कोरिया/रायपुर@ना अपील,ना दलील,सीधे चिकित्सक को कर दिया निलंबित स्वास्थ्य मंत्री के राज में यह कैसा बवाल?

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-रवि सिंह-
कोरिया/रायपुर 28 जून 2024 (घटती-घटना)। सिडनी रौलेट द्वारा पारित 1919 के रौलेट अधिनियम को काला कानून कहा जाता था, इस अधिनियम में नागरिक स्वतंत्रता को गंभीर रूप से सीमित कर दिया गया था, अधिनियम के अनुसार पुलिस किसी भी व्यक्ति को बिना किसी वारंट और गिरफ्तारी का कारण बताए बिना भी गिरफ्तार कर सकती थी। कुल मिलाकर इसे ही ना अपील ना दलील वाली कार्यवाही कही जाती थी, जिसका राष्ट्रपिता गांधी जी ने भी विरोध किया था। अब ऐसा ही हाल कोरिया जिले में भी देखने को मिला है जिसमें जिला चिकित्सालय के चिकित्सक को बिना पक्ष लिये निलंबित कर दिया गया है, निलंबन के बाद स्वास्थ्य विभाग में बवाल मच गया है, निलंबन कार्यवाही के बाद जिला चिकित्सालय के चिकित्सकों ने सीएस के बचाव में काम बंद कर दिया है, डॉक्टर्स एसोशियेशन के बैनर तले कलेक्टर कोरिया को ज्ञापन सौंपकर निलंबन रद्व करने की मांग की गई है। ज्ञात हो कि यह पूरी कार्यवाही प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल के निर्देशन में की गई थी जिसके बाद चिकित्सक लामबंद हो गए हैं इस कार्यवाही के बाद तमाम सवाल उठ रहे हैं।
ज्ञात होकी वर्तमान भाजपा सरकार के स्वास्थ्य मंत्री के छः महीने के कार्यकाल संपन्न होने के बाद व लगातार अनियमिताओं व भ्रष्टाचार की खबर प्रकाशन कर अवगत कराने के बावजूद अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई थी पर अचानक छः महीने बाद एक शिकायत पर नए-नए बनाए गए सिविल सर्जन को निलंबित कर दिया गया है,वह भी मरीज से पैसे की मांग करने की शिकायत पर, शिकायत पर जांच भी त्वरित हुई और कार्यवाही त्वरित की गई, यह स्वास्थ्य मंत्री के पड़ोसी जिले की पहली कार्यवाही है जिसकी सराहना भी हो रही है इसी प्रकार की कार्यवाही स्वास्थ्य मंत्री आगे भी करेंगे यह लोगों की उम्मीद है पर इस कार्यवाही के बीच कुछ बड़े सवाल भी खड़े हो गए हैं जो स्वास्थ्य मंत्री के लिए भी सोचनीय विषय है, वह विषय यह है कि पिछले छः महीने से कोरिया सीएमएचओ व तत्कालीन प्रभारी डीपीएम के विरुद्ध हुई कई शिकायतों व खबर प्रकाशन के बावजूद भी ना जांच हुई और ना कार्यवाही हुई, ऐसा लगा कि इन दोनों पर स्वास्थ्य मंत्री की विशेष कृपा रही और जिला प्रशासन की तो कृपा बरस ही रही है, इनके मामले में जांच कछुए की चाल से भी धीमी चल रही है वहीं पहली बार ऐसा देखने को मिला जब कभी तीव्र गति से जांच व कार्यवाही हुई जो सिविल सर्जन के मामले में हुई,जो अच्छी भी है और ऐसा होना भी चाहिए पर वही बाकी शिकायतों पर भी इसी प्रकार तीव्र गति से जांच व कार्यवाही होनी थी जो क्यों नहीं हुई क्या स्वास्थ मंत्री एवम जिला प्रशासन मुंह देखा देखी कार्यवाही कर रहे है?
