- पुलिस द्वारा ही वसूल किया गया सम्मन शुल्क हुआ चोरी आरक्षक ही निकला चोर, मामला हुआ दर्ज आरक्षक भेजा गया जेल
- आरक्षक ने विभाग के लापरवाही का उठाया फायदा और कोषालय में जमा होने वाले सम्मन शुल्क की कर दी हेरा-फेरी
- प्रदेश के वित्त मंत्री के निर्देश के बाद हुई छानबीन तो बड़ा घोटाला आया सामने
- क्या प्रदेश के बाकी थानों के द्वारा कोषालय में भी जमा की गई राशि में हुई होगी हेरा- फेरी? अब मामला जांच का विषय…
- सभी थाने के कोषालय भेजे जाने वाले सम्मन शुल्क की भी होनी चाहिए जांच…और भी हेरा-फेरी के मामले आ सकते हैं सामने
- आरक्षक फर्जी बैंक का सील बनाकर अपने ही विभाग को देता रहा धोखा और सम्मन शुक्ल का करता रहा गबन
-ओंकार पांडेय-
सुरजपुर,31 मई 2024 (घटती-घटना)। हर विभाग में हेरा फेरी के मामले सामने आते हैं पर एक पुलिस विभाग ही ऐसा विभाग है जहां हेरा फेरी के मामले सामने नहीं आते क्योंकि हेरा-फेरी के मामले जांच के लिए पुलिस के पास आते हैं और फिर मामले में सब सही हो जाता है पर इसी विभाग में हेरा फेरी हो जाए तो फिर सवाल उठना लाजमी है,पुलिस विभाग में इस बार हेरा फेरी का मामले सामने आया है और यह हेरा फेरी कहीं और नहीं सम्मन शुल्क वसूली की है,हर जिले के थाना क्षेत्र में मोटर व्हीकल अधिनियम के तहत जांच होती है और सम्मन शुल्क वसूला जाता है, पर यदि सम्मन शुल्क कोषालय में जमा न हो तो उसे चोरी कहा जा सकता है,कुछ ऐसा ही मामला सूरजपुर जिले का सामने आया है जहां पर 1766880 रुपए का सम्मन शुल्क कोषालय में जमा नहीं हुआ है बताया जा रहा है कि यह सम्मन शुल्क की रकम पिछले 8 साल में वसूले गए थे पर कोषालय में जमा नहीं हुए अचानक सरकार बदलने के बाद वित्त मंत्री के निर्देश पर जांच शुरू हुई तब इस बात का खुलासा हुआ। भले ही पुलिस ने सम्मन शुल्क मामले में कार्यवाही करके अपने पीठ थपथपा रही हो पर सम्मन शुल्क के गबन मामले में कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं, कहीं ना कहीं विभाग के ही लापरवाही सामने आ रही है कि आखिर 8 साल तक इस बात का भक विभाग को कैसे नहीं लगा? क्या विभाग जानती थी इसके बावजूद अनजान बनी हुई थी? क्योंकि ऑडिट भी हर साल होता है फिर भी यह मामला 8 साल के बाद खुलासा होना कहीं ना कहीं कई सवाल खड़े करता है? बताया यह भी जाता है कि ऊपर से यदि जानकारी नहीं मांगी जाती तो शायद या खुलासा नहीं हो पाता। इस प्रकार की गड़बड़ी से पुलिस विभाग की छवि भी काफी खराब हुई।
क्या हर साल कोषालय में जप्त राशि की होती है जांच?
