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बैकुंठपुर@क्या सिलफोड़वा जलाशय नहर के अतिक्रमण को हटा पाने में राजस्व विभाग सक्षम नही?

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क्या राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली भगवान भरोस
शिकायत के बाद भी नही होती कार्यवाही…मामला सिलफोड़वा जलाशय की नहर में अतिक्रमण से जुड़ा हुआ…

-रवि सिंह-
बैकुंठपुर 31 दिसम्बर 2023 (घटती-घटना)। कोरिया जिला के राजस्व विभाग की यदि बात की जाए तो यह विभाग एक ऐसा विभाग है जहां पर समय में कार्यवाही करने की उम्मीद नहीं की जा सकती, अब इसके पीछे की वजह क्या है यह तो संबंधित विभाग के पदों पर बैठे अधिकार ही जाने पर ऐसे कई मामले हैं जहां पर कार्यवाही का लोग इंतजार कर रहे है पर कार्यवाही कब होगी इसका तो पता नहीं? ऐसा ही एक मामला बैकुंठपुर तहसील से महज 4 किलोमीटर दूर भाड़ी चौक के पास स्थित एक जलाशय के नहर पर बने चौक अतिक्रमण का है जिसे पुरानी सत्ता शासन में आनन-फानन में बना दिया गया था, जो नियम विरोध था पर अब सवाल यह उठता है कि क्या नियम विरुद्ध बने चौक को हटा पाने में राजस्व विभाग सक्षम नहीं है? मामले को तकरीबन 6 महीने होने को है पर अभी तक राजस्व विभाग इस मामले में कार्यवाही नहीं कर पाया है, जबकि यह मामला शासन से जुड़ा मामला है और जल संसाधन विभाग द्वारा लिखित में दिया भी जा चुका है इसके बावजूद एक भी विभाग दूसरे विभाग के जमीन पर हुए अतिक्रमण को हटा पाने में नाकाम है। ज्ञात होकी प्रदेश में सुशासन के नारे के साथ नवगठित सरकार में मुख्यमंत्री ने कहा कि किसी भी तरह की शिकायत पर अविलंब कार्यवाही की जाए। खासकर जब अतिक्रमण के मामले हैं तो त्वरित कार्यवाही शुरू की जाए। मुख्यमंत्री का यह निर्देश शायद कोरिया जिले के लिए नहीं था क्या? इसीलिए बीते पांच सालों में शहर से लेकर गांव तक बेहिसाब अतिक्रमण को हटाने के लिए अब कोई भी कार्यवाही शुरू नहीं हो सकी है। हद तो यह है कि जिले में जल संसाधन विभाग की अनेक नहरों में दर्जनों लोगों ने अवैध रूप से पक्के मकान और अन्य निर्माण कर दिया है लेकिन अतिक्रमण हटाने के नाम पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हो पाई है। इस प्रकार के मामलों में राजस्व विभाग कुम्भकर्णी नींद में सोया रहा है। जल संसाधन विभाग के अलावा निजी तौर पर की गई अतिक्रमण की शिकायतें भी छह महीने से ठंडे बस्ते में हैं। राजस्व विभाग की बात करें तो इसकी कोरिया जिले में अलग ही पहचान बन गई है, यंहा मुख्यमंत्री, राजस्व कमिश्नर, कलेक्टर तक के निर्देश कचरे की टोकरी में डले हुए हैं। जिले में जनता के लाभ से जुड़े सीधे सीधे कार्यों को दरकिनार कर सिर्फ वही कार्य किए जाते हैं जिनमे अर्थलाभ जुड़ा हो। इसके लिए यंहा के राजस्व अधिकारी और कर्मचारियों की सक्रियता किसी से छुपी नहीं है। गेज जलाशय में करोड़ों रुपए मुआवजे के बांटने का मामला किसी से छुपा नहीं है।
नियम कड़े फिर भी डर क्यों नही?
यदि नियमो की बात करें तो छत्तीसगढ़ राज्य में लागू जल अधिनियम की धारा 32 के उपबन्धों के अंतर्गत,नदी,प्राकृतिक या कृतिम जलाशय और उसके नहर की भूमि पर अतिक्रमण करने वाले को गैर जमानती अपराध के तहत तत्काल एफ आई आर कर गिरफ्तार किया जाना चाहिए। परन्तु मुख्यालय से सटे ग्राम पंचायत भांडी में सिल्फोड़ा नहर की भूमि मामले में ऐसा कुछ भी होता नजर नहीं आ रहा है। अब जबकि सत्ता बदल गई है तो देखने लायक बात होगी कि राजस्व विभाग कब तक कार्यवाही शुरू करता है।
एनजीटी के नियम ताक पर