आनन-फानन में दिया था निलंबित करने का निर्देश
गुरूवार को मामला सामने के बाद प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल द्वारा सीएमएचओ को प्रतिवेदन देने कहा गया था जैसा कि सूत्रों का कहना है। प्रतिवेदन देने में सीएमएचओ ने तत्परता दिखलाई,संबंधित चिकित्सक से किसी प्रकार का संवाद स्थापित नही किया गया और ना ही उनसे पक्ष लिया गया। बतलाया जाता है कि प्रतिवेदन मिलते ही स्वास्थ्य मंत्री के निर्देश पर विभाग द्वारा सीएस डॉ बंसरिया को निलंबित कर दिया गया। जिसके बाद चिकित्सक लामबंद हो गए हैं।
प्रदेश में बिगड़ी स्वास्थ्य विभाग की चाल
प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग इन दिनों ऐसे ऐसे कारनामों के लिए सुर्खियां बटोर रहा है,आए दिन स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी खबरें सामने आ रही है। प्रदेश भर में कंट्रोलिंग पावर खत्म हो गया है। दलाल और सप्लायर मंत्री के सलाहकार बन गए हैं। जबकि पार्टी पदाधिकारी और जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ता दर-दर भटक रहे हैं। मंत्री बंगले में दिखाने के लिए चाक चैबंद व्यवस्था की गई है,मुख्य द्वार पर सामान्य जनों से नाम,पता के साथ आने जाने के कारण का उल्लेख कराय जाता है जबकि दलाल और सप्लायरों के लिए इन सबकी छूट है। स्वास्थ्य विभाग का सिस्टम पूरे प्रदेश भर में बेपटरी हो चुका है लेकिन जिम्मेदार मंत्री को यह सब दिखलाई नही दे रहा है।
पूर्व डीपीएम के खास हैं सीएमएचओ इसलिए मिला वरदान
कोरिया जिले में नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ.आर एस सेंगर कांग्रेस सरकार में प्रभारी सीएमएचओ बनाए गए थे उन्हे कांग्रेस विधायक अंबिका सिंहदेव के चंगु-मंगु सलाहकारो ने सीएमएचओ बनवाने में मुख्य भूमिका निभाई थी जैसा सूत्रो का कहना है इसमे भी पूर्व डीपीएम प्रिंस जायसवाल की भूमिका थी। प्रदेश में सरकार बदल गई उसके बाद प्रभारी सीएमएचओ खुद को संघी और भाजपाई बदलाते हुए पाला बदलने में कामयाब हो गए। स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल को बना दिया गया,इसलिए डीपीएम प्रिंस जायसवाल ने रिश्तेदारी बतलाते हुए विभाग समेत सीएमएचओ को पूरी तरह से अपने कजे मे ले लिया। सीएमएचओ डॉ. सेंगर के कार्यकाल में कोरिया जिले में जिस प्रकार से भर्राशाही मची हुई उससे चिकित्सा स्टॉफ भी परेशान है। सारे चिकित्सक सीएमएचओ के खिलाफ लामबंद हैं,गुटबाजी चरम सीमा पर पहुंच गया है,मनमानी भर्ती भी की गई है। लेकिन ना जाने स्वास्थ्य मंत्री को यह सभी कमियां नजर क्यो नही आ रही है। सूत्रों का कहना है कि सीएमएचओ पूर्व डीपीएम के खास हैं इसलिए वे गलत करके भी सुरक्षित हैं। ऐसा नही है कि सीएस के मामले में वास्तविकता की जानकारी सीएमएचओ को नही है लेकिन गुटबाजी के कारण आनन फानन में बगैर पक्ष लिये ही कार्यवाही के लिए लिख दिया गया जो कि निंदनीय है।
यह था मामला