वैसे सूरजपुर जिले के जयनगर पुलिस थाने के सम्मन राशि गबन मामले के सामने आने के बाद यह भी सवाल उठ खड़े हो रहे हैं की क्या हर साल वसूली राशि की जांच इस आधार पर संबंधित पुलिस थाना करता है की जत या वसूली गई सम्मन राशि कोषालय में जमा की गई है। यदि हर वर्ष जांच होती है तो आठ वर्ष बाद क्यों मामला सामने आया यह भी बड़ा विषय है। वैसे पूरे मामले में दोष एकमात्र किसी आरक्षक का नहीं कहा जा सकता क्योंकि प्रभारी की जिम्मेदारी प्रमुख होती है। उसने अपने अपने कार्यकाल में जमा राशि को लेकर क्या सत्यापन किया क्या जांच का प्रयास किया की राशि जमा हुई कोषालय में। वैसे अब एक आरक्षक पर मामला दर्ज हुआ है जो इस मामले में प्रभार सम्हालता था वहीं जांच का विषय यह भी होना चाहिए की वह अकेले इसमें संलिप्त था या अन्य भी इसमें भागीदार थे।
सूरजपुर का मामला सामने आने के बाद जिले के हर थानों के कोषालय में जमा होने वाली राशि के जांच की उठने लगी मांग
अब प्रदेश के हर पुलिस थाने के सम्मन राशि मामले की जांच की मांग उठने लगी है। सुरजपुर जिले से मामला सामने आने के बाद यह मांग उठ रही है वहीं यह संभावना जताई जा रही है की जरूरी नहीं यह एक ही जगह या पुलिस थाने में हुआ मामला हो हो सकता है की अन्य पुलिस थाने में भी इस तरह का गबन हुआ हो जिसका जांच अब आवश्यक हो गया है जिसकी मांग हो रही है।
आरक्षक ने कूटरचित दस्तावेजों के सहारे इतनी बड़ी गड़बड़ी को दिया अंजाम
जयनगर पुलिस ने बताया कि आरोपी आरक्षक दीपक सिंह पिता कामेश्वर सिंह वर्तमान में बिश्रामपुर थाने में पदस्थ था। वह माइनस कालोनी मर्टर नंबर 117 में रहता है। आरक्षक वर्ष 2016 से 2022 तक जयनगर थाने में पदस्थापना के दौरान कोर्ट मोहर्रिर का कार्य करता था। थाने द्वारा मोटर व्हीकल एक्ट के तहत वसूली गई समंश राशि,जिसे चालान के माध्यम से एसबीआई सूरजपुर शाखा से शासन के खाता क्रमांक 0041 में जमा किया जाना था, लेकिन आरक्षक ने शातिराना तरीके से कुल 55 प्रकरणों की राशि 17 लाख 66 हजार 860 रुपए बैंक खाते में जमा न कर चालान की प्रति में बैंक का फर्जी सील व मुहर लगाकर थाना व ट्रेजरी में जमा कर दिया गया था। 8 साल तक आरक्षक के इस गड़बड़ी की भनक तक किसी को नहीं लगी। पिछले दिनों ऑडिट के दौरान सूरजपुर पुलिस द्वारा जिला कोषालय में एसबीआई के चालान के माध्यम से जमा की गई राशि में भारी अंतर पाया गया। इसके बाद अलग-अलग थानों से जमा की गई राशि का बारीकी से मिलान किया गया,तब पता चला कि जयनगर थाने से जमा कराई गई राशि बैंक खाते में जमा ही नहीं हुई है। इससे हड़कंप मच गया। मामला आईजी व पुलिस अधीक्षक तक पहुंचा तो पड़ताल हुई। इसमें पता चला कि कोर्ट मोहर्रिर आरक्षक दीपक सिंह ने थाने से भेजी गई राशि को उस तिथि में बैंक में जमा ही नहीं किया है और फर्जी पावती थाने में जमा करा दी गई है।
क्या बाकी जिले के पुलिस थानों में भी हुआ होगा ऐसा घोटाला ?
