जल की एक बूंद का संरक्षण मानवीय जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी है। जल की एक-एक बूंद जीवन के लिए बेशकीमती और बहु उपयोगी है। जल की बर्बादी भविष्य के बहुत बड़े खतरे को इंगित करती है, यदि पृथ्वी पर जल नहीं होगा तो जीवन की संभावनाएं भी विलुप्त हो जाएंगीं। सामान्य तौर पर देखेंगे तो जल की उपलब्धता को लेकर कोई विशेष संकट नजर नहीं आता है। किंतु वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है। पृथ्वी की सतह का लगभग 70 प्रतिशत भाग जल से आच्छादित है। पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त जल का 97 प्रतिशत समुद्र खारा पानी है, जो उपयोग के योग्य नहीं है । अतः मात्र 3 प्रतिशत जल ही पीने के योग्य है,इससे भी कम जल नदी, तालाब, झीलों भूगर्भीय जल के रूप में मनुष्य व अन्य जीवों के पीने के योग्य मीठे पानी के रूप में उपलब्ध है, परिणामतः पीने योग्य जल का संकट और गहराता जा रहा है।
यदि मानव सभ्यता के इतिहास को खंगाले तो यह तथ्य सामने आता है कि बड़ी-बड़ी सभ्यता एवं संस्कृतियाँ नदी, घाटियों में विकसित और फलित हुई है। जल अपने स्वरूप में निर्मलता धारण किए हुए पवित्रता का प्रतीक है, लेकिन इसकी क्रमिक रूप से घटती मात्रा में जल संकट अस्तित्व को खतरा उत्पन्न कर दिया है। जल अब राज्यों तथा विभिन्न देशों के मध्य बड़े विवाद का कारण बनता जा रहा है। जल मनुष्य के जीवन का अत्यंत आवश्यक स्वरूप है जल के बिना कल नहीं है और जल ही जीवन कहलाता है। ऐसे में जल का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। जल का विवाद सिर्फ गांव तहसील के जिलों में नहीं बल्कि राज्य और देशों के बीच भी गहराता जा रहा है। इसका बहुत बड़ा उदाहरण कावेरी, मांडवी जैसे अंतरराष्ट्रीय नदियों गंगा, ब्रह्मपुत्र में नील, सतलज जैसी अंतरराष्ट्रीय नदियां हैं। वैश्विक जल संकट से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप, अफ्रीकी देशों में एक बड़ी आबादी जला भाव के कारण काल कब रीत हो रही है। जल संकट की यह समस्या और अंतरराष्ट्रीय स्वरूप धारण कर चुकी है एवं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसकी मांग उठाई जा रही है। पृथ्वी पर पीने की योग्य जल की उपलब्धता घटती जा रही है वहीं विकास एवं औद्योगिकरण की प्रक्रिया में जल का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है। मानव के जल दोहन का बेतरतीब उपयोग जल चक्र के संतुलन को नष्ट कर रहा है। प्रकृति में मानव के हस्तक्षेप के कारण ही ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई से ताजे जल के संकट को कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। शहरों में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता का स्तर निरंतर कम होते जा रहा है। इसका सबसे सर्वोत्तम उदाहरण दक्षिण अफ्रीकी शहर कैपटाउन एवं भारत के बंगलुरु शहरों में असीमित जनसंख्या के दबाव में लहराते जल संकट के कारण इन शहरों में यानी नो वाटर सप्लाई दिवस तक की नौबत आ गई है। संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा प्रकाशित जल विकास रिपोर्ट 2018 में पीने योग्य जल की घटती उपलब्धता एवं गहराता संकट को लेकर महायुद्ध की संभावनाओं का खुलासा किया है। जल संकट को लेकर अगले महा युद्ध की संभावनाओं को यदि टटोलने तो यह बात सत्य प्रतीत होती है जिसमें एक तरफ जलाभाव वाले देश का होगें तथा दूसरा पक्ष जलाधिक्य वाले देशों की होगी। जल के निरंतर गिरते स्तर को लेकर ऐसी विकराल स्थितियां उत्पन्न हो सकती है जिसके कारण मानवता तार-तार हो जाएगी और जल का उपयोग करने वाले जैविक जीवन का स्थिति समाप्त हो जाएगा। अतः यह उचित होगा कि समय रहते हम इस संकट को भाप लें एवं जल जैसे हम उन संसाधन के संरक्षण को लेकर युद्ध स्तर पर उचित कदम उठाएं। यूनाइटेड नेशंस वाटर अभियान के माध्यम से जल संकट से विश्व को अवगत करवाते हुए जल संकट के संबंध में आमजन को जागरूक करने का प्रयास कर रहा है। दूसरी तरफ प्रसिद्ध ऑर्गेनाइजेशन जल संकट से विश्व को अवगत कराते हुए जल संरक्षण के संबंध में सराहनीय प्रयास कर रहे हैं। आवश्यकता से अधिक जल प्रयोग करने से धरती का जलस्तर कृषकों की पहुंच से परे होता जा रहा है। वैश्वीकरण व उपभोक्तावादी संस्कृति से प्रेरित अंधाधुंध विकास की दौड़ में जल स्रोतों को प्रदूषित कर मानव समाज ने स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है। बढ़ती जनसंख्या भी वैश्विक जल संकट का एक बड़ा कारण है। यदि जनसंख्या की वृद्धि की रफ्तार से होती रही तो अगले दशक में वैश्विक जनसंख्या में वृद्धि की दर से 25त्न जनसंख्या को प्रयोग जितना ही पानी उपलब्ध हो पाएगा। यह भयानक जल संकट तथा वैश्विक खतरे की ओर इंगित करता है।
संजीव ठाकुर,
रायपुर छत्तीसगढ़