छत्तीसगढ शासन के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अवर सचिव मुकेश चैहान द्वारा 27 जून की शाम एक आदेश जारी किया गया जिसके अनुसार मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कोरिया के प्रतिवेदन अनुसार डॉ. राजेन्द्र बंसरिया अस्थि रोग विशेषज्ञ एवं प्रभारी सिविल सर्जन सह मुख्य अस्पताल अधीक्षक जिला चिकित्सालय बैकुंठपुर जिला कोरिया द्वारा मरीज का आपरेशन करने हेतु राशि की मांग की गई तथा मरीज के परिजन द्वारा राशि नही दिये जाने के कारण मरीज का ईलाज नही किया गया। डॉ. बंसरिया का उक्त कृत्य छग सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के नियम 3 का स्पष्ट उल्लंघन है। अतएव राज्य शासन द्वारा उन्हे निलंबित कर निलंबन अवधि में कार्यालय संभागीय संयुक्त संचालक सरगुजा संभाग अंबिकापुर संलग्न कर दिया गया था। यह निलंबन की कार्यवाही प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल के निर्देशन में की गई थी जैसा सूत्रों का कहना है।
कलेक्टर को सौंपा गया ज्ञापन, निलंबन रद्व करने की मांग
बिना जांच पड़ताल के स्वास्थ्य मंत्री के निर्देशन के बाद सीएस का निलंबन और फिर चिकित्सकों द्वारा सेवाएं बंद करना स्वास्थ्य मंत्री के लिए भी सवालिया निशान है,आखिर उनसे यह विभाग क्यों नही संभल रहा। निलंबन कार्यवाही के बाद कोरिया जिला चिकित्सालय के चिकित्सकों ने डॉक्टर्स एसोशियेशन के बैनर तले कलेक्टर कोरिया को हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन सौंपा है। जिसमें स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा की गई निलंबन कार्यवाही का संदर्भ देते हुए कहा गया है कि डॉ. राजेन्द्र बंसरिया सिविल सर्जन सह मुख्य अस्पताल अधीक्षक के साथ अन्यायपूर्वक एक पक्षीय कार्यवाही करते हुए निलंबन कर दिया गया है। उक्त पत्र में यह आरोप है कि उनके द्वारा एक मरीज के परिजन से ऑपरेशन करने के लिए धनराशि की मांग की गई है और धनराशि ना देने पर मरीज का ऑपरेशन नही किया गय। इस आरोप पर एकतरफा कार्यवाही करते हुए सीएमएचओ कोरिया द्वारा सचिव छग लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग रायपुर को डॉ. राजेन्द्र बंसरिया के विरूद्व अनुशासनात्मक कार्यवाही करने हेतु पत्र प्रेषित किया गया था। संघ द्वारा लिखा गया है कि इस प्रकरण में शासन के द्वारा जांच हेतु किसी भी तरह की टीम का गठन नही किया गया और न ही मौखिक या लिखित रूप से पत्राचार किया गया । यह कार्यवाही नियम विरूद्व है। स्वास्थ्य विभाग के पत्र पर धनराशि की मांग एवं उपचार ना करने के आरोप का निराधार बतलाते हुए चिकित्सकों ने कहा है कि ना तो मरीज से किसी प्रकार की धनराशि ली गई है और ना ही उपचार के लिए मना किया गया है। 27 जून को ही मरीज का ऑपरेशन किया गया है। चिकित्सकों ने कहा है कि इस अन्यायपूर्ण कार्यवाही के विरोध में जिला चिकित्सालय के समस्त चिकित्सक अपने समस्त चिकित्सकीय सेवयें को 28 जून से अनिश्चत काल के लिए बंद किया जा रहा है। चिकित्सकों ने मांग किया है कि डॉ. राजेन्द्र बंसरिया सिविल सर्जन सह अस्पताल अधीक्षक के विरूद्व जो निलंबन आदेश दिया गया है उसे शून्य किया जावे। चिकित्सकों ने हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन कलेक्टर को सौंपा है।
सिविल सर्जन के विरुद्ध हुई शिकायत पर त्वरित जांच कार्यवाही,पर वही पूर्व प्रभारी डीपीएम व सीएमएचओ के विरुद्ध कई शिकायतों पर क्यों नहीं हुई त्वरित जांच कार्यवाही?
