@घुमंतू गीत सीरीज @ अंग्रेजी प्रेम

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दोस्तों,यह एक अजीब विडंबना है कि हमारे इर्द गिर्द जन्म से भारतीय कर्म से अंग्रेज लोग अक्सर देखने मिल जाते हैं। आज एक चटपटा किस्सा एक ऐसे ही व्यक्ति के बारे में!!
बात उन दिनों की है जब मैं 12 वीं की छात्रा थी, विज्ञान मेरा विषय था, और कक्षा की सबसे धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने वाली विद्यार्थी मैं ही थी। एक कारण तो मेरे पिताजी ही थे, जिनकी अंग्रेजी बहुत उम्दा थी, दूसरी मेरी प्रिय अध्यापिका आदरणीय बिंदु मैम जो हमें अंग्रेजी पढ़ती थीं, तो उन्होंने इतने सुगम ढंग से हमें पढ़ाया कि उस में कहीं गलती की कोई गुंजाइश ही नहीं थी । फिर भी मुझे हिंदी शुरू से ही अंग्रेजी से कहीं अधिक प्रिय रही है । बचपन से घर का वातावरण शुद्ध हिंदी वार्तालाप वाला रहा, और फिर अपनी भाषा तो अपनी ही होती है वाला भाव! मेरी माँ महिलाओं के लिए एक सफल जिम चलाती थीं, जिसमें एक अनीता दीदी नामक सदस्य थीं, जो अंग्रेजी में एमए कर रही थीं, जाहिर है व्यवहार में थोड़ा दिखावा तो होगा ही । मैं जानती थी कि वे टूटी फूटी अंग्रेजी बोलती थीं जो व्याकरणसम्मत भी नहीं होती थी, पर उनके शो शा के तो क्या ही कहने ! एक दिन मेरी एक सहपाठी मुझसे रसायन शास्त्र पढ़ने आयी हुई थी, चूँकि उसकी अंग्रेजी कमजोर थी मैं उसे हिंदी में सारी रासायनिक अभिक्रिया समझा रही थी । तभी वहां अनीता दीदी आ गयीं, और पूछने लगीं, तुम हिंदी स्कूल में हो क्या? मैंने कहा, नहीं, इंग्लिश मीडियम में! तो तुम केमिस्ट्री हिंदी में क्यों पढ़ा रही हो?
मुझे उनका ये सवाल अजीब ही लगा । फिर मैंने कहा, क्योंकि ये कोई ऑफिस या स्कूल भी नहीं है, और हम दोनों ही को हिंदी अच्छी तरह से समझ में भी आती है! तो अंग्रेजी कि ज़रुरत महसूस नहीं होती ।
उन्हें शायद लगा हो कि मुझे अंग्रेजी आती ही
नहीं इसलिए मैं बहाने बना रही हूँ । उन्होंने फिर व्यंग में मुझसे कहा, सी आई एम स्टिल टॉकिंग टू यू इन इंग्लिश एंड यू आर स्टिल रिप्लाइंग इन हिंदी (देखो मैं तुमसे अभी भी अंग्रेजी में बात कर रही हूँ, और तुम अब भी हिंदी में जवाब दे रही हो!)मैंने एकदम गंभीरता से कहा, क्योंकि मुझे अभी ज़रुरत नहीं महसूस हो रही! इस पर अनीता दीदी मुझे व्यंगात्मक मुस्कान देकर वहां से चली गयीं । मेरी सहपाठी ने मुझसे कहा, क्या यार प्रियंका, बोलती बंद कर देनी थी, बेईज्जती करवा ली, तुम तो हेड गर्ल हो यार तुम्हें तो इनको इंग्लिश में जवाब देना चाहिए था। निशा! हेड गर्ल स्कूल के लिए न, उसका यहाँ क्या काम? पर वो मेरे जवाब से संतुष्ट न दिखी । उस दिन मेरी सहपाठी ने मुझसे उसको अंग्रेजी सिखाने का आग्रह किया, मैं खुशी-खुशी तैयार भी हो गयी । तो विद्यालय में अंग्रेजी के टिप्स, और घर आकर रसायन शास्त्र की क्लास।
चूँकि मैंने काफी कम उम्र से ही सबकुछ ईश्वर के हाथों सौंपने का एक नियम बना रखा है, इस बार भी ऐसा ही किया । और हमेशा की तरह ईश्वर ने ही जवाब भी दिया। चार दिनों बाद ही जिम में एक केन्याई नागरिक सदस्यता सम्बन्धी पूछताछ के लिए आयीं । मेरी माँ ने मुझे आवाज़ दी, जब तक मैं वहां पहुंची, अनीता दीदी उन्हें अपनी टूटी फूटी शो शा वाली अंग्रेजी में कुछ बातें समझा रही थीं, मैने बेहद विनम्रतापूर्वक उनसे आग्रह किया कि वे अपना सेशन जारी रखें, और मैं उस नीग्रो को अपनी फर्राटेदार अंग्रेजी में सारी चीजें बताने लगी ।
उस पूरे दौरान मेरी नजरें अनीता दीदी से कई बार टकरायीं, और उनके हक्का-बक्का चेहरे को आज भी याद करके हँस पड़ती हूँ । मेरी मातृभाषा, मेरी हिंदी, मेरा गौरव है । मुझे कभी भी हिंदी बोलने पर पछतावा नहीं होता, कभी भी नहीं हुआ ! बहुत बार महसूस करती हूँ, कभी न कभी कोई न कोई मुझे निश्चित ही अनपढ़ समझता होगा, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । मेरी मातृभाषा मेरी शिक्षा या अशिक्षा कि परिचायक नहीं है, और आज भी मैं आवश्यकता पड़ने पर ही अंग्रेजी का प्रयोग करती हूँ । आज भी शो शा के लिये अंग्रेजी बोलने वाले मिलते ही रहते हैं,और मुझे मन ही मन उनपर हँसी भी आती है! फेयरवेल वाले दिन मेरी उस सहपाठी ने मेरे लिए दो पंक्तियाँ कहीं, जो मैं आज भी नहीं भूली, वेन यू सी पीपल हू आर स्मार्टर दैन यू आर, यू प्रूव यू आर स्मार्टर दैन दे आर आज जब कि एक लेखिका हूँ, संपादक हूँ, अपनी हिंदी की अध्यापिका आदरणीय जयशीला पांडेय जी के प्रति मन ही मन प्रतिदिन असीम आभार व्यक्त करती हूँ ।
प्रियंका अग्निहोत्री गीत
काशी,उत्तर प्रदेश


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