@ दुख है,पिता को दफनाने के लिए बेटे को अदालत आना पड़ा…सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा ऐसा
@ सुप्रीम कोर्ट ने दफनाने के अधिकार पर सुनवाई की
@ याचिकाकर्ता ने पिता को गांव में दफनाने की अनुमति मांगी
@ हाई कोर्ट ने ईसाइयों के लिए कब्रिस्तान की कमी बताई
नई दिल्ली,23 जनवरी 2025 (ए)। सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के 9 जनवरी 2025 के आदेश को चुनौती देने वाली विशेष अनुमति याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। हाई कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें याचिकाकर्ता ने अपने पादरी पिता (ईसाई) को छिंदवाड़ा के एक गांव के कब्रिस्तान में दफनाने की अनुमति मांगी थी। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मृतकों को सम्मानपूर्वक दफनाने के अधिकार को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए और उसने इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाने पर जोर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि जिस व्यक्ति ने अपना पूरा जीवन गांव में बिताया, उसे वहां दफनाने की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती?
कोर्ट ने सरकार की दलील पर जताई आपत्ति
जस्टिस नागरत्ना ने राज्य सरकार की इस दलील पर भी आपत्ति जताई कि गांव के कब्रिस्तान में धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्तियों को दफनाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। कोर्ट ने राज्य और हाई कोर्ट की विफलता पर नाराजगी जताई और कहा, हमें दुख है कि एक व्यक्ति को अपने पिता को दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ा। न तो पंचायत,न ही राज्य सरकार, और न ही हाई कोर्ट इस समस्या का समाधान कर सका। कोर्ट ने सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता अपने पिता को अपनी निजी जमीन पर दफना सकते हैं, लेकिन इस पर राज्य ने आपत्ति जताई कि यह भूमि की पवित्रता को प्रभावित करेगा। कोर्ट ने सुनवाई के बाद अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया और कहा कि अंतिम निर्णय जल्द ही सुनाया जाएगा।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ के सामने राज्य की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए और कहा कि दफनाने के लिए ईसाई जनजातियों के लिए निर्धारित क्षेत्र का उपयोग किया जाना चाहिए।
संवेदनशील मुद्दे पर सुप्रीम नजीर का इंतजार
यह मामला मृतकों के सम्मानजनक अंतिम संस्कार के अधिकार, धार्मिक भेदभाव, और सार्वजनिक व्यवस्था से जुड़े संवैधानिक और सामाजिक मुद्दों को उठाता है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी भी की थी कि वह यह देखकर दुखी है कि एक व्यक्ति अपने पिता को ईसाई रीति-रिवाजों के अनुसार छत्तीसगढ़ के एक गांव में दफनाने के लिए शीर्ष अदालत तक पहुंचने को मजबूर हुआ क्योंकि अधिकारियों ने इस मुद्दे को सुलझाने में असफलता दिखाई। अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है तो ऐसे में इस मामले में जो फैसला होगा वह नजीर बनेगा।
क्या है पूरा मामला?
याचिकाकर्ता एक ईसाई आदिवासी हैं, जिनके पिता का 7 जनवरी 2025 को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था। परिवार ने अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए गांव में दफनाने की योजना बनाई थी लेकिन गांव के कुछ लोगों ने इसका हिंसक विरोध किया। इसके कारण शव 7 जनवरी से अब तक शवगृह (मर्चरी) में रखा हुआ है। याचिका में उल्लेख किया गया है कि गांव छिंदवाड़ा में परंपरागत ग्राम पंचायत द्वारा कब्रिस्तान मौखिक रूप से ईसाई और अन्य जातियों के लिए विभाजित किया गया है। मामले में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने यह कहते हुए राहत देने से इनकार कर दिया था कि गांव छिंदवाड़ा में ईसाइयों के लिए कोई अलग कब्रिस्तान नहीं है।
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