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यह कहता है कि जल से जुड़े हर स्रोत चाहे वह प्राकृतिक नदी, नाले, तालाब झील हों या फिर बनाए हुए तालाब, नहर, नाले या फिर सप्लाई चेनल, किसी पर भी कोई भी निर्माण की ना तो अनुज्ञा जारी की जा सकती है और ना ही किसी भी तरह का निर्माण कार्य किया जा सकता है एैसा किया जाता है तो संबंधितों पर दण्ड प्रक्रिया संहिता के तहत कार्यवाही होनी चाहिए और यह अजमानतीय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इस संबंध में कार्यपालन अभियंता ने पत्र लिखकर पहले ही एसडीएम बैकुण्ठपुर को अवगत करा दिया था, साथ ही यह भी स्पष्ट तौर पर लिखा था कि यह सारा निर्माण नहर की भूमि पर अतिक्रमण है। लेकिन कोरिया जिले में एनजीटी का निर्देष, कानून और वैधानिक कार्यवाही यह सब कुछ केवल कागज पर सीमित है।
यह है पूरा मामला
ग्राम पंचायत भांडी में एक चौक का निर्माण कार्य करने के लिए पांच लाख रुपए की घोषणा की गई थी। उक्त कार्य में ग्राम पंचायत भांडी को निर्माण एजेंसी बनाया गया था। ग्राम पंचायत ने बताया कि नहर की जमीन होने के कारण उक्त कार्य नही कराया गया है। परन्तु इसे लाभ का अवसर मानकर कुछ चुनिंदा लोगों ने 5 और 6 जून की दरम्यानी रात को अतिक्रमण कर दीवार घेरकर मूर्ति लगा दी। जब बात कलेक्टर के संज्ञान में आई तो उन्होंने जल्द अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिये। परन्तु वही हुआ जो परिपाटी बनी हुई है। कलेक्टर के निर्देश कूड़े के डिब्बे में डालकर मैदानी अधिकारी चैन की नींद सो रहे हैं। इसके बाद कई अखबारों में इस मामले की खबर प्रकाशित होने के बाद यह मामला आयुक्त सरगुजा सम्भाग श्रीमती शिखा राजपूत के भी जानकारी में आया और उन्होंने बैकुंठपुर एसडी एम को पत्र लिखकर एक सप्ताह में कार्यवाही करने के निर्देश दिए। परन्तु वह निर्देश भी कचरे के डिब्बे में शोभा बढ़ा रहा है। अब तक इस मामले में कोई अपराध दर्ज नहीं कराया गया है और न ही अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही पूरी हो सकी है तो अब जबकि जल संसाधन विभाग के आवेदन पर ही कार्यवाही की यह स्थिति बनी हुई है तो सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है कि राजस्व विभाग में आम आदमी की कितनी सुनवाई होती होगी।
राजस्व विभाग से लगातार पत्राचार के बाद भी कानों में जूँ तक नहीं रेंगा
इसी तरह के एक मामले में जल संसाधन विभाग अपनी नहर की जमीन बचाने के लिए राजस्व विभाग से लगातार पत्राचार कर रहा है परन्तु एस डी एम और तहसील कार्यालय से उस पर छह महीने से कोई कार्यवाही नही हुई है। जल संसाधन विभाग के कर्मचारियों ने बताया कि जून के पहले हफ्ते में सत्ता के करीबी कुछ ताकतवर लोगों ने आधी रात को सिल्फोडा नहर के ऊपर पक्का निर्माण कर दिया। जब इसकी सूचना और प्रतिवेदन एसडीएम बैकुंठपुर को दिया गया तो उन्होंने इसे अपने अधीनस्थ तहसीलदार बैकुंठपुर को भेज कर मामले को टाल दिया। इसके बाद अवैध निर्माण कार्य के सम्बन्ध में कलेक्टर कोरिया के संज्ञान में मामला होने के बावजूद तहसीलदार छह महीने में अतिक्रमण हटाने के लिए आदेश जारी नहीं कर पाई हैं। बैकुंठपुर तहसील कार्यालय में किस तरह से प्रभाव और पैसे का बोलबाला है यह किसी से छुपा हुआ नही है। यंहा अवैध कब्जा करने वाले दमदार लोगों ने सत्ता का दबाव बनाकर पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डलवा दिया था। जल संसाधन विभाग के दो पत्रों के बाद भी आज तक सिल्फोडा जलाशय की माइनर नहर पर अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही का आदेश जारी नही किया जा सका है। तहसील कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि इसमें पुरानी सत्ता से जुड़े हुए एक जनप्रतिनिधि ने विशेष दबाव बनाया हुआ था और इस वजह से अब तक न तो अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही हो पाई है और ना ही अतिक्रमण करने वाले लोगों के खिलाफ अपराध दर्ज किया गया है।


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