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संपादकीय@पत्रकारिता का गिरता स्तर आने वाले समय के लिए चिंताजनक!

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लेख BY रवि सिंह:- पत्रकारिता का स्तर बहुत ज्यादा गिर चुका है या गिर रहा है, इन दिनों व्यापारी पत्रकार जिन्हें मठाधीश भी कहा जाता है ऐसे पत्रकार अधिकारियों और नेताओं के कैसे  करीबी दिख सकें इसकी इन दिनों होड़ मची हुई है। कोई लड्डुओं से तौल रहा है तो कोई अधिकारी की शादी का कार्ड बांट रहा है। सबसे मजे की बात ये है कि इन मठाधीशों ने पत्रकारों के हितों के लिए आज तक कुछ नही किया। पत्रकारिता का स्तर जिस तेजी से गिर रहा है उसे देखते हुए आने वाले समय में पत्रकारिता का क्या स्तर होगा यह एक चिंता का विषय बनता जा रहा है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाने वाला पत्रकारिता जगत अब जनप्रतिनिधियों सहित अधिकारियों की जी हुजूरी तक ही व्यस्त है और सच प्रकाशित करने की अपनी जिम्मेदारी से वह पलायन करता जा रहा है। लगातार देखा जा रहा है की लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अपने सिपाहियों के स्वार्थ सिद्धी की वजह से अपनी छवि धूमिल महसूस कर रहा है और दागदार समझ पा रहा है। आज इस क्षेत्र में पत्रकारिता क्षेत्र में काम करने की मंशा रखने वाले सबसे आगे अपना स्वार्थ रखते हैं जिससे इस क्षेत्र की गरिमा प्रभावित हो रही है। पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, ऐसा क्यों है इसके पीछे क्या कारण है यह भी जानना जरूरी है, लोकतांत्रिक व्यवस्था में जब यह आवश्यक होता है की जनता द्वारा चुनी हुई सरकार साथ ही सरकार सहित शासन के अंग नौकरशाह अपने पदीय दायित्व से विमुख होने लगें तब पत्रकारिता और इस क्षेत्र से जुड़े लोग उन्हे इसका एहसाह कराएं और उन्हे ऐसा करने से रोकने के लिए खबरों के माध्यम से सचेत करें। लेकिन देखने को इसके बिल्कुल विपरीत मिल रहा है, आज पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े लोग लोकतांत्रिक व्यवस्था में चौथा स्तंभ बनकर काम नहीं करना चाहते बल्कि वह राजनीतिक क्षेत्र सहित प्रशासनिक तंत्र के साथ मिलकर चलना चाहते हैं और उनके सही गलत सभी निर्णयों को मामलों को छिपाने और उन पर पर्दा डालकर अपना लाभ तय करना चाहते हैं।
आज पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े लोग अपने स्वार्थ सिद्धी में इस तरह मशगूल हैं की वह गलत को गलत लिखने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे हैं क्योंकि गलतियों में उनका हिस्सा बंधा हुआ है। निष्पक्षता भूल चुके हैं अधिकांश पत्रकार और उन्हे अब हर राजनीतिक साथ ही शासकीय मंच पर कुर्सियां चाहिए और अपना एक रुतबा चाहिए। राजनीतिक गतिविधियों सहित प्रशासनिक गतिविधियों में आज एक साथ कदम ताल करते नजर आने लगे हैं पत्रकार। कोई किसी नेता का ड्राइवर बनकर ही खुश हो रहा है अपना रुतबा ड्राइवर बनकर ही पा रहा है और कोई अधिकारियों के घर के आयोजनों के आमंत्रण बांटकर ही अपना महत्व समझ पा रहा है। अपनी लेखनी और अपनी निष्पक्षता के बलबूते कोई भी अब सम्मानित महसूस नहीं कर रहा है यह प्राय महसूस होने लगा है। नेताओं के कार्यक्रम में खबर के लिए पहुंचने पर भी आज पत्रकारों को मंच पर आसीन होना पसंद आ रहा है जबकि उन्हे अपने पेशे के अनुसार लोगों के बीच उपस्थित रहना चाहिए उनका मन भांपकर उसका प्रकाशन करना चाहिए। कुछ पत्रकार तो केवल मठाधीश बनकर पूरे इस जगत को ही मटियामेट करने में लगे हुए हैं। आज खबरों में वही खबर प्रकाशित हो रहे हैं जिनमें प्रशासन और राजनीतिक लोगों की सहमति है। जन्मदिवस,उत्सव कोई,उपलब्धि ही खबर बन चुकी है,कमियां,दोष और गलतियां इसलिए प्रकाशन योग्य नहीं है क्योंकि ऐसा करने पर लाभ प्रभावित होना तय है व्यक्तिगत। कार्यालयों में भी पत्रकार अपनी धमक और अपने रुतबे को केवल एक ही मामले में इस्तेमाल कर रहे हैं और वह है केवल स्वार्थ सिद्धी। आने वाले समय में यदि ऐसा ही कायम रहा तो यह क्षेत्र पूरी तरह बिचौलिया क्षेत्र साबित हो जायेगा जिसका काम बिचौलिया बनकर केवल समझौते का रह जायेगा जिसमें अपना हिस्सा भी तय होगा। शोषण, अपराध, अनियमितताएं, दोष, सहित अवगुणों का प्रकाशन पत्रकारिता क्षेत्र का अपना कर्तव्य है, लेकिन आज देखा जा रहा है की इसपर पर्दा डालना ही जिम्मेदारी बन गई है।
समय रहते इस जगत पत्रकारिता जगत के लिए इसके भविष्य के लिए सोचना होगा तब जाकर स्वस्थ समाज स्वस्थ सरकार और स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था की परिकल्पना साकार होती रहेगी। इस जगत के मान सम्मान को बरकरार रखने के लिए अब चिंतन जरूरी है। आज इस जगत का गिरता स्तर ही है की प्रतिदिन कई सोशल मिडिया पोस्ट नजर ऐसे आने लगे हैं जिनमे इस जगत का ही बहिष्कार किया जाने लगा है। आज लोग इस जगत को सम्मान की नजर से नहीं देख रहे हैं बल्कि इसे एक बिचौलिया मानकर तभी इस जगत से जुड़े लोगों से सम्पर्क करते हैं जब कोई बीच बचाव का रास्ता ले देकर जैसे शब्दों से जुड़ा उनके सामने आता है। अपनी लेखनी से कोई विषय हल कर पाने की क्षमता रखने वाला यह जगत अब निवेदन और चापलूसी के सहारे आगे बढ़ रहा है जिसे रोकना होगा। पत्रकार समाज में साथ ही व्यवस्था में एक आइने का काम करता है वह एक सचेतक की भूमिका में होता है एक निंदक भी होता है जो समय समय पर अपनी अलग अलग भूमिका में सामने आकर एक सुधारात्मक प्रयास अपनी लेखनी से करता है,उसकी लेखनी ही उसकी पहचान है जो उसे अन्य से अलग बनाती है लेकिन यदि पत्रकार लिखना ही छोड़ दे बिचौलिया बन जाए और अपने लिए ही केवल स्वार्थी होकर चलने लगे समाज और व्यवस्था में सुधार की गुंजाइश ही समाप्त हो जायेगी। अपनी भूमिका का नियमानुसार पालन करते हुए ही निष्ठापूर्वक पालन करते हुए ही पत्रकारिता को उसकी असल पहचान पुनः दिलाई जा सकेगी।


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