- कोरिया जिले के स्वास्थ्य महकमे का अजीब कारनामा,मामला लाखों की हेराफेरी का
- जेल में रहते हुए भी मेडिकल स्टोर संचालक ने स्वास्थ्य विभाग में दवाइयों की की सप्लाई,कैसे?
- जेल में निरुद्ध मेडिकल स्टोर संचालक के रिश्तेदारों के भी मेडिकल स्टोर के लगे हैं फर्जी बिल… हुआ लाखों आहरण
- दवाइयों की खरीदी केवल कागज में,लाखों का फर्जीवाड़ा कर डीपीएम सहित सीएमएचओ कोरिया मौज में
- घड़ी चौक स्थित एक मेडिकल स्टोर का भी नाम आ रहा स्वास्थ्य विभाग के फर्जीवाड़े में शामिल,अधिकारियों की दवाइयों की होती है वहां से प्रदायगी
- स्वास्थ्य विभाग में मचा है बंदरबांट,लूट सको तो लूट की तर्ज पर चल रहा स्वास्थ्य विभाग
- आदर्श शासकीय स्वास्थ्य व्यवस्था का भरोसा क्या स्वास्थ्य मंत्री ऐसे ही अधिकारियों के भरोसे दे रहे हैं जनता को…
-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर,31 जनवरी 2024(घटती-घटना)। कोरिया जिले से स्वास्थ्य विभाग का एक नया कारनामा सामने आया है जो ऐसा कारनामा है की जिसको सुनने के बाद जिसकी जानकारी लगने के बाद किस तरह जिले के लोगों के स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए आने वाले बजट की राशि की बंदरबांट की जाती है समझा जा सकता है। जिले में कार्यरत प्रभारी डीपीएम साथ ही सीएमएचओ ने मिलकर यह कारनामा किया है जिसके अंतर्गत उन्होंने फर्जी खरीदी की है और बिल लगाकर लाखों रुपए दवाइयों के नाम पर आहरित कर आपस में बांट लिया है।
सूत्रों की माने तो बैकुंठपुर मुख्यालय में स्थित एक मेडिकल स्टोर का संचालक इस समय किसी मामले को लेकर जेल में पर वही उनके जेल में रहने के दौरान स्वास्थ्य विभाग ने बड़ा कारनामा करते हुए डीपीएम के सह पर लाखों रुपए की दवाई खरीदी कर ली, जिसका बिल उनके दस्तावेज में लगा हुआ है, सबूत दैनिक घटती-घटना के पास मौजूद है,दवाई खरीदी के साथ ही जिस मेडिकल स्टोर से खरीदी की गई है उस मेडिकल स्टोर के संचालक जो इस समय जेल में है व उसके रिश्तेदार के मेडिकल स्टोर से भी खरीदी स्वास्थ्य विभाग को कराई गई है अब सवाल यह उठता है कि जो संचालक जेल में है उसके मेडिकल स्टोर से खरीदी कैसे की जा सकती है? क्या यह फर्जीवाड़ा नहीं है या फिर यह जांच का विषय नहीं है? यदि जांच अधिकारी इस समय बैकुंठपुर स्वास्थ्य विभाग को जांच के दायरे में ले तो यहां पर भी करोड़ों का घोटाला सामने आ सकता है पर क्या जांच एजेंसियां इतने बड़े घोटाले की जांच कर पाएगी? जबकि शिकायतों की अंबार है, वहीं जिला प्रशासन की बात की जाए तो जिला प्रशासन के मुखिया ही डीपीएम के सामने नतमस्तक है जिस वजह से वह जांच करने में असमर्थ है, इस समय वह उनसे व्यवहार निभा रहे हैं और व्यवहार भी इतना बड़ा हो चला है की पारिवारिक संबंध एकदम मधुर हो चले हैं। जेल में रहने वाले संचालक सहित उसके रिश्तेदारों के बिल जो लगे हुए हैं सारे बिलों को जोड़ा जाए तो तकरीबन 25 लख रुपए की दवाई खरीदी की गई है दवाई खरीदी नहीं हुई सिर्फ बिल लगाकर पैसा निकाला गया। एक दवाई दुकान संचालक जो जेल में है वहीं जिसकी अनुपस्थिति में दवाई दुकान का संचालन ही नहीं होना था ऐसी दवाई दुकान से संचालक की अनुपस्थिति में खरीदी की गई जो प्रथम दृष्टया ही बड़ा फर्जीवाड़ा है। वैसे यह खरीदी पुरवर्ती सरकार के कार्यकाल में हुई है और अब जाकर उक्त मेडिकल स्टोर को सीलबंद कर दिया गया है लेकिन सवाल यह उठता है की क्या संचालक की अनुपस्थिति में उसके जेल में होने की स्थिति में उसकी दवाई दुकान से स्वास्थ्य विभाग द्वारा दवाइयों का खरीदी किया जाना जायज है क्या यह सही है? वैसे स्वास्थ्य विभाग कोरिया के डीपीएम जो जिले के आला अधिकारी के खास हैं उनके साथ जिले के मुख्य चिकित्सा एवम स्वास्थ्य अधिकारी भी हैं वह जो भी करें जायज है फिर भी पूरा मामला बड़ा फर्जीवाड़ा है जो समझ में भी आता है।
