खड़गवां@प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खड़गवां की कुर्सी पर पदस्थ नेत्र सहायक का मोह नहीं जा रहा है वर्षों से…एक ही जगह पर जमे हुए हैं अंगद के पांव की तरह

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  • राजेन्द्र शर्मा –
    खड़गवां,05 फरवरी 2024(घटती-घटना)।
    प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खड़गवां की कुर्सी से लगता है पदस्थ नेत्र सहायक का मोह नहीं जा रहा है, जो नेत्र सहायक संविदा का सफर तय करने वाले नेत्र सहायक है जो पिछले आठ से दस वर्षों से भी अधिक समय से एक ही स्थान पर अंगद के पांव की तरह जमे हुए है। जबकि पूर्व एवं वर्तमान राज्य शासन द्वारा समय- समय पर शासकीय अधिकारियों व कर्मचारियों की सर्जरी की जाती रही है। कांग्रेस सरकार के शासन में राजनीतिक संरक्षण और कांग्रेस नेता के बहुत ही करीबी रिश्तेदार होने के कारण सत्ता पक्ष का पूरा संरक्षण प्राप्त था। और कांग्रेस की सरकार के समय आयुष्मान एवं खूबचंद बघेल योजना की प्रोत्साहन राशि में बड़े फर्जी वाडे के मामले में भी बड़े चर्चा में रहे और दो अलग-अलग आईडी से दो दो बार राशि आहरण करने की शिकायत भी कलेक्टर से लेकर राज्य शासन तक हुई मगर इन नेत्र सहायक की कांग्रेस शासन में ऊंची पहुंच के कारण प्रोत्साहन राशि में हुए फर्जी वाडे में जाच को आंच भी नहीं आई और जांच के नाम पर लीपापोती कर दिया गया है।
    नेत्र सहायक को खड़गवां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के बी एम ओ ने एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी दे रखी है वो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की सभी योजनाओ का लेखा-जोखा एवं दस्तावेजो की प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के सूत्रों से जानकारी मिल रही है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एकाउंटेंट के होने के बाद भी नेत्र सहायक को ये जिम्मेदारी आखिर क्यों दी गई है ?
    अब सवाल ये उठता है कि जब ये नेत्र सहायक चिकित्सक अपना कार्यालयीन समय एकाउंट और दस्तावेजो के कार्य में लगे रहता है तो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में आए आंख के मरीजों की कब जांच करता होगा जो 562 केस की जांच और आईपीडी में भर्ती कर इलाज करने के एवज में 135912.21 रूपए की राशि प्राप्त कर रहा इस तरह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खड़गवां में आयुष्मान एवं खूब चंद बघेल योजना के नाम पर करोड़ों रुपए का फर्जी वाड़ा किया गया है?
    जैसे अजगर को उसके जगह से हटाने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है, ठीक उसी किस्म के नेत्र सहायक साहब लगते है।लगता है इनको खड़गवां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का हवा-पानी कुछ ज्यादा ही भा गया है, इसीलिए खड़गवां का मोह नही छोड़ पा रहे है। इसकी दूसरी वजह यह भी है कि नेत्र सहायक साहब को यहां मन मुताबिक खजाने की जिम्मेदारी के साथ भारी-भरकम खरीदी का कमीशन भी धड़ल्ले से वसूल किया जा रहा है। खरीदी राशि से ये कहकर कमीशन की राशि का मांग किया जाता है कि कुछ देख लेना साहब के लिए?जब तक कमीशन की राशि नहीं मिलती खरीदी के बिल पड़े धूल खाते है। शासन-प्रशासन को इस तरह के मामलों को संज्ञान में लेते हुए वर्षों एक जगह पर पदस्थ अधिकारी कर्मचारियों को अन्यत्र करने की जरूरत है जिससे इस तरह के हो रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सके ?

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