जिस तरह सूरजपुर जिले के जयनगर पुलिस थाने से सम्मन शुल्क में गबन का मामला सामने आया है क्या उसी तरह अन्य जिलों के भी पुलिस थानों में भी सम्मन शुल्क में गबन हुआ होगा यह भी एक सवाल खड़ा हो रहा है। सवाल इसलिए भी खड़ा हो रहा है क्योंकि जब एक आरक्षक पूरे पुलिस थाने को ही आठ सालों तक गुमराह कर सकता है तो फिर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की अन्य जगह ऐसा नहीं हुआ होगा। अब मामले में सवाल यह भी है की क्या आरक्षक पूरे मामले में अकेले ही संलिप्त था या उसके साथ कोई और भी संलिप्त था वहीं प्रदेश के अन्य जिले के पुलिस थानों के सम्मन शुल्क में गबन नहीं हुआ है यह भी पुलिस को अब जांच करने की जरूरत है।
क्या थाने के कोषालय में जप्त राशि का उपयोग कर लेते हैं पुलिसकर्मी?
वैसे जयनगर के एक आरक्षक की सम्मन शुल्क राशि में गबन की बात से यह भी सवाल उठ खड़े हो रहे हैं क्या इसी तरह पुलिसकर्मी थाने में आने वाले सम्मन शुल्क का निजी उपयोग कर लेते हैं। जयनगर के आरक्षक की करतूत सामने आने के बाद यह बड़ा सवाल उठ खड़ा होता है की क्या पुलिस थाने में जत सामानों में भी सेंधमारी की जाती है क्योंकि जब लिखित रूप से नकद जत राशियों का ही गबन कर लिया जा रहा है वसूली राशियों का गबन कर लिया जा रहा है तो अन्य मामलों में भी ऐसा होता होगा इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
आरक्षक दीपक सिंह जयनगर थाना में पदस्थ रहते मोटरयान अधिनियम के तहत 8 वर्षो में वसूली गई शासकीय राशि 17,66,860 के गबन को दिया अंजाम
इस प्रकार थाना के रिकार्ड एवं जिला कोषालय अधिकारी सूरजपुर से प्राप्त सत्यापन रिपोर्ट पर से आरक्षक 537 दीपक सिंह के द्वारा थाना जयनगर में पदस्थ रहते हुये अपने शासकीय पदीय कर्तव्य के दौरान थाना जयनगर के मोटरयान अधिनियम के तहत वर्ष 2016 से वर्ष 2023 तक की अवधि में वसूल की गई शासकीय राशि कुल 17,66,860/- रूपये को भारतीय स्टेट बैंक शाखा सूरजपुर बैंक की फर्जी स्टाम्प सील एवं हस्ताक्षर कर कुटरचित दस्तावेज तैयार कर शासकीय मद की राशि का धोखाधड़ी कर गबन कर राशि को जमा नहीं किया गया जो आरक्षक दीपक सिंह का कृत्य प्रथम दृष्टया अपराध धारा 409, 420, 467, 468, 471 भादंसं के तहत पाये जाने से अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना कार्यवाही में लिया गया। विवेचना दौरान उक्त अवधि का बैंक से जानकारी लिया गया जो भारतीय स्टेट बैंक से वर्ष 2020 से 2022 तक की जानकारी प्राप्त हुई जो उक्त अवधि में राशि बैंक में जमा होना नहीं पाया गया है। प्रकरण में विवेचना से आरोपी आरक्षक दीपक सिंह पिता कामेश्वर सिंह उम्र 36 वर्ष निवासी माईनस कालोनी विश्रामपुर जिला सूरजपुर (छ0ग0) के द्वारा सदर धारा का अपराध घटित करना पाये जाने से उसके संबंध में अपराध कायमी की सूचना एवं आरक्षक को गिरफ्तार करने की अनुमति प्राप्त कर विधिवत् दिनांक 30/05/2024 को गिरफ्तार किया गया है।
