कमल की डंडी को कुछ हाथ थामे हुए हैं। मेरा मानना यह है कि आज जितने भी पत्रकार हित की बात करने वाले संगठनों की दुकान चल रही है, और कुछ तथा कथित लोग चला रहे हैं। मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं कि सभी लोग गलत है लेकिन हां इसमें 95 फ़ीसदी लोग तो शासन के शरणागत है ,और 5 फ़ीसदी लोग अपनी बात पर जमे हुए अड़े हुए हैं। अभी चंद दिनों की बात है सरगुजा जिले से प्रकाशित होने वाली एक निष्पक्ष निर्भीक पत्रकारिता को आयाम तक पहुंचने वाली एक दैनिक समाचार-पत्र घटती-घटना के ऑफिस व वहां से लगे हुए एक इमारत पर शासन के इशारे पर प्रशासन ने कुचक्र रचकर जो दमनात्मक कार्यवाही करते हुए सच की आवाज को दबा देने का कुचक्र रचा वह किसी से छुपा नहीं है। संवेदनहीनता की पराकाष्ठा का आलम यह था दैनिक समाचार घटती-घटना के संपादक भाई अविनाश सिंह जी को कुछ दिनों पूर्व पितृशोक हुआ,हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों के अनुसार जब तक का कार्यक्रम ना हो तब तक घर के लोग किसी तरह के कोई कार्यक्रम मे शामिल नही होते व घर में भोजन तक नहीं बनाया जाता । इस अवसर का गलत फायदा उठाकर शासन के षड्यंत्रकारी सत्ता के मद में मदान्ध एक सत्ताधारी ने अपने रसूख का परचम लहराते हुए जो तोड़फोड़ की कार्रवाई कर अपनी कुमानसिकता का परिचय दिया जो की निश्चित तौर पर निंदनीय नहीं अतिनिंदनीय कृत्य नहीं अक्षम्य अपराध है। इस बात की खबर क्या मीडिया जगत को नहीं थी? अगर थी तो कोई मजबूरी थी। यार….यही मजबूरी एक दिन तुम्हें उस गर्त पर धकेल देगी जहां से आप कितने भी चीखोगे-चिल्लाओगे वहाँ कोई तुम्हारी आवाज सुनने वाला तक ना होगा। क्या यह तथा कथित नेताओं जो कि मीडिया के संचालन व पत्रकारों की हित की बात करते हैं इन संगठनो को इस कार्यवाही की खबर नहीं थी ? क्या उनके कानों में पिछले शीशे भर दिए गए थे? क्या सत्ताधीशों ने प्रशासन की आंखों में बिहार वाला गंगाजल डाल दिया था? अब मैं क्या कहूं और मीडिया जगत की दलाली करने वालों से मैं यह निवेदन करना चाहता हूं कि…दलालों,दलाली छोड़ दो…या फिर पत्रकारिता छोड़ दो…वरना तुम्हारा हश्र भी वही होगा जिसकी तुम आज तक कल्पना नहीं किया और आने वाली नस्लों की रूह कब जाएगी,जागो अब तो जागो भागना नहीं जागना जरूरी है।


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