सूरजपुर/कोरिया@किसके अनुमति से काटा सूरजपुर रेवती रमण कॉलेज परिसर में लगा यूकेलिप्टस का पेड़?

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-शमरोज खान-
सूरजपुर/कोरिया 12 जनवरी 2025 (घटती-घटना)। वर्तमान में जैसी प्रशासन की स्थिति है उसे देखकर लग रहा है कि वाकई में प्रशासन अँधा, गूंगा व बहरा बना बैठा है, निरंकुश की स्थिति बनी हुई है यह बात इसलिए हो रही है क्योंकि यूपी से आए लकड़ी माफिया स्थनीय नेताओं के साथ मिलकर बड़े स्तर पर यूकेलिप्टस पेड़ की कटाई कर रहे हैं, कोरिया सूरजपुर में यूकेलिप्टस पेड़ की अंधाधुंध कटाई हो रही है,भारत सरकार द्वारा पेड़ को काटने के लिए किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं है अब यह बात कितनी सही है ये तो भारत सरकार जाने और स्थानीय प्रशासन? पर वहीं जानकारों का मानना है कि हरे पेड़ काटने के लिए वह चाहे पेड़ कोई भी हो अनुमति लेने की आवश्यकता होती है। सवाल तो यह भी है कि निजी स्थान के तो पेड़ काटे जा रही है, पर समझ में यह नहीं आ रहा की शासकीय जमीनों पर लगे यूकेलिप्टस के पेड़ किसके अनुमति से कट रहे हैं? क्या उसे पेड़ की कटाई के लिए भी अनुमति की जरूरत नहीं है? जानकारी के अनुसार सूरजपुर रेवती रमण कॉलेज के पास लगे 20 नग यूकेलिप्टस के पेड़ काट कर लकड़ी माफिया ले गए, पर क्या इस पेड़ को काटने की अनुमति ली गई थी? क्या यह पेड़ कॉलेज के प्रिंसिपल की निजी थी और यदि यह पेड़ कटी या बिकी तो क्या यह पैसे शासन के राजस्व जमा हुआ? क्या यह गलत नहीं है या फिर यह सब देखकर भी प्रशासन अनजान है?
ज्ञात होकी नीलगिरी या यूकेलिप्टस के पेड़ पर्यावरण के लिए हानिकारक है क्योंकि यह पेड़ 18-20 गुना वाष्पोत्सर्जन करता हैं इससे सूखा पढ़ने की स्थिति उत्पन्न होती है, साथ ही इसके पोशाक जहरीले होने की वजह से मिट्टी के पोषक तत्व को खींचकर बंजर बना देती है जिस वजह से इस पेड़ को पर्यावरण के हिसाब से हानिकारक माना जाता है यही वजह है कि इस पेड़ की कटाई पर कोई भी रोक नहीं है, पर यदि रोक है तो वह रोक है अपने पेड़ों की कटाई के लिए अनुमति लेने की,यह अनुमति इसलिए ली जाती है क्योंकि पेड़ को बेचने में आसानी हो सके,पेड़ की कटाई के लिए अनुमति जरूरी नहीं है पर पेड़ को बेचने के लिए अनुमति होती है, इस समय सूरजपुर जिले के हर गांव तक यूकेलिप्टस पेड़ की अंधाधुंध कटाई हो रही है और यह पेड़ दूसरे राज्यों में तस्करों द्वारा भेजे जा रहे हैं, यदि कहा जाए तो औने पौने रेट में तस्कर इस पेड़ को काटकर अच्छे दामों पर बाहर बेच रहे हैं, निजी जमीन पर लगे यूकेलिप्टस के पेड़ तो काटे जा ही रहे हैं, साथ ही शासकीय जमीन पर भी लगे यूकेलिप्टस के पेड़ को काटकर तस्कर बेच दे रहे हैं, पर सवाल यह उठता है कि क्या यूको लिफ्ट्स जो शासकीय जमीन पर लगे हुए हैं जिसे लगाने के लिए शासन ने काफी पैसे खर्च किए हैं उस पेड़ को भी वह फ्री में काट कर ले जा रहे हैं, जबकि वह पेड़ अच्छे दामों पर बाहर बेचे जा रहे हैं क्या उस पेड़ की कटाई का पैसा सरकार के खजाने में नहीं जाना चाहिए? क्या यह नियम विरुद्ध तरीके से तस्करी नहीं माना जाएगा?
दूसरे राज्य से आए लोग
कर रहे पेड़ की कटाई

