- क्या दोनों महान नेताओं के घर में कोई नहीं है प्रत्याशी या फिर उन पर वह पैसे लगाकर चुनाव जीतने की नहीं ले सकते जोखिम?
- पटना की राजनीति कुछ उच्च कोटि की है यहां सिर्फ दो सर्वोच्च नेता है…जिनकी मर्जी कभी-कभी चलती है और कभी-कभी नहीं चलती
- चुनाव लड़वाने से ज्यादा दिलचस्प होती है पैसा कमाने में
- एक नेता की वजह से 35 साल पुराना भाजपाई कांग्रेस में चला गया…दूसरे नेता अपने दुकान में प्रतिदिन बैठने व काम करने वाले को पार्षद प्रत्याशी बनाने की होड़ में…
बैकुण्ठपुर/पटना,23 जनवरी 2025 (घटती-घटना)। कोरिया जिले का इकलौता नगर पंचायत पटना में पहली बार चुनाव हो रहा है, पटना की राजनीति भी कुछ अलग ही बयां कर रही है, पटना में भाजपा से दो दिग्गज नेता जो सर्वोच्च नेता में गिने जाते हैं, कहा जाए तो पटना के लिए यह बहुत बड़े नेता हैं पर उनकी नेतागिरी अपने पटना से मंडल अध्यक्ष बनने में नहीं चली, पर अब जब सामने नगर पंचायत चुनाव है तब वह अपनी नेतागिरी चमक रहे हैं, अध्यक्ष से लेकर पार्षद प्रत्याशियों का चयन इन्हीं नेताओं के हाथ की कठपुतली बना हुआ है, क्षेत्र में एक सवाल यह भी है कि जब इतने बड़े जन आधार वाले नेता हैं सर्वमान्य नेता है तो क्या अपने घर से किसी प्रत्याशी को अध्यक्ष पद के लिए आगे नहीं कर सकते थे? या फिर उन्हें अपने सर्वमान्य होने पर भी संदेह है? इसलिए वह दूसरों के पैसे पर प्रत्याशी चयन करते हैं और दूसरों के पैसे पर प्रत्याशी को जितने का दम भरते हैं, अपने ऊपर ना तो पार्टी का दायित्व लेते हैं और नाहीं जिम्मेदारी लेते हैं, खुद इतने बड़े नेता होने के बावजूद अध्यक्ष से लेकर पार्षद प्रत्याशियों के चैन में अपनी ही पार्टी को तोड़ते नजर आए,जहां एक वर्ड का प्रत्याशी जो 35 साल से भाजपा की सेवा कर रहा था वह छोड़कर कांग्रेस चला गया, वहीं दूसरी तरफ अपने आप को महान बताने के लिए अपने दुकान में काम करने वाले कर्मचारियों को पार्षद प्रत्याशी बना रहे हैं, यह बात अच्छी है कि किसी गरीब तपके को मौका मिल रहा है पर यह मौका सिर्फ उसे गरीब तबके को इसलिए मिल रहा है क्योंकि वह उसे नेता के अधीनस्थ है, यदि वह नेता ऊंची सोच वाले होते तो शायद सड़कों पर झाड़ू लगाने व कचरा उठाने वाले व्यक्ति को भी पार्षद प्रत्याशी व अध्यक्ष प्रत्याशी भाजपा से बना कर अपनी महानता साबित कर सकते थे, पर क्या यह उनकी महानता सिर्फ अपने कर्मचारियों तक ही सीमित रह गई? या फिर उससे पार्षद बनने के बाद लाभ लेना ही उनका धेह होगा या फिर वह प्रत्याशी जीतने के बाद उनके हाथों की कठपुतली होगा? जिसे प्रत्याशी बनाने की तयारी है वह व्यक्ति वाकई में एक गरीब तबके का व्यक्ति है उसे प्रत्याशी बनाना इतना बुरा नहीं है जितना उसके नेता के सोच में खोट नजर आ रही है वह। वह व्यक्ति उसे नेता का समर्पित व्यक्ति है ना की पार्टी का समर्पित।
क्या दूसरे प्रत्याशी के पैसे पर चुनाव जीतने की लेते हैं गारंटी?
यह दो नेता की चर्चा इस समय पटना चुनाव में आम है प्रत्याशियों का विरोध जितना नहीं है उतना विरोध इन दो नेताओं का है जो प्रत्याशियों को भी नुकसान पहुंचा सकता है, यह बात शायद प्रत्याशियों को भी ना पता हो पर यह अंदर खाने की सच्चाई है, जिसे प्रत्याशी भी अनजान होंगे लोगों का कहना यह है कि यह नेता अपने दम पर गारंटी लेने वाले व चुनाव जितवाने वाले नेता नहीं है, यह दूसरे प्रत्याशियों पर उनके पैसे के दम पर गारंटी लेने वाले नेता हैं? क्योंकि इनके पास निष्पक्ष पूर्वक काम करने की रणनीति नहीं है स्वर्थ पूर्वक काम करने की रणनीति ही रही है, यह हम नहीं कह रहे यह पटना के लोग का कहना है जो नगर पंचायत चुनाव में प्रत्याशियों का भाग तय करेंग।
प्रत्याशियों को इन दो नेताओं की दूरी ही जीत दिला सकती है…
जानकारों का ऐसा कहना है कि प्रत्याशी का चेहरा उतना खराब नहीं है जितना उन दो नेताओं का चेहरा है जो उसे प्रत्याशी के साथ खड़े रहने से प्रत्याशी को नुकसान पहुंच सकता है, अब ऐसे में प्रत्याशी को अपने विवेक व मतदाताओं के आग्रह पर ही चुनाव मैदान पर उतरना होगा तभी जीत के करीब पहुंच सकते हैं।
क्या आठ नंबर वार्ड के प्रत्याशी को उपाध्यक्ष बना लेंगे उनके नेता?
आठ नंबर वार्ड पर भाजपा प्रत्याशी जिसे बनाना चाहते हैं नेताजी वह वाकई में संविधान पर खडा उतरने वाली बात है और एक अलग ही छाप छोड़ सकते हैं,पर क्या इस प्रत्याशी को नगर पंचायत उपाध्यक्ष तक भी पहुंचने का जिम्मा लेंगे? या फिर यह गरीब तबके का प्रत्याशी जीत के बाद आमिर तपके के प्रत्याशी के नीचे दबकर सिर्फ पार्षद तक ही सीमित रह जाएगा? क्योंकि नेताजी के समर्थक झाड़ू लगाने वाले को संविधान में चुनाव लड़ने का अधिकार है बता रहे है, पर चुनाव में प्रत्याशी बना सिर्फ उस नेता के नीचे काम करने का इनाम ही माना जा सकता है, जो राजनीति में आलोचना का विषय है। संविधान में तो मजदूर भी विधायक बन सकता है, तो फिर सड़क पर झाड़ू लगाने वाला व कचरा उठाने वाला भी चुनाव लड़कर पार्षद से लेकर कई पद हासिल कर सकता है, पर सवाल यह है की निस्वार्थ भाव से ऐसे लोगों का चुनाव हो पता है? या फिर सिर्फ वहवाही तक ही सीमित रह जाता है? अब जब झाड़ू लगाने वाले के चुनाव लड़ने की अधिकार के बात हो रही है तो अब यह भी महत्वपूर्ण हो गया है कि चुनाव लड़वाने वाले को उपाध्यक्ष तक पहुंचने का भी जिम्मा नेता जी को लेना चाहिए जो वास्तव में पार्टी के लिए सहित क्षेत्र के लिए भी एक मिसाल होगी।