लेख@ सिक्ख और हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार वैशाखी

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भारत वासियों द्वारा वैसे तो सारा साल कोई ना कोई त्यौहार मनाया ही जाता है जैसे होली, दशहरा, दिवाली आदि! लेकिन इन त्योहारों में से बैसाखी का नाम लिए बिना त्योहारों की लिस्ट अधूरी ही रह जाएगी। यह मुख्य तौर पर हिंदुओं और सिखों द्वारा पंजाब,हरियाणा,दिल्ली, हिमाचल प्रदेश तथा देश के बहुत सारे भागों में जोश और खरोश के साथ मनाया जाता है। बैसाखी का त्यौहार हर साल 13 अप्रैल को ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन नगर कीर्तन, नगर जुलूस निकाले जाते हैं, सिख धर्म को मानने वाले श्रद्धालुओं द्वारा इसे शहर के किसी गुरुद्वारे से शुरू करके सारे शहर के विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों से जुलूस की शक्ल में मनाया जाता है। जुलूस के रास्ते में शरबत आदि पिलाए जाने की शानदार परंपरा है। इस दिन और दिनों की तरह गुरुद्वारों में लंगर भी चलाए जाते हैं।
बैसाखी का त्यौहार विशेष महत्व रखता है क्योंकि इस दिन सिखों के दसवें गुरु श्री गोविंद सिंह जी द्वारा सिख पंथ की नींव रखी गई थी उन्होंने विभिन्न समुदायों में से 5 प्यारे की प्रथा शुरू करके जाती पाति की परंपरा को खत्म करने की कोशिश की थी। उन्होंने सिखों को खालसा कहकर उन का मान बढ़ाया था, खालसा का मतलब होता है शुद्ध। उन्होंने सिखों के लिए 5 क का अनुसरण किए जाने पर जोर दिया था। पांच क का मतलब है,,, केश, कंघा, कड़ा, कच्छा और कृपाण। सिख धर्म को माननेवालों के लिए इनका अनुसरण करना एक विशेष महत्व रखता है। वैशाखी वाले दिन खालसा पंथ की स्थापना करके उन्होंने मुगलों के द्वारा किए जाने वाले दमन,धर्मांतरण तथा अन्याय के खिलाफ तलवार उठाने का आह्वान किया था और धर्म की रक्षा के लिए कोई भी बलिदान किए जाने के लिए तैयार रहने की बात कही थी। गुरु गोविंद सिंह द्वारा अपना सारा जीवन त्याग, बलिदान तथा विद्वता मैं ही बिता दिया। धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने अपने पिता, गुरु तेग बहादुर,अपने चारों बेटे और अपनी माता का बलिदान करवा दिया। इस तरह वैशाखी का दिन हम सबको दशमेश पिता, गुरु गोविंद सिंह की त्याग,बहादुरी तथा बलिदान की गाथा सुनाता है। लगभग 208 दूसरे देशों में 1.3 करोड़ भारतीय रहते हैं जिनमें से बहुत सारे सिख समुदाय से संबंध रखते हैं! यह लोग सिख परंपरा के अनुसार हर साल 13 अप्रैल को बैसाखी का त्यौहार धूमधाम से मनाते हैं! सिख धर्म से संबंधित बहुत सारे गुरुद्वारे पाकिस्तान में स्थित हैं जिनमें बैसाखी वाले दिन इस धर्म को मानने वाले लोग बहुत श्रद्धा और जोश के साथ माथा टेकने आते हैं और वैशाखी का त्योहार मनाते हैं! कहना न होगा कि सिख धर्म के संस्थापक, श्री गुरु नानक देव जी का जन्म पाकिस्तान में ननकाना साहब में हुआ था जहां पर उनकी याद में बने गुरुद्वारे में बैसाखी वाले दिन सिख समुदाय के लोग भारत तथा अन्य देशों से माथा टेकने तथा अपने श्रद्धा पुष्प अर्पित करने के लिए जाते हैं
हम भारतीयों के लिए वैशाखी का दिन एक और कारण से भी महत्वपूर्ण है! 13 अप्रैल,1919 वाले वैशाखी के दिन पंजाब के अमृतसर में जलिया वाले बाग में एकत्रित हुए अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त करने वाले भारतीयों पर राक्षस रूपी, जनरल डायर ने बिना चेतावनी के अंधाधुंध गोलियां की बरसात करके लगभग 1000 पुरुषों,स्ति्रयों और बच्चों को बेमौत मरवा दिया था तथा लगभग 15 सौ लोगों को घायल करवा दिया था! इसके फलस्वरूप अंग्रेजों से आजादी प्राप्त करने के लिए देश में और जोश तथा अंग्रेजों के प्रति घृणा बढ़ गई! अमृतसर में जलियां वाले बाग में हर साल 13 अप्रैल बैसाखी वाले दिन इन स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
भारत में मनाए जाने वाले अधिकांश त्योहारों की विशेषता यह है कि आमतौर पर फसलों के काटने के बाद ये त्योहार मनाए जाते हैं। क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है अतः लोगों के पास फसलों के काटने के बाद बहुत सारे पैसे आ जाते हैं और लोग इसके बाद इसे किसी ना किसी त्योहार के तौर पर हर्षोल्लास के साथ खर्च करते हैं। बैसाखी का त्यौहार भी बिल्कुल ऐसा ही है। आमतौर पर गेहूं मार्च के महीने के मध्य से जाती है और बाद में यह सिलसिला कुछ समय के लिए चलता रहता है जिसके फलस्वरूप 13 अप्रैल वाले शुभ दिन बैसाखी का त्यौहार मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा में बैसाखी वाले दिन गुरुद्वारों में लोग माथा टेकते हैं और मेले लगते हैं जहां पर बच्चे, बूढ़े और जवान सभी श्रद्धालु शामिल होते हैं।और लंगर चलते हैं।
बैसाखी का त्यौहार केवल पंजाब और हरियाणा मैं ही नहीं मनाया जाता और ना ही केवल यह सिख धर्म को मानने वाले लोगों का त्यौहार है बल्कि यह त्यौहार देश के अलग-अलग भागों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। असम में इसे रोंगली बिहू, उड़ीसा में महा विश्व संक्रांति, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में उगा बी, तमिलनाडु में पुथन डू और केरल में कृष के तौर पर मनाया जाता है। इस तरह बैसाखी का त्यौहार एक प्रादेशिक या राष्ट्रीय त्योहार ही नहीं बल्कि इसका मनाना देश से बाहर के देशों में भी फैला हुआ है! यह त्यौहार भारतीय परंपरा, रीति-रिवाजों तथा सभ्यता का द्योतक ही नहीं बल्कि इनका प्रचार तथा प्रसार करने वाला भी है। सभी त्योहारों की तरह हमें वैशाखी के त्यौहार को भी सादगी, भाईचारे तथा परंपरागत तरीके से मनाना चाहिए।
प्रोफेसर शाम लाल कौशल
रोहतक-124001( हरियाणा)


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