सिविल सर्जन की शिकायत हुई और तत्काल जांच की जाकर कार्यवाही कर दी गई वह निलंबित हो गए वहीं पूर्व प्रभारी डीपीएम साथ ही सीएमएचओ के विरूद्ध असंख्य शिकायतों की जांच ठंडे बस्ते में डाले रखना क्या और किस ओर इशारा करता है। बताया जाता है की कोरिया जिले में पूर्व प्रभारी डीपीएम और सीएमएचओ ने जमकर भ्रष्टाचार किया है और उन्होंने मिलकर मरणासन्न मरीजों के नाम पर भी खरीदी कर ली है और जिसमे दवाइयां और मशीनें जांच की शामिल हैं। सूत्रों की माने तो कोरोना काल में तो एक तरफ लोगों की जाने जा रही हैं दूसरी तरफ स्वास्थ्य विभाग कोरिया खरीदी भर्ती और अन्य भ्रष्टाचार में भिड़ा हुआ था। किराए के गोदाम तक लिए गए और आपदा को अवसर बनाकर जमकर स्वास्थ्य विभाग के आबंटन का बंदरबांट किया गया। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में तो केवल भ्रष्टाचार ही हुआ,वहीं भर्ती में भी कूट रचित दस्तावेज के आधार पर भर्ती की गई जो शिकायत के अनुसार कहा जा सकता है। वैसे कांग्रेस शासनकाल से लेकर वर्तमान भाजपा शासनकाल के चार महीने तक कोरिया जिले में जो डीपीएम काम कर रहे थे वह भ्रष्टाचार के मुख्य जड़ थे वहीं उनकी कई शिकायतें भी हैं उनके विरुद्ध जांच की भी बात हो रही थी लेकिन जैसे ही स्वास्थ्य मंत्री से उनके चाचा भतीजे का रिश्ता वाला मामला सामने आया सारी शिकायतें ठंडे बस्ते में डाल दी गई और मामले को ठंडा करने के लिए पूर्व प्रभारी डीपीएम को सूरजपुर भेज दिया गया। वैसे जिसकी डिग्री जिसकी जाति प्रमाण-पत्र को लेकर भी शिकायत है उसके विरुद्ध निष्कासन सहित कानूनी कार्यवाही की बजाए उसे उपकृत किया जाना कहां तक उचित है यह बड़ा सवाल है।
वित्तीय अनियमितता अपार
अब तक जिला प्रशासन का ध्यान जिला अस्पताल में लोगो का ध्यान सिर्फ साफ-सफाई और चिकित्सकों के आने-जाने पर ही केंद्रित रहा है,नेताओ के दौरे के पहले अस्पताल को चकाचक कर दिया जाता रहा,परंतु वित्तीय कामकाज पर पर्दा डला रहता था, इनसाइड स्टोरी लगातार वित्तीय अनियमितता पर प्रहार कर रहा है, इसकी इन बानगी अब सबके सामने है, प्रभारी सीएस निलंबित हो चुके है। वही बीते 6 माह में 50 लाख से ज्यादा के काम बिना लोक निर्माण विभाग की तकनीकी स्वीकृति के आनन फानन में किए जा चुके है। जिसकी कोई जांच करने को तैयार नही है।
एक चिकित्सक बने ठेकेदार
सूत्रों की माने तो जिला अस्पताल में वैसे पहले से ही चिकित्सको की कमी है,ऐसे में एक चिकित्सक ठेकेदार बने हुए है,वो एक भी मरीज को नही देखते है,दिन भर निर्माण कार्य मे व्यस्त और रात होने पर जिला अस्पताल की तीसरी मंजिल में ऑफिस बन्द कर चेक काटने का काम चलता रहता है। मरीजों से कोई लेना-देना नही है। नए-नए बाबू भी इस अनियमितता में जमकर हाथ साफ कर रहे है।
मंत्री पद को व्यापार की तरह चला रहे स्वास्थ्य मंत्री?
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री का पद बहुत बड़ा जिम्मेदारी वाला पद होता है जिम्मेदारी के साथ ही जनता के हित में काम करने की शपथ भी इसीलिए ली जाती है। लेकिन प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री चुकि शुद्ध रूप से व्यापारी हैं उनका राइस मिल से जुड़ा लंबा चौड़ा व्यवसाय है इसलिए उनका आज तक का कार्यकाल देखा जाए तो यही लगता है कि वे मंत्री पद को भी व्यापारिक नजर से चला रहे हैं और उसी फायदे नुकसान को ध्यान रखते हुए काम किया जा रहा है।
जिस पर जिला प्रशासन व स्वास्थ्य मंत्री की कृपा क्या उस पर नहीं होगी त्वरित जांच कार्यवाही?
