लेख@ मानव मात्र एक समान देश है सबसे ऊपर

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हमें ज्ञान देने वाला कौन है।आप जब एक कौवा को एकबार बिजली के तार से गिर कर मरते देखा तो शायद उसके शोक में सैकड़ो कौवा चिल्लाते हुए आ गए और कॉव कॉव करने लगे। ना तो उसकी क़ोई जाति ना क़ोई धर्म मानो सिर्फ मुश्किल में एकजुटता ही उसके प्रति संवेदना थी ना तो वो किसी पैसे को लेता है ना ही सोना चांदी केवल खाने के लिए छपटा मारता है यानि पेट भर खाना मिला पीने को पानी मिल गया। बस इससे ज्यादा कहीं पेड़ पर इधर उधर उड़ना और घोसला बनाना प्रकृति ने उसे भी जीवन दिया सोचने समझने की ताकत दि अतः वो अपने में खुश है। महाकुम्भ 25 को टीवी पर 68करोड़ गए आप नहीं गए मौका चूक गए इसे सफल बनाया है तो ईश्वर ने हीं कराया क्योंकि जब मौत होती है तो ईश्वर के उपर ही डाला जाता है। अतः सब ईश्वर की मर्जी से हुआ ना किसी को ना जाने का अफ़सोस होना चाहिए ना हीं जाने पर बहुत खुश होना चाहिए। ना जाने का कारण मज़बूरी और कर्तव्य करना आवश्यक होगा इसलिए नहीं जाने का अफ़सोस करना व्यर्थ है। आप एक ईश्वर का अंश है ईश्वर ने जब भेजा तो ना तो धर्म देखा ना हीं जात पात यहाँ आते हीं इनसब में फंसकर कर्म को भूल जाते है। मैं मानता हूँ आदरणीय योगीजी की मेहनत होगी और बधाई के पात्र है क्योंकि आस्था का सम्मान किया लेकिन असल में ना तो हम किसी धर्म से बंधे है ना हीं जातपात से । भेदभाव तो जन्म लेने के बाद पैदा हुआ लेकिन इंसान तो इंसान हीं है। असली कर्म तो जब आएगा जब आपको देश की जरुरत किसी ना किसी रूप में होगी जिसमें रक्षा सबसे महत्वपूर्ण है और उस समय बस एक ही कुम्भ है। भारत माता और भारत माता की रक्षा हेतु ना तो जात की आवश्यकता है ना हीं धर्म की।क़ोई भी देश का सच्चा नागरिक जिसमें देश की रक्षा का जूनून होगा जो मातृभूमि से प्रेम रखता होगा वह अवश्य हीं शहीद होने चल पड़ेगा, जाति पाति, धर्म ऐ कभी आड़े नहीं आएंगे।एक हीं मकसद होगा,देश को बचाना और माँ बहनो को सुरक्षा देना, अतः हमें हमेशा मिलजुल कर रहना चाहिए।देश से अधिक प्यारा कुछ भी नहीं है अतः हमें देश प्रेम की भावना से काम करना चाहिए शिवरात्रि के दिन महाकुम्भ का अंतिम दिन था। अतः हमें भगवान शंकर से सिखने की आवश्यकता है। जो शिवलिंग है उसपर तरह तरह की बातें आती है जिसे लिखना उचित नहीं है लेकिन शिवलिंग शुद्ध पवित्र और शांति का परिचायक है जो भगवान भोलेनाथ का उस स्वरुप का भाग दीखता है। जो समुद्र मंथन से जैसे किसी कड़वे विष को पी रहें हैं तभी शिवलिंग का उनका ऊपर का भाग जैसे लगता है। ध्यान में लीन है और उन्हें कुछ नहीं मालूम क्या पी रहें हैं क्योंकि ध्यान में ही ऐसी शक्ति है कि मीरा का विष भी अमृत हो गया और उसके निचे जो उभरा हुआ भाग है वो जहर का प्याला जैसा दीखता है फिर गर्दन जैसा लिंग का रूप है। जहाँ उन्होंने विष को अटका लिया था और इसलिए उनके ऊपर नाग देवता विराजमान है और विष के प्रभाव को ख़त्म करने के लिए जटा से निकली माँ गंगे, इसलिए शिवलिंग पर जल, दूध, मट्टा आदि चढ़ाया जाता है क्योंकि उससे उसका(विष) प्रभाव कम हो इसलिए नागो में विष आ गया। जिसे भगवान शंकर ने गले से लगाया सृष्टि को बचाने के लिए प्रभु ने अपना संपूर्ण जीवन हीं विष को गले लगा लिया। यही तो त्याग और अमृत का प्रतीक है।अमृत है तभी तो भोलेनाथ आपको सबकुछ देते हैं। कुछ लोग इसे काम से जोड़कर नर, नारी का मिलन बताते है लेकिन वैसा है नहीं क्योंकि जो काम है वही आपका सबसे बड़ा शत्रु है जिसकी वासना में डूब कर आप उसमें होश हवास को दे देते हैं।जब मन को नियंत्रित नहीं कर पाएं और जो नाश होने वाला है वो आपको पतन की ओर ले जाता है। अतः शांत मन से ईश्वर से प्रेम करें जो आपको अनन्त काल तक सुख देने वाला है। ना जन्म के बंधन में बंधा ना ही ना हीं मौत का भय ना किसी से ईर्ष्या ना ही बैर, केवल मानवता हेतु विश्व शांति की ओर हो जो सही में। आपको एक दिन सही जीच के बारे में बताएगा, यही गुरू नानक का कहना है। एक ओंकार सतनाम,यानि ईश्वर एक है.। वो है मानवता और सभी को देश में एकजुटता होनी चाहिए। देशप्रेम की भावना हो ना क़ोई छोटा ना क़ोई बड़ा ईश्वर के शरण में एक जैसा बन्दा जो केवल मातृभूमि से प्रेम करता हो देश की एकता ही सबसे बड़ी ताकत है मौका मिलेगा। जब देश पर संकट के बादल आएंगे हाल हीं में कोरोना से निपट चुके हैं। उसमें मालूम नहीं हुआ कौन आपके साथ था वो मानव हीं होगा लेकिन ईश्वर का सच्चा बन्दा जो कभी मौत से भी नहीं डरा।.किसी के प्रति नफरत से आपका ही मन विचलित होता है जो शांति को भंग करती है।
संजय गोस्वामी
मुंबई,महाराष्ट्र


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