प्रतापपुर,@भीषण गर्मी के बाद भी क्या नदियों को संरक्षण की ओर दिया जाएगा ध्यान?

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सालों भर बहने वाली नदियां आखिर 3 महीने में ही क्यों सूख रही?,नदियां सिर्फ रेत माफिया की है या फिर प्राकृतिक का संरक्षण भी है जरुरी?


-प्रतापपुर-
प्रतापपुर,15 जून 2024 (घटती-घटना)। भीषण गर्मी से लोगों को निजात नहीं मिल रहा है वहीं लोगों को अब मानसून का इंतजार है पर अभी भी मानसून गर्मी को कम करने योग्य बारिश नहीं कर पाया है, जिस वजह से उमश भरी गर्मी भी अब लोगों को सताने लगी है। वहीं मौसम का मिजाज पल-पल में बदलता है पर वैसी बारिश नहीं हो रही जैसा बारिश का इंतजार है। जो बारिश हो रही है वह आंधी तूफान के साथ हो रही है जो और भी परेशानी लोगों के लिए बढ़ा रही है, कहीं आंधी तूफान लोगों के जीवन पर ही असर डाल रहे हैं तो कहीं व्यवस्था को ही चौपट कर रहे हैं। पेड़ खंबे तो आंधी तूफान की वजह से उखड़ जा रहे हैं। इस समय जनजीवन उमस भरी गर्मी से प्रभावित हो रही हैं।
इस भीषण गर्मी में विशालकाय नदियां भी सूख गई है। इस बार की गर्मी लोगों को हमेशा याद रहेगी, प्रतापपुर क्षेत्र की विशालकाय यह नदी घुमावदार होने के कारण अलग-अलग जगह पर कई नाम से जानी जाती है बाकी नदी भैंसमुंडा महान नदी, पतरंगी नदी, शाहिद राजघटा नदी, अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, इसका मुख्य कारण नदियों के अगल-बगल अतिक्रमण भी है। साथ ही नदियों का सीना चीरकर रेत तस्कर रेत के चोरी कर रहे हैं वही नदियों का जलस्तर निरंतर गिर जाने के कारण पर्वत पत्थर गिरे हुए आबादी क्षेत्र से जंगली क्षेत्र में नदियों का स्तर गिर जाने के कारण नदिया पूरी तरह सूख गई है। नदियों के संरक्षण की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं है सभी सिर्फ रेत का अवैध उत्खनन कर कमाई करने पर जुटे हुए हैं, संबंधित विभाग भी इस गर्मी से सीख नहीं ले रहा की नदियों का संरक्षण कितना जरूरी है, नदियों को देखकर ऐसा लगता है कि रेगिस्तान में पानी धुड़ाने जैसा है। किसी समय में 12 महीना यह कल कल बहने वाली प्राकृतिक सौंदर्य को चार चांद लगाती थी यह नदिया का बहाव निरंतर 12 महीना देखने को मिलता मिला करता था और पशु पक्षियों के लिए भी यह नदियां वरदान साबित होते थे पर इस समय तो नदियों का आनंद लेने के लिए इंसानों को तीर्थ पर जाना पड़ता है।
नदियों को बचाने का प्रयास क्यों नहीं?
आज यह नदिया पूरी तरह से वीरान होती जा रही है जहां शासन प्रशासन भी इन नदियों को बचाने का प्रयास करना चाहिए वहा पर वह मुख्य दर्शक बने बैठे है, इंसान अपने निजी स्वार्थ के वजह से नदियों का सीन चिरकर खनिज संपदा का दोहन करता रहा और आज यह विशालकाय नदिया जो की प्रतापपुर क्षेत्र में सबसे ऊपर पानी का जल स्तर मिलता था तथा जहां चारों तरफ खेती खलिहानी किसी किसान का खेत जल स्तर के वजह से संचित होता था पर अब वह अपना अस्तित्व खो रही है।
क्षेत्र के दर्जनों नदियां अपना अस्तित्व को रो रही,जिम्मेदार कौन ?
आज प्रतापपुर क्षेत्र के दर्जनों नदिया अपने अस्तित्व के लिए रो रहे हैं जिनका जिम्मेदार सिर्फ इंसान है आने वाला समय यदि ऐसा ही रहा तो बढ़ती गर्मी तेज धूप लगातार सूखने हुई नदियों का पानी कुआ तालाब एक दिन पूरी तरह से सूख जाएगा जिसका इंसान जिम्मेदार होगा, वही अधिकारी वही खनिज विभाग के अधिकारी के मिली भगत से क्षेत्र में अवेद्युत खनन जोरों शोरों से चल रहा है। जिससे जल संकट गहराता जा रहा है। पिछले सालों से यह दुर्दशा देख हर कोई चर्चा करता नजर आ रहा है कि यह जीवन दाहिनी नदी आखिर किस वजह से अपने अस्तित्व को रो रही है।


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