घड़ी चौक स्थित एक प्रतिष्ठित मेडिकल स्टोर से भी होती है स्वास्थ्य विभाग की खरीदी,बिल में अधिकारियों के घर की दवाइयों का भी होता है भुगतान-सूत्र
सूत्रों की माने तो स्वास्थ्य विभाग का फर्जीवाड़ा खासकर दवाई खरीदी मामले का फर्जीवाड़ा कई मेडिकल स्टोर के सहारे होता रहता है ,सूत्र बताते हैं इनमे से एक मेडिकल स्टोर घड़ी चौक का भी शामिल है,घड़ी चौक के मेडिकल स्टोर का बिल भी फर्जी तरीके से भुगतान होता है जिसमे उन दवाइयों के मूल्य का भुगतान भी होता है जो अधिकारियों का घर जाती हैं बताया जाता है की अधिकारियों के यहां वहीं से दवाइयां जाति है और इसीलिए उक्त मेडिकल स्टोर की हर बिल का भुगतान बिना किसी रोक टोक होता है।घड़ी चौक के मेडिकल स्टोर का बिल जिस भी राशि का प्रस्तुत हो सभी का भुगतान होना तय रहता है।
मरीजों को मिलने वाली सुविधाओं में बड़ा सेंध
कोरिया जिले के स्वास्थ्य विभाग में 25 लाख की जो खरीदी हुई है दवाइयों की वह जिला मुख्यालय के एक ऐसे मेडिकल स्टोर से हुई है जिसका संचालक लंबे समय से जेल में निरुद्ध है। जेल में निरुद्ध रहकर उसने कैसे स्वास्थ्य विभाग को दवाइयां उपलध कराई यह बड़ा सवाल है वहीं पूरी खरीदी कई मेडिकल स्टोर से की गई है जिसमे जेल में निरुद्ध मेडिकल स्टोर के ही संचालक के रिश्तेदारों के भी मेडिकल स्टोर शामिल हैं जो बिल देखकर समझा जा सकता है। पूरे मामले में सीएमएचओ सहित डीपीएम की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है क्योंकि खरीदी उन्हे ही करनी थी वहीं उनके ही अनुसार बिल का भुगतान होना था।
25 लाख की हुई खरीदी, जेल से मेडिकल स्टोर संचालक ने बेची दवाइयां
पूरी खरीदी 25 लाख की है जो अलग अलग मेडिकल स्टोरों से खरीदी हुई है। यह सभी मेडिकल स्टोर संचालक आपस में रिश्तेदार हैं जैसा सूत्रों का कहना है। दवाइयां खरीदी गई और बकायदा भुगतान हुआ जबकि एक मेडिकल स्टोर संचालक जेल में निरुद्ध था है उस समय भी अब भी। कैसे उसने जेल में निरुद्ध रहते हुए दवाइयां बेची यह भी बड़ा सवाल है। वैसे दवाइयां न खरीदी गई न मरीजों को मिली केवल बिल का भुगतान हुआ जैसा सूत्रों का ही कहना है। यह बड़ा फर्जीवाड़ा जो 25 लाख का है यह सुनियोजित था और इसके तहत केवल बिल प्रस्तुत कर आहरण किया गया राशि का जो बताया जा रहा है।
मरीजों के नाम पर फर्जीवाड़ा
25 लाख की दवाइयों की खरीदी मरीजों नाम पर फर्जी तरीके से की गई,खरीदी हुई नहीं केवल बिल लगाकर राशि निकाली गई ऐसा सूत्रों का कहना है,कुल मिलाकर मरीजों ने नाम पर अपनी जेब भरने का काम स्वास्थ्य विभाग कोरिया के जिम्मेदार अधिकारियों ने किया। जिम्मेदार अधिकारियों को जहां जांच का भी डर नहीं था और न किसी उच्च अन्य अधिकारी का वहीं उन्हे ईश्वर का भी भय नहीं था की वह तो सब देख रहा है और वह भी कहीं न कहीं यह देखकर चिंतित होगा की मरीजों के इलाज के नाम पर कैसे अपने पेट को भरने का इंतजाम कर रहे हैं मरीजों की चिंता का जिम्मा सम्हालने वाले अधिकारी।
बिल देखकर समझा जा सकता है की एक ही तरह से बने हैं सभी बिल,बिल बनाकर लगाना एक ही व्यक्ति का काम
दवाइयों की खरीदी मामले में जो बिल कई मेडिकल दुकानों के लगाए गए हैं जिनमे वह मेडिकल स्टोर भी शामिल है जिसका संचालक जेल में है को देखकर समझा जा सकता है की सभी बिल एक ही तरह के हैं और उसे देखकर लगता है की वह एक ही व्यक्ति द्वारा बनाकर लगाया गया बिल है। कुल मिलाकर फर्जी तरीके से मरीजों की दवाइयों के नाम पर बिल लगाकर राशि आहरित की गई वहीं राशि की बंदरबांट हुई,पूरे मामले में समझा यह भी जा सकता है की मरीजों के नाम पर उनके लिए स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर किस तरह गबन का खेल जारी है।