पूर्व प्रभारी डीपीएम कोरिया एवम वर्तमान में सूरजपुर प्रभारी डीपीएम के मामले में जिला प्रशासन और खुद स्वास्थ्य मंत्री मौन हैं,पूर्व प्रभारी डीपीएम की कई शिकायतें हैं जिनमे भ्रष्टाचार की ही शिकायतें ज्यादा हैं। अब लगता यही है की पूर्व प्रभारी डीपीएम को लेकर जिला प्रशासन और जांच दल हथियार डाल चुके हैं क्योंकि मामला विभागीय मंत्री के भतीजे से जुड़ा है। कुल मिलाकर न ही त्वरित कार्यवाही नजर आने वाली है इनके मामले में न ही कोई जांच ही होने वाली है। कुल मिलाकर पूर्व प्रभारी डीपीएम के मामले में एक ही कहवात चरितार्थ होती नजर आती है वह है सैयां भए कोतवाल तो डर काहे का।
प्रभारी डीपीएम के मामले में प्रशासन ने दिया खूब समय उन्हे फाइलों में लीपापोती करने का
पूर्व प्रभारी डीपीएम अपनी करनी पर पर्दा डालने सफल हो सकें इसलिए उन्हे खूब समय दिया गया। उन्हे कागजों दस्तावेजों में लीपापोती के लिए सीसीटीवी बंद करके भी मौका दिया गया जबकि उनका तबादला हो चुका था । यह सब कुछ केवल इसलिए उन्हे सुविधा मिली क्योंकि वह स्वास्थ्य मंत्री के भतीजे हैं। वैसे यह भी बताया जा रहा है की पूर्व प्रभारी डीपीएम की जगह कोई दूसरा व्यक्ति होता जो स्वास्थ्य मंत्री का भतीजा न होता तो वह जेल में होता क्योंकि दोष सिद्ध होना आसान मुश्किल नही था पहली जांच में ही सारा भ्रष्टाचार खुलकर सामने आ जाता।
स्वास्थ्य विभाग बना हुआ है कुबेर का खजाना,मरीजों के नाम पर उनके हक को छीनकर महल बना रहे जिम्मेदार
स्वास्थ्य विभाग कुछ लोगों के लिए कुबेर का खजाना बना हुआ है,कुछ जिम्मेदार लगातार इस खजाने को लूट रहे हैं जो मरीजों और जरूरतमंद लोगों के इलाज के लिए रखा गया खजाना है उससे अपने लिए महल बना रहे हैं अपने परिवार के लिए साधन सुविधा कमा रहे हैं। यदि आंखों देखी ही बात करें तो स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदारों को लेकर जांच की जाए तो सभी का महल भ्रष्टाचार की पोल खोल देगा क्योंकि घर की जगह सभी का महल है तैयार बना हुआ वहीं जितनी जिसकी सैलरी नहीं उससे ऊपर उसका और उसके परिवार का जीवन स्तर है। जल्द ही ऐसे लोगों का भी खुलासा होगा जो स्वास्थ्य विभाग में काम करते हुए वेतन तो कम पाते हैं लेकिन जिनका जीवन स्तर किसी राजा महाराजा से कम नही होता।
स्वास्थ्य मंत्री साबित हुए असफल या फिर वह जानबूझकर हैं मौन,स्वास्थ्य व्यवस्था प्रदेश में बद्त्तर,यह हर किसी की है जबानी
प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री या तो असफल साबित हो चुके हैं विभाग चला पाने में या तो वह जानबूझकर मौन हैं क्योंकि प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे है यह हर किसी की जबानी है। देखा जाए तो स्वास्थ्य व्यवस्था की जिम्मेदारी निभाने वाले पूरी तरह भ्रष्टाचार में डूब चुके हैं और जिन्हे यह तो मालूम है की भ्रष्टाचार कहां करना हैं लेकिन यह नहीं मालूम है की उनका काम सेवा क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। सेवा क्षेत्र में मेवा का खेल चल रहा है मरीज जान गंवा रहा है परेशान परिजन निजी अस्पताल जाकर लाखों गवां रहे हैं वहीं भ्रष्टाचारी उन्हे ही सुविधा देने करोड़ों अरबों डकार जा रहे हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है की यह लोग भगवान से भी नहीं डरते हैं और उन्हे यह भी डर नहीं की इन्हे एक दिन भगवान भी सजा दे सकता है क्योंकि वह मरीजों का हक घर ले जा रहे हैं बाल बच्चों को उसका स्वाद चखा रहे हैं।
प्रधानमंत्री क्या देंगे प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर ध्यान, क्या वह अपनी ही सरकार के कामकाज की करेंगे जांच?
