
आज की युवा पीढ़ी एक अजीब सी मानसिक उलझन में फंसी हुई है। एक ओर वे अपने करियर को लेकर अत्यधिक चिंतित हैं, तो दूसरी ओर उनका झुकाव भौतिकतावादी जीवनशैली की ओर बढ़ता जा रहा है। माता-पिता और बच्चों के बीच की दूरी बढ़ रही है, जिसके चलते बच्चे सही मार्गदर्शन से वंचित रह जाते हैं। नैतिक मूल्यों में गिरावट, बड़ों का सम्मान न करना, नाइट कल्चर को अपनाना, व्यवहारिक ज्ञान की कमी ये सभी समस्याएं कहीं न कहीं हमारे पेरेंटिंग के ढांचे पर सवाल उठाती हैं। करियर की चिंता, पैसे का आकर्षण आज का युवा अपने भविष्य को लेकर असुरक्षित है। करियर बनाने की दौड़ में वे मानसिक महसूस करता दबाव में रहते हैं, और इसी तनाव के कारण वे अवसाद (डिप्रेशन) का शिकार हो रहे हैं। माता-पिता भी इस स्थिति को समझने के बजाय, बच्चों को केवल आर्थिक सहायता देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी मान लेते हैं। हालांकि, पैसों की आपूर्ति से जीवन तो चल सकता है, परंतु सही मार्गदर्शन और भावनात्मक सहयोग न मिलने से बच्चे अकेलापन महसूस करने लगते हैं। बच्चों में व्यवहारिक ज्ञान की कमी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। वे सामाजिक संबंधों को समझने में असमर्थ हो रहे हैं, आत्मकेंद्रित हो गए हैं, और केवल अपने फायदे को प्राथमिकता देने लगे हैं। इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि माता-पिता स्वयं भी बच्चों के साथ कम समय बिताते हैं और उन्हें नैतिक मूल्यों की शिक्षा नहीं दे पाते। नतीजा यह होता है कि बच्चे बड़ों का सम्मान नहीं करते, अनुशासनहीन हो जाते हैं, और अपनी इच्छाओं को ही सर्वोपरि मानने लगते हैं। परिवार में बढ़ती दूरी माता-पिता और बच्चों के बीच बढ़ती दूरी के कारण पारिवारिक संबंधों में दूरियां बढ़ रही हैं। पहले जहां संयुक्त परिवारों में बच्चों को दादा-दादी, चाचा- चाची से भी सीखने का अवसर मिलता था, वहीं आज एकल परिवारों में माता-पिता अपने करियर और निजी जीवन में इतने व्यस्त हो गए हैं कि बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते। इस वजह से बच्चों में भावनात्मक अस्थिरता बढ़ रही है और वे सोशल मीडिया, दोस्तों, या अन्य बाहरी साधनों से अपना मानसिक सहारा खोजने लगते हैं, जो हमेशा सही दिशा में नहीं होता।
नाइट कल्चर का प्रभाव
आजकल नाइट कल्चर का प्रभाव बढ़ रहा है। देर रात तक बाहर रहना,अनावश्यक पार्टी करना,इंटरनेट और सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताना बच्चों की मानसिक और शारीरिक सेहत पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। माता-पिता इस पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे, क्योंकि वे या तो अधिक लिबरल बनना चाहते हैं या फिर अपनी व्यस्तता के कारण इस पर ध्यान नहीं देते। इससे बच्चों में अनुशासन की भावना कम होती जा रही है, जो अवसाद और तनाव को और बढ़ाने का काम कर रही है। अब यहां प्रश्न यह उठता है कि इन तमाम समस्याओं से निजात पाने के लिए क्या कर सकते हैं।
माता-पिता बच्चों संग समय बितायें
सिर्फ पैसों से ही बच्चों की जरूरतें पूरी नहीं होतीं, उन्हें माता-पिता का समय और प्यार भी चाहिए। उनके साथ नियमित रूप से बातचीत करें और उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश करें।
सही मार्गदर्शन दें…
करियर और पैसे की अहमियत समझाना जरूरी है, लेकिन इसके साथ-साथ नैतिकता और जीवन मूल्यों का ज्ञान देना भी आवश्यक है। व्यावहारिक शिक्षा दें
बच्चों को केवल किताबी ज्ञान ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक ज्ञान भी दें। उन्हें सिखाएं कि कैसे दूसरों के साथ व्यवहार करना चाहिए और समाज में अच्छे संबंध कैसे बनाए रखें।
संस्कारों पर जोर दें…
बड़ों का सम्मान करना, अनुशासन का पालन करना, और सही-गलत में अंतर समझना बच्चों को घर से ही सीखना चाहिए। नाइट कल्चर पर नियंत्रण रखेंः बच्चों को अनुशासन में रखें और समय की पाबंदी सिखाएं। उन्हें समझाएं कि पर्याप्त नींद और दिनचर्या का सही पालन उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। अगर सभी माता-पिता पैसे देने के साथ-साथ यह भी जिम्मेदारी अगर उठाएं तो भविष्य हमारा उज्ज्वल होगा।समझने की बात यहां यह है कि बच्चों में बढ़ते अवसाद के लिए कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं, लेकिन खराब पेरेंटिंग इसमें एक प्रमुख भूमिका निभाती है। माता-पिता को केवल आर्थिक रूप से नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी बच्चों का समर्थन करना चाहिए। यदि आज की युवा पीढ़ी को सही मार्गदर्शन नहीं मिला, तो आने वाला भविष्य अंधकारमय हो सकता है। इसलिए, माता- पिता को अपने बच्चों के साथ मजबूत रिश्ता बनाना होगा, उन्हें नैतिक मूल्यों, आध्यात्मिक ज्ञान और व्यवहारिक ज्ञान से संपन्न करना होगा, ताकि वे मानसिक रूप से मजबूत और जीवन में सफल बन सकें।
विजय गर्ग
चांद मलोट
पंजाब