भारतीय स्टेट बैंक शाखा सूरजपुर का सील एवं हस्ताक्षर किया हुआ चालान पावती लाकर थाना में प्रस्तुत किया गया पर राशि जमा नही हुई…
पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार थाना जयनगर का सम्मन शुल्क राशि जमा करने संबंधी वर्ष 01/2014 से 06/2017 तक का सत्यापन कराने प्रतिवेदन जिला कोषालय सूरजपुर को भेजा गया था जो कोषालय के द्वारा माह जनवरी 2014 से 31 दिसम्बर 2023 तक सूची अनुसार ईकोष डाटा में मिलान कर सत्यापन कर जानकारी प्रदाय किया गया जिसमें दिनांक 01/01/2014 से 30/03/2016 तक कुल 72 पृथक-पृथक चालानों के माध्यम से उक्त अवधियों में विभिन्न तिथियों में जमा की गई सम्मन शुल्क की कुल राशि 979400/- रूपये का ईकोष में डाटा नहीं खुलने के कारण सत्यापन नहीं किया जाना लेख किया गया है। इसी प्रकार 2016 से 2023 तक कुल 56 चालानों के माध्यम से विभिन्न तिथियों में मोटर यान अधिनियम के तहत वसूल की गई समन शुल्क राशि कुल 17,66,860/- रूपये को साईबर ट्रेजरी में जमा नहीं होना पाया गया, उक्त अवधि में अंकित राशियों को थाना जयनगर के रिकार्ड के अनुसार पूर्व में पदस्थ आरक्षक क्रमांक 537 दीपक सिंह पिता कामेश्वर सिंह जिसे नियमित कोर्ट कार्य डाक वितरण एवं सम्मन शुल्क की राशि बैंक में जमा करने हेतु लगाया गया था और जिसे उपरोक्त चालान दिनांक में उल्लेखित राशियों को जमा करने दिया गया था जो आरक्षक द्वारा जमा करने दी गई राशियों का भारतीय स्टेट बैंक शाखा सूरजपुर का सील लगा एवं हस्ताक्षर किया हुआ चालान पावती लाकर थाना में प्रस्तुत किया गया पर राशि जमा नही हुई। आरक्षक द्वारा प्रस्तुत किये गये उक्त सभी चालान पावतियों में आरक्षक का नाम एवं हस्ताक्षर किया हुआ है तथा मुख्य शीर्ष 0041, वाहनों पर कर लघु शीर्ष 800 अन्य प्रति योजना क्रमांक 0766 तथा मुख्य शीर्ष 001, वाहनों पर कर लघु शीर्ष 800 अन्य प्रति योजना क्रमांक 766 पर समन शुल्क जमा होना लेख है, चालान पावती वर्षवार संधारित सम्मन शुल्क रजिस्टर में चस्पा किया हुआ है, जिसका जिला कोषालय सूरजपुर द्वारा सत्यापन करने पर बैंक से उपरोक्त राशियों को कोषालय में जमा होना नहीं पाया गया।
8 साल तक कहां सोया था विभाग?
आठ सालों से एक पुलिस थाने का सम्मन शुल्क कोषालय में जमा नहीं हो रहा था और कूट रचना कर बैंक का फर्जी जमा पर्ची थाने के रजिस्टर में चस्पा किया जा रहा था और किसी को भनक तक नहीं लगी यह सोचने वाली बात है। आठ वर्ष तक विभाग कहां सोया हुआ था जिसे नींद से जागने का सुध तब आया जब वर्तमान वित्तमंत्री का इस संबंध में निर्देश जारी हुआ। कुल मिलाकर देखा जाए तो यह पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल है वहीं अमानत में खयानत जैसा विषय है। बता दें की आठ वर्ष से एक पुलिस थाने का सम्मन शुल्क गबन किया जा रहा था और इसकी जानकारी पुलिस थाने के प्रभारियों को भी नहीं हो पा रही थी जो उनके भी कार्यप्रणाली को संदेह के दायरे में लाती है जिसकी जांच होनी चाहिए।