लेख@ प्राकृतिक संसाधन की सुरक्षा हमारी नैतिक जिम्मेदारी

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धरा में नदियों को स्वर्ग के समान आनंद प्रदाता समझा जाता है,और वास्तव में प्रकृति ने पूरे जैव समुदाय को एक अनुपम उपहार नदी भेंट किया है। नदी की पवित्र बहती कल-कल जल धारा धरती की सुंदरता पर चार चांद लगाता है। जहां जहां से होकर नदी गुजरती है उस स्थान को हर दृष्टि कोण से समृद्ध करती है,और वहां के रहवासी को संपन्न करती है।नदी की जलधारा कहीं पर बांध को निर्मित करती है, तो कहीं पर्वत पर अपना स्वरूप को बदल कर जलप्रपात के रूप में परिणित हो जाती है। सिंचाई का एक महत्वपूर्ण साधन नदी और नदी पर बना बांध की जल है।धरा की श्रृंगार में नदी की अनुपम योगदान को विस्मित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि धरा पर खेत खलिहानों पर, मैदानों की हरियाली में नदी की जल का भी एक महत्वपूर्ण योगदान रहता है।
नदी का स्वरूप आज बदलते जा रहा है‌ और इसमें प्रकृति का योगदान तो नहीं पर मानवीय क्रियाकलाप निश्चित तौर पर जिम्मेदार है।एक जमाने में नदी की पानी को सबसे पवित्र समझा जाता था और प्रत्यक्ष रूप रूप से नदी पेय जल स्रोत हुआ करता था पर आज नदी का जल प्रदुषित होते जा रहा है और मानव नदी के जल का उपभोग पीने मे प्रत्यक्ष रूप से नहीं करता।
आज पर्यावरण संरक्षण पर शासन और समाज के द्वारा कई योजनाएं संचालित हो रही है पर पहले हसदेव और वर्तमान मे हैदराबाद में पेड़ की अंधाधुंध कटाई विश्लेषण योग्य बातें हैं, जो आम नागरिक को सोचने के लिए मजबूर कर देता है। पर्यावरण संरक्षण का अभिप्राय पर्यावरण दिवस, जन्म दिवस या किसी के स्मृति में केवल एक वृक्षारोपण कर देने से कतई नहीं लगाना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण के लिए बहुत सारी बातें को अपनी व्यवहार में शामिल करना होगा, जैसे बाजार गये वहां कभी भी पालीथिन से कभी कोई समान ना मांगे,साल में कम से कम एक पौधा रोपें और बढ़ते तक उनको संरक्षण प्रदान करें,किसी वस्तु को ना जलाएं,खेती में हम जैविक खेती को अपनाएं, सामूहिक भोग में प्लास्टिक से बने दोना पत्तल का प्रयोग ना करें इनके स्थान पर पौधें की पत्ते या थाली का उपयोग करें, ऊर्जा गत कार्यो के लिए सौर ऊर्जा का उपभोग हम करें, वृक्षों की कटाई पर हम हस्तक्षेप करें इस प्रकार हम छोटी छोटी बातों को ध्यान में रखेंगे तभी हम पर्यावरण संरक्षण को परिभाषित कर पायेंगे।
‌ आज हम अपनी स्वार्थ के लिए प्रकृति के साथ खेलते जा रहें हैं,जैसे औद्योगिककरण के लिए वनों की कटाई, बेजुबान जानवरो पर प्रयोग के तौर पर कृत्रिम गर्भाधान की प्रक्रिया, अधिक पैदावार हेतु रासायनिक खाद का प्रयोग, भू गत जल का अनियंत्रित दोहन तथा भू खनिज हेतु भू उत्खनन तथा‌ प्राणियों को मार कर हम सौन्दर्य संसाधन बनाते हैं।
प्रकृति से जितने भी संसाधन हमे मिला है, वह सारे हमारे और हमारे आने वाले पीढ़ी के लिए अद्वितीय वरदान है। प्रकृति प्रदत्त सारे संसाधन चाहे वह जैव हो या अजैव सबको सुरक्षित रखना हम सब के नैतिक जिम्मेदारी है। प्रकृति प्रदत्त संसाधन की सुरक्षा पूरे जैव समुदाय की सुरक्षा है,और यदि यह सुरक्षित नहीं है तो ना हम सुरक्षित है और ना ही हमारे आने वाले पीढ़ी सुरक्षित रहेगें,यह तथ्य हमें अपने जहन में सदा के लिए उतार लेना चाहिए।
लक्ष्मीनारायण सेन
खुटेरी गरियाबंद (छ.ग.)


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