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नई दिल्ली@ डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन कानून को लेकर टकराव

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@ डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन कानून को लेकर लामबंद हुआ विपक्ष
@ 120 सांसदों ने ज्ञापन पर किए हस्ताक्षर…
@ विपक्ष ने डिजिटल डेटा सुरक्षा कानून पर चिंता जताई…
@ आरटीआई कार्यकर्ताओं ने नए कानून को कमजोर बताया…
@ विपक्षी नेताओं ने केंद्रीय मंत्री को ज्ञापन देने की योजना बनाई…
नई दिल्ली,10 अप्र्रैल 2025 (ए)।
साल 2023 में पारित हुए डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट को लेकर विपक्षी दल लामबंद हो गए हैं। इंडिया अलायंस के घटक दलों का आरोप है कि मौजूदा रूप में कानून राइट टू इनफार्मेशन को कमज़ोर करता है। इसके साथ ही इसमें किए गए बदलावों के चलते ये कानून नागरिकों के अधिकार और प्रेस फ्रीडम के लिए घातक साबित होगा। इंडिया गठबंधन की ओर से एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया गया कि इस कानून की धारा 44(3) को निरस्त करने की मांग करने वाला एक ज्ञापन केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव को दिया जाएगा।
विपक्ष के इन नेताओं ने की प्रेस कॉन्फ्रेंस
हाल ही में सरकार ने कहा है कि पीडीपीडी कानून के नियम 6-8 हफ्तों आखिरी रूप में आ जाएंगे, जिसके बाद उन्हें नोटिफाई कर दिया जाएगा। विपक्ष की ओर से कि इस साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में डीएमके के एमएम अब्दुल्ला, शिवसेना यूटीबी की प्रियंका चतुर्वेदी, सीपीएम के जॉन ब्रिटास, समाजवादी पार्टी के जावेद अली खान और राष्ट्रीय जनता दल के नवल किशोर शामिल थे।
ज्ञापन पर 120 से ज्यादा विपक्षी सांसदों के हस्ताक्षर
मणिपुर पर अविश्वास प्रस्ताव के बीच इसे ऐसे में इस पर व्यापक चर्चा नहीं हुई। सरकार को दी जाने वाले इस ज्ञापन पर 120 से ज्यादा विपक्षी सांसदों के हस्ताक्षर है। डीपीडीपी एक्ट की धारा 44 (3) में आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) में बदलाव करती है,। जिसे लेकर आरटीआई कार्यकर्ताओं का कहना है कि इससे आरटीआई कानून कमजोर हो जाएगा। दरअसल आरटीआई एक्ट की धारा 8(1)(जे) व्यक्तिगत जानकारी को सार्वजनिक करने से छूट देती, हालांकि इसमें कहा गया है कि सार्वजनिक हित में होने पर यह नियम लागू नहीं होता, यानि जानकारी देनी होगी, लेकिन अब इसमें संशोधन कर दिया गया है, जो कानून को कमजोर करता है।
क्या होगी विपक्ष की रणनीति?
इस सवाल के जवाब में कि कि अगर सरकार की ओर से सकारात्मक जवाब नहीं मिलता है, तब विपक्ष की रणनीति क्या होगी, इस सवाल के जवाब में गोगोई ने कहा कि वो अभी सरकार के जवाब का इंतजार करेंगे, हालांकि इस सीपीएम सांसद ब्रिटास ने कहा कि कानून बीते वक्त में निजता को लेकर कोर्ट के निर्देशों की आत्मा के खिलाफ है, और ऐसे में ये मामला कोर्ट के समक्ष लिए जाने के लिए मुफीद है। गोगोई ने कहा कि इस इस बिल को लेकर जेपीसी बनाई गई थी और एक व्यापक रिपोर्ट भी दी गई थी। लेकिन ये सरकार जब कोई भी बिल पास करती है तो कुछ संशोधन ले आती है,इस बिल के साथ भी ऐसा ही हुआ, जिसने जेपीसी रिपोर्ट की प्रकृति ही बदल दी।
जब कानून आया तब नहीं थे ये प्रावधान
शिवसेना यूटीबी सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि साल 2019 में जब सरकार ये कानून लेकर आई तब इसमें ऐसे प्रावधान नहीं थे, यहां तक कि 2021 में दोबारा ड्राफ्ट लाए जाने पर ऐसा नहीं था। उन्होने कहा कि मौजूदा रूप में ये कानून पत्रकारों के अधिकारों का भी हनन करता है, इसके बाद खोजी पत्रकारिता के मकसद से सूचना पाने, डेटा स्टोर करने के संदर्भ में जुर्माने के प्रावधान डरावने हैं , इसके अलावा डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड विकेंद्रीकृत नहीं होगा। सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास ने कहा कि इस कानून के लागू होने के बाद मीडिया की आजादी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे। उन्होंने कहा कि साल 2019 जेपीसी की रिपोर्ट पढ़ने से पता चलेगा कि सरकार ने उस वक्त सांसदों की ओर से दिए गए सुझावों के विपरीत प्रावधान इस एक्ट में शामिल किए हैं।


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