छत्तीसगढ़ के पावन भुइँया,जेखर महिमा अपरंपार हे।एकर कतको बखान करे जाय कम ही हे।जब भुइँया के बात आथे,त ए माटी के सुरता हमन ल बरबस ही धान के रिगबिग-रिगबिग छटके लहलहात फसल के बाली ह, डोली ह, अउ खेती-खारी ह झलक जाथे।छत्तीसगढ़-माटी के इही पहचान आय,इही ह तो चिन्हारी आय।तभे तो कहे जाथे-
“छत्तीसगढ़ के पावन माटी
जेकर महिमा हे अबड़ भारी।
ए माटी के अड़बड़ महात्तम
जेमा उपजे हे अनकुमारी।
इही अन्न धान के पाछु म हमर छत्तीसगढ़ म किसम-किसम के परब ल मनाय जाथे।जेखर उद्देश्य हमर संस्कृति,सभ्यता,रहन-सहन,रीति-रिवाज अउ हमर पुरखा के मान-बड़ाई अउ धरम ल अंगीकार करना,अउ आने वाला पीढ़ी ल ओकर महात्तम ल बताना आय। इही परिपाटी म आथे हमर लोक परब छेरछेरा जेला छत्तीसगढ़ के सबले बड़े परब के रूप म जाने जाथे।जे दिवस म अन्न के दान ल अब्बड़ महत्व माने जाथे।अउ इही दिन ल हमर छत्तीसगढ़ीहा मरार बन्धु मन शाकम्भरी जयंती के रूप म भी मनाथे।गाँव-गाँव कलश यात्रा निकाले जाथे,इही देवी ल ए मन अपन कुलदेवी के रूप पूजा अर्चना करथें।
ए लोक परब ल मनाए जाथे पूस पुन्नी के पावन दिवस म।ए दिन म नान्हे-नान्हे लईका सियान, जवान, जम्मो हमर सँगी-जहुंरिया, भाई-बहिनी मन टुकनी-चरिहा धर के गाँव-गंवई के खोर-गली म टोली बनाके मोहाटी-मोहाटी म जाके “छेरछेरा-छेरछेरा-माई कोठी के धान ल हेरहेरा”
के टेर लगाथें।अउ फेर घर के सियान मन अपन शक्ति अनुसार धान के दान करथें।
एक तरह से देखा जाय त एहर हमर छत्तीसगढ़ के बहुत सुग्घर पावन परम्परा आय,जेमा “दान देना अउ दान लेना के संस्कृति ह झलकथे।
अउ ए परम्परा ल मनाय के कारण ए हर आय की नावा फसल के मिंजाई हो जाथे जेला सुग्घर मन्जा के अपन घर ले आथें।घर के कोठी-डोली ह धान म भर जाथे।अउ इही खुशी के कारण मनाय जाथे लोक परब छेरछेरा।ए लोक परब छेरछेरा के उत्सव ह खेती-किसानी के प्रमुख धंधा म दान पुण्य के रिवाज ल सुरता करा देथे।अउ इही बहाना हमर छत्तीसगढ़ के जनमनास म एक उल्लास अउ सामाजिक भावना के संचार होथे। ए सुग्घर बेरा म गाँव के युवा संगी-जहुंरिया मन टोली बनाके झांझ-मंजीरा मांदर सँग कूद- लईया मार-मार के छेरछेरा माँगत डंडा गीत म नाचथें-गाथें गाँव म जगह-जगह लाइ-मुर्रा के लाडू बेचात रहिथे जेला कुलकुल्ला हो के जनमानस सहित लईका मन अड़बड़ बिसाके खाथें।
अउ ए प्रकार से ए लोक परब छेरछेरा धीरे-धीरे दान देहे के परमपरा बन गिस। ए परम्परा ल हमर गाँव के जनमानस मन श्रद्धा-विस्वास के साथ मनाना शुरु कर दिन।जे पर्व हर मात्र एक परम्परा बस नोहय, एमा छत्तीसगढ़ के सासंस्कृतिक अउ धार्मिक महात्तम हर भी फरी-फरी झलकथे,जेमा श्रद्धा विस्वास के, मया-पिरित के, भाईचारा ह दिखथे।
अशोक पटेल आशु
शिवरीनारायण
छत्तीसगढ़
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