बैकुंठपुर/कटकोना,@क्या एसईसीएल ने तालाब चौड़ीकरण करने के लिए सारे नियमों को शिथिल करके बिना अनुमति माफिया को सौंपा नीलगिरी पेड़ की कटाई का जिम्मा?

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-रवि सिंह-
बैकुंठपुर/कटकोना,30 मार्च 2025 (घटती-घटना)।
कोरिया जिले के एसईसीएल बैकुंठपुर क्षेत्र के सहक्षेत्र कटकोना अंतर्गत हाल ही में नीलगिरी के पेड़ों की अवैध कटाई की खबर दैनिक घटती-घटना ने प्रकाशित की थी,पेड़ प्लांटेशन के तहत वर्षों पूर्व लगाए गए थे जिनकी संख्या सैकड़ों में है और उनकी कटाई लकड़ी माफिया क्यों कर रहे हैं यह खबर का आधार था। खबर प्रकाशन के पीछे यह भी उद्देश्य था कि एसईसीएल के जिस क्षेत्र से नीलगिरी के पेड़ों की कटाई की जा रही है उस क्षेत्र पर खुद एसईसीएल लीज पर है और वह क्षेत्र वन विभाग का है ऐसे में वन विभाग की बिना अनुमति पेड़ कैसे काटे जा रहे हैं।
अब मामले में नई जानकारी सामने आई है,बताया जा रहा है कि जिस तालाब के तट के पेड़ों की कटाई की जा रही है वह तालाब गहरीकरण और चौड़ीकरण के लिए प्रस्तावित है एसईसीएल की तरफ से और उक्त तालाब के गहरीकरण और चौड़ीकरण के लिए निविदा भी हो चुकी है और अब काम चालू ही होना था कि पेड़ों का मामला नीलगिरी के सामने आ गया और काम रुक गया। वैसे बताया जा रहा है कि तालाब गहरीकरण और चौड़ीकरण के लिए निविदा निकाली गई और निविदा एक ठेकेदार को मिल भी गई लेकिन पेड़ों का क्या कैसे करना है नीलगिरी के यह उसमें उल्लेखित नहीं है वहीं इसी बीच पेड़ों की कटाई का जिम्मा लकड़ी माफियाओं को दिया गया जिन्होंने 50 से ज्यादा पेड़ काट भी डाले लेकिन पेड़ों की कटाई की अनुमति किसने दी इसका पता किसी को नहीं है? पेड़ों की कटाई को लेकर बताया जा रहा है कि न सहक्षेत्र प्रबंधक कटकोना को जानकारी है न क्षेत्रीय प्रबंधक को की पेड़ किसकी अनुमति से काटे गए वहीं ठेकेदार काम कैसे चालू करे उसकी यह परेशानी है पेड़ो के रहते जबकि उसने सुरक्षा निधि भी जमा कर दी है। वैसे नियमानुसार नीलगिरी के पेड़ों की कटाई भी वन क्षेत्र से किए जाने की स्थिति में वन विभाग से अनुमति आवश्यक है ऐसा जानकारों का कहना है और अनुमति ली गई ऐसी कोई जानकारी सामने नहीं आई है। डीएफओ कोरिया का भी मामले में कोई बयान तब नहीं आया जब खबर प्रकाशित हुई और कैसे लकड़ी माफिया वन क्षेत्र से नीलगिरी के पेड़ काट ले गए इसकी उन्होंने कोई सुध नहीं ली। कोरिया जिले में वैसे भी लकड़ी माफियाओं को उच्च स्तरीय संरक्षण प्राप्त है और वह दिनरात जिले के पेड़ों की कटाई कर रहे हैं वहीं अब उनकी नजर वन क्षेत्र में जा पड़ी है जहां भी वह एकबार सफल हो चुके हैं और ऐसा ही रहा तो वह जल्द ही जिले की वन संपदा को निपटा जायेंगे।