दूसरे राज्यों से आए लोग यूकेलिप्टस पेड़ की कटाई में शामिल है, यूकेलिप्टस पेड़ के कटाई के अड़ा में कई पेड़ काटे जा रहे हैं, जिन्हें किसी भी प्रशासनिक अनुमति की जरूरत नहीं है, मनचाहा पेड़ की कटाई कर रहे हैं परिवहन में भी इन्हें कोई रोक-टोक नहीं हो रहा, नाहीं कोई दस्तावेज चेक हो रहे हैं सूत्रों का कहना है कि इस पेड़ के अवैध कटाई मामले में स्थानीय भाजपा नेता भी शामिल है।
दर्जनों बिना नंबर प्लेट व दस्तावेज वाली गाडि़यां दौड़ रहे हैं पेट कटाई में…बिना नियम कायदों की डाला बॉडी वाली ट्रैक्टरों से हो रहा लकडि़यों का परिवहन,कौन करेगा कार्यवाही?
सूत्रों का कहना है कि पेड़ कटाई के लिए आए बाहरी लोग दर्जनों बिना नंबर प्लेट एवं बिना दस्तावेज वाली गाडि़यां लेकर पूरे जिले में दौड़ रहे हैं और जहां यूकेलिप्टस का पेड़ मिल रहा है वहां काट रहे हैं और कटी हुई पेड़ को सूरजपुर के पड़ोसी जिला कोरिया के बैकुंठपुर में दो जगह इकट्ठा किया जा रहा है, अब यह गोदाम का रूप ले चुका है और वहां से ट्रक के माध्यम से अन्य राज्यों में जा रहा है और सवाल यह है कि ना काटने की परमिशन न परिवहन के लिए दस्तावेज फिर भी किस रसूखदार के इशारे पर पूरा काम हो रहा है। लकडि़यों का परिवहन जिन ट्रैक्टरों से हो रहा है वह अन्य राज्यों की ट्रेक्टर हैं। ट्रैक्टरों में न तो इंजन का नम्बर है न ही डाला बॉडी का नंबर है। डाला बॉडी का बनावट भी नियम कायदों के विपरीत है जो शायद परिवहन और यातायात विभाग के लिए कार्यवाही का कारण बनना चाहिए। क्षेत्र के जिले के वाहनों पर कार्यवाही करने वाले यातयात विभाग परिवहन विभाग के कर्मचारियों की निगाह इन ट्रैक्टरों पर क्यों नहीं पड़ रही है यह भी सवाल है। इन ट्रैक्टरों पर कौन कार्यवाही करेगा ओवरलोड पर कौन एक्शन लेगा और कौन इनके कागज की जांच करेगा यह भी प्रश्न है। इन ट्रैक्टरों की गति और भार ढोने की क्षमता कितनी होनी चाहिए और कितनी ढोकर यह ला ले जा रहे हैं इसकी जांच कौन करेगा यह भी देखने वाली बात होगी।
शासकीय जमीन पर प्लाटिंग वाले यूकेलिप्टस भी
कट कर चले गए अन्य राज्य

यूकेलिप्टस के पेड़ सिर्फ निजी जमीनों पर ही नहीं थे कई शासकीय जमीनों पर भी कई जगह पर लाखों यूकेलिप्टस के पेड़ लगाए गए थे, इस यूकेलिप्टस के पेड़ की कटाई भी हो गई और यह पेड़ छाीसगढ़ के बाहर चले गए,अब सवाल यह उठता है कि शासकीय पेड़ों की कटाई की अनुमति किसने दी और यदि कटाई की अनुमति दी तो आखिर उसे पेड़ को जिसने लगवा क्या उसने उसे राजस्व को शासन के खाते में जमा किया? फॉरेस्ट लैंड से लेकर शासकीय जमीन पर कई जगह पर पेड़ लगे हुए थे, यदि इस पेड़ की बिक्री हुई है तो नियम से दस्तावेज बनाकर उस पेड़ की कीमत की नीलामी होनी थी और नीलामी से उसे पैसे को राजस्व के खाते में जमा होना था, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है जबकि राजस्व से लेकर प्रशासनिक अमला पूरी तरीके से इन सब बातों से नजर अंदाज किया है।
जिम्मेदार कुछ भी कहने से बच रहे
रेवती रमण कॉलेज के प्रिंसिपल से बात किया गया तो उन्होंने कहा कि वन विभाग से उन्होंने परमिशन लाया था अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर वन विभाग से परमिशन किसने दिया? और यदि वन विभाग ने उन्हें काटने का परमिशन दिया या फिर वन विभाग ने पेड़ बेचा तमाम तरह के सवाल उसे पर खड़े होते हैं पर इसकी पूछ परख कौन करेगा जिसके पास इसका अधिकार है? वह तो मुख्य दर्शन बना बैठा है।
बिना दस्तावेज दौड़ रहे
वाहन से दुर्घटना का खतरा