देश के प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के विरोध में अभियान छेड़ रखे हैं। कांग्रेस सत्ता में थी प्रदेश में तो उन्होंने कई अभियान चलाकर कई भ्रष्टाचारियों को अंदर कराने का काम किया और जिनमे आईएएस अधिकारी भी शामिल थे वहीं अब जब उन्ही के दल की सरकार है और स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे है वहां पैसे की बंदरबांट हो रही है क्या वह जांच करवाएंगे क्या वह अपने ही शासन के मंत्री से सवाल जवाब करेंगे। वैसे अब यह तो तय हो गया है की स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति ऐसी है की पूरे प्रदेश में तो नहीं मंत्री जी के गृह संभाग की सभी विधानसभा सीटों पर इसका असर जरूर पड़ेगा और आगामी चुनाव में निश्चित ही संभाग में पार्टी का प्रदर्शन खराब होगा।
कांग्रेस ने बनाया था स्वास्थ्य विभाग को सोने की अंडे देने वाली मुर्गी,अब भी जारी है वही प्रथा
कांग्रेस की पिछली सरकार ने कैसे स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार किया कैसे उसने सोने की अंडे देने वाली मुर्गी बनाए रखा विभाग को सबकुछ ठेके पर डालकर जमकर मलाई खाया कोरोना काल में भी जमकर लूटा विभाग को मरते लोगों के हिस्से को भी नहीं छोड़ा वैसा ही अब भी जारी है यह विडंबना ही है की परिवर्तन का लाभ जनता को नहीं हुआ।
चिकित्सकों ने काम बंद किया
गुरूवार को सीएस डॉ. राजेन्द्र बंसरिया के निलंबन का आदेश कोरिया पहुंचा और देखते ही देखते सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर तैरने लगा। दूसरे दिन इस मामले पर तरह तरह की बातें सामने आने लगी जिसके बाद जिला चिकित्सालय के चिकित्सकों ने कार्यवाही को गलत ठहराया और चिकित्सकीय कार्य पूरी तरह से बंद कर दिया। जिला चिकित्सालय के ओपीडी में चिकित्सकों की गैर मौजूदगी से मरीज भी परेशान होते रहे। सिर्फ सिर्फ आपातकालीन सेवाओं को जारी रखा गया था।

कुछ सवाल
सवाल: सिविल सर्जन के विरुद्ध हुई शिकायत पर प्रशासन ने दिखाई तत्परता पर वहीं सीएमएचओ व पूर्व प्रभारी डीपीएम के विरुद्ध शिकायत पर क्यों नहीं दिखाई गई तत्परता?
सवाल: क्या जिसका स्वास्थ्य मंत्री से अच्छा संबंध उनकी जांच व कार्यवाही में होगा विलंब या उन्हें दिया जाएगा बचने का पूरा मौका?
सवाल: जिला अस्पताल में जारी वित्तीय अनियमितताओ पर कब खुलेगी प्रशासन की आंख और कब होगी कार्यवाही?
सवाल: सिविल सर्जन को नहीं मिला मौका पर सीएमएचओ और पूर्व प्रभारी डीपीएम को मिला भरपूर मौका क्या यही है निष्पक्ष कार्यवाही?


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