2 करोड़ में हुआ था तालाब चौड़ीकरण का टेंडर
एसईसीएल के द्वारा 2 करोड़ का टेंडर निकाला गया था इस तालाब के चौड़ीकरण के लिए 50 प्रतिशत कम लागत में एक करोड़ में यह टेंडर फाइनल हुआ टेंडर फाइनल होने के 3 महीने बाद भी काम शुरू नहीं हो पाया जबकि 2 करोड़ के काम में ठेकेदार का एक करोड़ एसईसीएल के पास जमा है ठेकेदार आज 3 महीने से एक करोंड फंसाकर काम पाने के इंतजार में बैठा हुआ है पर एसईसीएल की लापरवाही से यह काम आज शुरू नहीं हो सकता है और आगे भी शुरू नहीं हो सकेगा पर क्या एसईसीएल ठेकेदार को एक करोड़ उसके ब्याज के साथ वापस करेगी?
आखिर 45 साल बाद तालाब की क्या जरूरत पड़ी जिसके लिए 2 करोड़ का निकल गया टेंडर
45 सालों पुराने तालाब के गहरीकरण की आखिर क्या जरूरत आन पड़ी यह भी सवाल है। 45 सालों से जस का तस पड़ा तालाब क्यों और किस जरूरत के नाते गहरा किया जा रहा था जिसके लिए निविदा निकाली गई यह भी बड़ा सवाल है। जबकि 45 सालों से गोबरी जलाशय पानी लेने के लिए जल संसाधन को 15 लाख दिया जारहा था।
बिना वन विभाग के परमिशन के आखिर कैसे हुआ टेंडर?
वैसे वन क्षेत्र में एक करोड़ का टेंडर हुआ तालाब चौड़ीकरण का जहां पेड़ों की कटाई का मामला भी सामने आयेगा यह जानते हुए ऐसे में बिना वन विभाग की जानकारी के यह कैसे हुआ यह भी बड़ा सवाल है। वन विभाग को क्या सबकुछ मालूम है या बिना उसकी अनुमति सबकुछ हो रहा था।
पेयजल के लिए एसईसीएल जल संसाधन विभाग को गोबरी जलाशय से पानी लेने के लिए हर साल देता है 15 लाख फिर इस तालाब के चौड़ीकरण की जरूरत क्यों
कटकोना सहक्षेत्र के निवासियों को पानी की सप्लाई के लिए एसईसीएल जल संसाधन विभाग को हर साल 15 लाख रुपए प्रदान करता है और गोबरी जलाशय से पानी लेता है। अब ऐसे में एसईसीएल को क्या जरूरत पड़ गई एक तालाब गहरीकरण की वह भी 2 करोड़ की लागत से यह भी सवाल खड़ा होता है।
वन विभाग से अनुमति ली जानी थी आवश्यक,लकड़ी भी वन विभाग के सुपुर्द की जानी थी,जानकार
जानकारों की माने तो यदि पेड़ों की कटाई जरूरी ही थी तो वन विभाग की अनुमति आवश्यक थी वहीं लकड़ी भी वन विभाग के सुपुर्द जाती,अब ऐसा क्यों नहीं हुआ यह जांच का विषय है। वन विभाग मामले में मौन क्यों है यह भी समझ से परे है।
पुराने तालाब के बगल में 12 साल पहले भी एक तालाब और निर्माण किया गया था अब दोनों को जोड़ने की जरूरत क्यों?
12 वर्ष पहले एक तालाब का निर्माण किया गया था जो पुराने तालाब के पीछे था उसे समय भी नियम के विरुद्ध ही तालाब निर्माण हुआ था उसे समय भी सैकड़ो पेड काट दिए गए थे,अब एक बार फिर से इस तालाब के चौड़ीकरण के लिए नियम विरुद्ध तरीके से पेड़ काटे जा रहे हैं, एसईसीएल अपनी मनमानियां पर आ गई है और जो पुराने तालाब है उसको सौंदर्यकरण करने के बजाय नया तालाब तैयार कर रही है जबकि एसईसीएल में पुराना तालाब जो छठ घाट के लिए भी बनाया गया था उन सब सुविधाओं से भी लोग वंचित हो रहे हैं वहीं दूसरी जानकारी यह भी आ रही है कि भविष्य में खदानों के अंदर सीएम मशीन जाएगी जिसमें पानी की आवश्यकता होगी उसे पानी के लिए इस तालाब को बनाया जा रहा है तो फिर पुराने तालाब को ही क्यों नहीं जोड़ा जा रहा है ताकि पेड़ बिन कटे ही काम हो सके पुराने तालाब का विस्तार व सफाई करके भी यह काम हो सकता है पर एसईसीएल अपनी मनमानी है करती दिख रही है और पर्यावरण को भी प्रभावित कर रही है, पुराने तालाब के बगल में 15 साल पहले एक तालाब गहरीकरण किया गया था अब उन्हीं दोनों को जोड़ने का काम किया जाना है। अब इसकी क्या जरूरत है यह जानने और जिज्ञासा वाली बात है।
बिना उच्च अधिकारियों के कैसे काट ले गए नीलगिरी के पेड़ लकड़ी माफिया?
कटकोना सहक्षेत्र से लकड़ी माफिया कैसे बिना उच्च अधिकारियों की जानकारी के नीलगिरी के पेड़ काट ले गए यह बड़ा सवाल है। कोई न कोई तो एसईसीएल का ही ऐसा होगा जिसने ऐसा होने दिया और बातों को दबाया…जांच का यह विषय है क्योंकि यदि उच्च अधिकारियों को नहीं पता कि पेड़ काटा गया तो फिर बात बड़ी है।
लकड़ी माफियाओं का वनक्षेत्र से पेड़ काट ले जाना भी बड़ी हिम्मत की बात…
लकड़ी माफिया वन क्षेत्र से नीलगिरी के पेड़ काट ले गए यह भी बड़ी बात है। वन विभाग का अमला क्यों ध्यान नहीं दे सका या उसने क्यों रोक नहीं लगाई जबकि काटे गए पेड़ो की संख्या 50 के आसपास थी। वन विभाग की भूमिका भी पूरे मामले में संदिग्ध है। वन विभाग को इस मामले में ध्यान कम से कम खबर प्रकाशन उपरांत जरूर देना था जो उसने अब तक नहीं दिया।


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