- नगर पंचायत पटना में निर्दलीय लड़ने वाले उम्मीदवार को था पूर्व विधायक बैकुंठपुर का समर्थन:सूत्र
- वरिष्ठ नेताओं ने पूर्व विधायक की पसंद को जब किया नापसंद,पार्टी के ही पदाधिकारी को बगावत के लिए उकसाया पूर्व विधायक ने:सूत्र
- बागी कांग्रेसी की पत्नी रही दूसरे स्थान पर,कांग्रेस रही तीसरे स्थान पर,भाजपा की जीत पूर्व विधायक की देन:सूत्र
- पूर्व विधायक के लिए कुछ वरिष्ठ भी अंदरखाने कर रहे थे बागी कांग्रेसी की पत्नी के लिए काम:सूत्र
- पटना की राजनीति में कांग्रेस में हुआ था दो फाड़,बगावत का लाभ मिला भाजपा को,भाजपा प्रत्याशी की हुई जीत
-रवि सिंह-
कोरिया/पटना,17 फरवरी 2025 (घटती-घटना)। नगरी निकाय चुनाव संपन्न हो गया है पर प्रथम नगर पंचायत चुनाव पटना की समीक्षा अभी भी जारी है,तमाम तरह के कयास व चर्चा आम है जहां जीतने वाले से लेकर हरने वाले तक अपनी समीक्षा कर रहे हैं, एक-एक वोट की समीक्षा हो रही है पर इस बीच यदि कुछ चौंकाने वाली चीज आ रही है तो वह है कांग्रेस की हार, जिसमें पूर्व विधायक की षड्यंत्र की बात कही जा रही हैं, वरिष्ठ कांग्रेसियों के भी पंख कतरने की राजनीति की बात सामने आ रही है, यह चुनाव में हार से वरिष्ठ नेताओं की भी साख दाव पर लगी हुई थी जो कहीं ना कहीं हार के बाद मंथन में पता चल रहा है कि उनकी साख वाकई में यह चुनाव ने गिरा दिया है, पर इसके पीछे किसी बड़े षड्यंत्र का दवा सूत्रों के द्वारा किया जा रहा है, कांग्रेस से बागी होकर निर्दलीय प्रत्याशी का मैदान में उतरना पूर्व विधायक का षड्यंत्र माना जा रहा है, यह बात इस समय राजनीतिक चर्चाओं में है पर कितना सही है इसकी पुष्टि दैनिक घटती घटना नहीं करता है पर इस समय यह चर्चा खूब है।
नगर पंचायत पटना के प्रथम चुनाव में कांग्रेस के तीसरे स्थान पर रहने और भाजपा प्रत्याशी की जीत से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आ रही है और वह खबर है बागी कांग्रेसी की निर्दलीय प्रत्याशी से जुड़ी हुई जिसमें सूत्रों का दावा है कि बागी होकर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस पदाधिकारी की पत्नी को पूर्व विधायक बैकुंठपुर का पूर्ण समर्थन था और पूर्व विधायक के कहने और समर्थन के वादे पर ही बागी कांग्रेसी की पत्नी चुनावी मैदान में थीं। वैसे सूत्रों का यह भी दावा है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पूर्व विधायक की पसंद को जब वरिष्ठ कांग्रेसियों ने दरकिनार किया खासकर पटना के वरिष्ठ कांग्रेसियों ने पूर्व विधायक ने इसे सम्मान से जोड़कर ले लिया और उन्होंने बागी होकर निर्दलीय प्रत्याशी बतौर लड़ रही कांग्रेस पदाधिकारी की पत्नी को समर्थन दें दिया। वैसे यदि यह दावा सूत्रों का सही है तो यह कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस के हिसाब से यह दुर्भाग्यजनक खबर या सूचना है और यह माना जाएगा इस आधार पर की पार्टी ने जिसको प्रत्याशी बनाया उसका पूर्व विधायक ने विरोध किया और उसे हरा दिया।
पूर्व विधायक की राजनीति हमेशा से समझ से परे वाली
पूर्व विधायक की राजनीति हमेशा से समझ से परे वाली देखी जाती रही है। पूर्व विधायक खुद की रणनीति को ही सही मानकर चलती हैं और उनके निर्णय को ठुकराने पर वह बगावत पर भी उतर जाती हैं। पटना मामले में सूत्रों की बात सही माने तो यह सच भी है।
पटना के वरिष्ठ कांग्रेसियों को किनारे लगाने की पूर्व विधायक की थी योजनाःसूत्र
सूत्रों की माने तो नगर पंचायत पटना के पहले चुनाव में पूर्व विधायक अपने पसंद का प्रत्याशी तय कराना चाहती थीं वहीं ऐसा नहीं होने पर और पटना के वरिष्ठ कांग्रेसियों के अड़ने पर उन्होंने वरिष्ठ कांग्रेसियों को किनारे लगाने खासकर उनके राजनीति को समाप्त करने के लिए निर्दलीय प्रत्याशी को अंदर से समर्थन दिया और अपने कुछ सिपहसलार इस योजना को सफल बनाने भेजा भी। सूत्रों की माने तो यदि निर्दलीय प्रत्याशी की जीत तय होती श्रेय लेने खुद पूर्व विधायक आतीं और वरिष्ठों के निर्णय को गलत ठहराती।
क्या पूर्व विधायक की बगावत में निर्दलीय का चुनाव में उतरना दोनों के लिए सही साबित नहीं हुआ?