एक तरफ जिले में सुरक्षा सप्ताह मनाया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ दूसरे राज्यों से आए लकड़ी तस्कर बिना दस्तावेज व नंबर प्लेट वाली गाड़ी से सुबह से शाम तक लकड़ी ढोह रहे हैं जिससे दुर्घटना की आशंका बनी रहती है वह दूसरी तरफ बाहर से आए लोगों का मुसाफिर भी नहीं चेक किया जा रहा है, बाहर के व्यक्ति कहीं कोई बड़े वारदात को इसी बीच अंजाम न दे दें और प्रशासन हाथ पैर हाथ धरे बैठी में रह जाए।
आपदा में अवसर की तरह यूकेलिप्टस पेड़ की हो रही कटाई?
यूकेलिप्टस पेड़ की कटाई आपदा में अवसर जैसी हो गई है क्योंकि जब से यह बात पता चली है कि यूकेलिप्टस का पेड़ पर्यावरण के लिए हानिकारक है, पर इस पेड़ की कीमत आज भी है जो इसे दूसरे राज्यों में बेचकर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है, और कमाई के लिए ही इस समय सूरजपुर जिले में यूकेलिप्टस के पेड़ की कटाई भी तस्करों द्वारा की जा रही है, बस उनके लिए यह बात आसान हो गया है की कटाई में कोई प्रतिबंध नहीं है, पर शायद उन्हें यह नहीं पता है कि बेचने व बाहर ले जाने के लिए अनुमति होनी आवश्यक है, इस लकड़ी की तस्करी में कहीं ना कहीं शासन भी तस्करों के साथ है, क्योंकि जिस प्रकार से इस लकड़ी की कटाई तस्कर अपने मुनाफा के लिए कर रहे हैं और अच्छा खासा मुनाफा पा रहे हैं, यही वजह है कि दूसरे राज्यों से बुलाकर लकड़ी काटने व ढोने वाले ले जाने वाले को लकड़ी माफिया ने टेंडर दे रखा है। पर मुनाफा तस्कर कमा रहे हैं नुकसान जिले का हो रहा है यहां तक की पेड़ लगाकर बड़े करने वाले को भी इसका भारी भरकम नुकसान हो रहा है, निजी जमीनों के पेड़ तो काटे ही जा रहे हैं जो पेड़ सरकारी खर्चे पर लगाए गए थे उन पेड़ों को भी निशुल्क काटकर लकड़ी माफिया अपना जेब भर रहे हैं।
पर्यावरण के लिए नुकसान पर यूकेलिप्टस का पेड़ तस्करों
के लिए मुनाफे वाला

यूकेलिप्टस का पेड़ पर्यावरण खासकर भू जल स्रोत के लिए सही नहीं माना जाता। यूकेलिप्टस का पेड़ भू जल स्रोतों को नुकसान पहुंचाता है यह सही भी है लेकिन यूकेलिप्टस का पेड़ फिर भी बड़े पैमाने पर लगाया जाता है। कोरिया जिले सहित सूरजपुर जिले में काफी तादाद में यह वृक्ष लगा हुआ था जो अब लकड़ी तस्करों के लिए मुनाफे का कारण बन रहा है। अब लकड़ी तस्कर जो बाहरी हैं वह खुलेआम इसको काट रहे हैं और अन्य राज्यों को भेज रहे हैं।
कलेक्टर से शिकायत
अरविन्द सिंह ने कलेक्टर कोरिया से शिकायत कर कहा की विगत कुछ माह से जिले में हरे-भरे पेड़ों की अन्धाधुन्ध कटाई बिना किसी भी शासन के आदेश या अनुमति के ग्रामीण अंचलों में पेड कटाई कराकर बैकुण्ठपुर से पटना मार्ग पर शुक्ला पेट्रोल पम्प के पास बिना किसी भी शासकीय अनुमति के प्रतिदिन बिना नम्बर वाले ट्रेक्टर वाहनों से इक्टठा कर ट्रकों में लदान कर बाहर भेजा जा रहा है। मात्र छः किलोमीटर की दूरी पर स्थित जिला पुलिस मुख्यालय बैकुण्ठपुर, वन मण्डलाधिकारी, अनुविभागीय दण्डाधिकारी, तहसीलदार कार्यालय का संचालन जिले में चल रहा है। तमाम आला अधिकारी द्वारा इन्हीं रास्ते राष्ट्रीय राज्य मार्ग से विभिन्न धान खरीदी केन्द्रों का निरीक्षण प्रतिदिन किया जा रहा है।
परन्तु आपसी सहमति अथवा मिली भगत के कारण जिला अधिकारियों का ध्यान इस ओर नहीं दिया जा रहा है। इन्ही हरे-भरे पेडो से मनुष्य को आक्सीजन प्राप्त होता है, जिसे मौन होकर जिला प्रशासन मात्र देख रहा है। वर्ष 2019 में आक्सीजन की कमी के कारण कोरोना महामारी के दौरान आक्सीजन की कमी के कारण हमने कई क्षेत्रवासियों को खोया है, जिसका खामियाजा आज भी परिवार के लोग भोग रहे हैं। आने वाले समय में वृक्षों की कमी के कारण दिल्ली की तरह कोरिया जिला भी प्रदूषण युक्त होगा जिसका खामियाजा आम नागरिक को उठाना पड़ेगा। उक्त बातों को यदि गंभीरतापूर्वक नहीं लिया जाता है तो बड़ी जन हानी होने की संभावना है।


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