विशेष अदालत ने शुरू की कार्रवाई
रायपुर,01 मार्च 2025 (ए)। छत्तीसगढ़ में 2200 करोड़ रुपये के शराब घोटाले ने एक बार फिर राज्य की विष्णु देव सरकार सवालों के घेरे में है। विशेष पीएमएलए (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डि्रंग एक्ट) अदालत ने इस मामले में कार्रवाई शुरू कर दी है, लेकिन सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वह भ्रष्टाचार में शामिल जिला आबकारी अधिकारियों को संरक्षण दे रही है। यह मामला तब और गंभीर हो गया है, जब सरकार ने इन अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति देने से इनकार कर दिया है।
शराब घोटाले का क्या है पूरा मामला?
छत्तीसगढ़ में शराब घोटाले की जांच प्रवर्तन निदेशालय कर रही है। इस मामले में आठ कंपनियों और व्यापारिक संस्थाओं को आरोपी बनाया गया है। इनमें वेलकम डिस्टिलरीज़, भाटिया वाइन मर्चेंट्स, सीजी डिस्टिलरीज़, एम/एस नेक्स्ट जेन, दिशिता वेंचर्स, ओम साईं बेवरेजेज, सिद्धार्थ सिंघानिया और एम/एस टॉप सिक्योरिटीज शामिल हैं। जांच एजेंसियों का दावा है कि इन कंपनियों ने अवैध शराब कारोबार से अर्जित धन को बेनामी लेन-देन और मनी लॉन्डि्रंग के जरिए सफेद धन में बदलने का प्रयास किया। विशेष पीएमएलए अदालत ने अनवर ढेबर की ओर से दाखिल धारा 190 सीआरपीसी याचिका को स्वीकार कर लिया है। यह फैसला घोटाले से जुड़ी कंपनियों के खिलाफ न्यायिक कार्रवाई को आगे बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इस मामले में सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि जहां विशेष अदालत ने कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है, वहीं जिला आबकारी अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी गई है। परिवाद पत्र में उल्लेखित तथ्यों के आधार पर जिला आबकारी अधिकारियों और सहायक जिला आबकारी अधिकारी जनार्दन सिंह कौरव के अपराध में संलिप्त होने के सबूत मिले हैं। लेकिन, उनके लोक सेवक होने और उनके खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति नहीं मिलने के कारण उन पर कार्रवाई नहीं की जा रही है। इससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या विष्णु देव सरकार भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है? विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार पूर्ववर्ती भूपेश बघेल सरकार की राह पर चल रही है, जिसमें भ्रष्टाचार को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई गई थी। विशेष पीएमएलए अदालत ने इस मामले में धारा 190 सीआरपीसी के तहत संज्ञान लिया है। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, इस धारा के तहत किसी भी मजिस्ट्रेट को यह अधिकार प्राप्त है कि वह पुलिस रिपोर्ट, शिकायत या अन्य विश्वसनीय सूचना के आधार पर किसी अपराध पर संज्ञान ले सकता है। इस मामले में अदालत द्वारा संज्ञान लिए जाने का मतलब है कि अब औपचारिक रूप से इस घोटाले की न्यायिक जांच शुरू हो गई है।
प्रवर्तन निदेशालय की जांच में अब तक 2100 करोड़ रुपये से अधिक की अवैध वसूली, फर्जी बिलिंग और बेनामी कंपनियों के माध्यम से धन शोधन का खुलासा हुआ है। जांचकर्ताओं को संदेह है कि शराब कारोबारियों और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताएं हुईं।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
29 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा अनवर ढेबर को दी गई जमानत को रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि बड़े आर्थिक अपराधों में लिप्त आरोपी केवल स्वास्थ्य आधार पर राहत नहीं पा सकते, जब तक कि कोई सरकारी चिकित्सा बोर्ड इसकी पुष्टि न करे।
इस मामले के राजनीतिक रूप से क्या मायने हैं?
इस मामले ने विष्णु देव सरकार के सुशासन के दावों को चुनौती दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई की गारंटी दी थी। लेकिन, इस मामले में सरकार की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष का आरोप है कि सरकार भ्रष्टाचारियों को बचाने में लगी हुई है, जो उनके सुशासन के दावों को खोखला साबित करता है।
आगे क्या हो सकता है
अब इस मामले में सम्मन जारी करने, वित्तीय ऑडिट और पीएमएलए प्रावधानों के तहत संपत्तियों की कुर्की की प्रक्रिया तेज हो सकती है। जांच एजेंसियों के पास कई संदिग्ध बैंक लेन-देन और कंपनियों के बीच हुए वित्तीय लेन-देन से जुड़े ठोस सबूत हैं, जो घोटाले में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
अदालत की अगली सुनवाई में इस घोटाले से जुड़े अन्य प्रमुख आरोपियों की भूमिका की भी समीक्षा की जा सकती है। यह मामला अभी न्यायिक प्रक्रिया के अधीन है, और आगे की कार्रवाई अदालत के निर्देशों पर निर्भर करेगी
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