वैसे सूत्रों का दावा सही भी जान पड़ता है क्योंकि पूर्व विधायक के कुछ सिपहसलार पटना जाते तो थे कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार करने लेकिन उनके मुंह से प्रचार निर्दलीय लड़ रही कांग्रेस के बागी की पत्नी का ही नाम निकलता था और चौक चौराहों में वह उसे ही विजेता बताकर माहौल उसके पक्ष में करने में लगे रहते थे। वैसे इस सूत्र जनित खबर को सही यदि माना जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा कि कर बुरा तो हो बुरा और कर भला तो हो भला और पूर्व विधायक के साथ और उनके समर्थन से निर्दलीय लड़ रहे प्रत्याशी के साथ बुरा हुआ और वह चुनाव हार गईं। नियत से ही बरकत वाली कहावत यहां चरितार्थ हुई। पूर्व विधायक की बगावत में निर्दलीय का चुनाव में उतरना दोनों के लिए सही साबित नहीं हुआ, बगावत का दोष प्रत्यासी के पति पर लगा निष्कासन हुआ और चुनाव भी हार गए।
क्या पूर्व विधायक का भी अब राजनीतिक नुकसान हुआ है?
वैसे सूत्रों का यह भी दावा है कि पटना क्षेत्र के वरिष्ठ नेताओं में से भी एक ने निर्दलीय का समर्थन किया था अंदर ही अंदर और कई जगह उसके लिए वोट की अपील की थी वहीं ऐसा वह छिप छिपाकर करते रहे और अंत में बात उजागर हुई है। पूर्व विधायक के खास सिपहसलार को लेकर कहा जा रहा है कि उसने जश्न की तैयारी भी कर ली थी पूर्व विधायक की वापसी भी उसने तय किया था जो चुनाव के दौरान नहीं नजर आया लेकिन परिणाम के बाद सब तैयारी धरी रह गई। वैसे पूर्व विधायक के समर्थक के अनुसार जैसा सूत्रों का कहना है निर्दलीय प्रत्याशी जिसे पूर्व विधायक का समर्थन था कि जीत यदि सुनिश्चित होती पूर्व विधायक उसे पार्टी में शामिल कराती और श्रेय लेकर आगे अपने निर्णय को सही वरिष्ठों के निर्णय को गलत बताती। वैसे ऐसा न होना उनके लिए एक बड़ा झटका है और पूर्व विधायक का भी अब राजनीतिक नुकसान हुआ है।
वरिष्ठ अंत तक कांग्रेस को एक करते रह गए,पटना से बाहर से आने वाले कांग्रेसियों में से पूर्व विधायक गुट निर्दलीय के लिए लगा रहा
पटना के वरिष्ठ और बैकुंठपुर के कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी कांग्रेसियों को एकजुट करने में लगे रहे अंत तक वहीं कुछ जो बाहर से खासकर पटना से बाहर से आने वाले कांग्रेसी निर्दलीय के लिए कैंपेनिंग करके चले गए। कुल मिलाकर कांग्रेस एकजुट होने की बजाए दो गुटों में आखिरी तक बनी रही और जिसका फायदा भाजपा सीधे बिना अधिक मेहनत उठा ले गई।