नई दिल्ली,26 दिसम्बर 2024 (ए)। देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह का गुरुवार को दिल्ली में स्थित एम्स में निधन हो गया। बीते 26 सितंबर को वह 92 साल के हुए थे। बता दें कि मनमोहन अपने हिंदी भाषणों को उर्दू लिपि में लिखा करते थे और इसकी एक खास वजह थी। उर्दू के अलावा वह पंजाबी भाषा की गुरुमुखी लिपी और अंग्रेजी में भी लिखा करते थे। देश-दुनिया में अर्थशास्त्र के बड़े विद्वानों में शामिल मनमोहन सिंह 10 साल देश के प्रधानमंत्री रहे। उन्होंने इससे पहले वित्र मंत्री के रूप में देश की आर्थिक नीतियों में बड़ा परिवर्तन किया था।
हिंदी भाषणों को उर्दू में क्यों लिखते थे मनमोहन?
मनमोहन सिंह की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा पंजाब के जिस इलाके में हुई थी, आज वह पाकिस्तान का हिस्सा है। उनकी पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत उर्दू माध्यम में हुई थी इसीलिए वह उर्दू अच्छी तरह लिख और पढ़ लेते थे। उर्दू लिपी के अलावा वह पंजाबी भाषा की गुरुमुखी लिपी में भी लिखते थे। मनमोहन सिंह अंग्रेजी में भी पारंगत थे और उन्होंने अंग्रेजी में कई महत्वपूर्ण किताबें लिखी थीं। एक मृदुभाषी शख्सियत रहे मनमोहन सिंह को सार्वजनिक जीवन में शायद ही कभी गुस्से में देखा गया हो। वह हमेशा बेहद गंभीर और शांतचित्त नजर आते थे।
कैम्बि्रज में नीले
रंग से हुआ था जुड़ाव
मनमोहन सिंह की नीली पगड़ी की कहानी 2006 से जुड़ी थी, जब उन्हें कैम्बि्रज विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट ऑफ लॉ से सम्मानित किया गया था। इस मौके पर तत्कालीन ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग और विश्वविद्यालय के चांसलर प्रिंस फिलिप ने उनकी की पगड़ी और उसके रंग पर ध्यान खींचा। इसके बाद मनमोहन सिंह ने खुद बताया था कि क्यों वह इस रंग की पगड़ी पहनते हैं और यह उनके लिए कितना खास है।
नीली पगड़ी की आदत
मनमोहन सिंह ने इस बारे में बताते हुए कहा था, “जब मैं कैम्बि्रज में पढ़ाई कर रहा था, तो मैं नीले रंग की पगड़ी पहनता था। मेरे दोस्तों ने मुझे ब्लू टर्बन (ब्लू पगड़ी) का निकनेम दिया था।” इसका मतलब साफ था कि यह रंग उनके जीवन का एक अहम हिस्सा बन चुका था, जो उनके छात्र जीवन से लेकर उनके प्रधानमंत्री बनने तक साथ रहा।
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से ली थी डॉक्टरेट की उपाधि
कैम्बि्रज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री और फिर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने वाले मनमोहन सिंह अर्थशास्त्र के दिग्गजों में गिने जाते थे। 1991 में जब भारत की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट से गुजर रही थी, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने उन्हें वित्त मंत्री बनाया। यह वह समय था जब भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नया दिशा देने के लिए बड़े बदलावों की आवश्यकता थी। ऐसे समय में मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण की नीति को लागू किया।
मौजूदा भारतीय अर्थव्यवस्था के आर्किटेक्ट थे मनमोहन
मनमोहन सिंह ने वित्र मंत्री के रूप में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए नीतियों में बड़े स्तर पर बदलाव किए और भारत की व्यापार नीति को और ज्यादा लचीला बनाया। इन आर्थिक सुधारों ने भारत की अर्थव्यवस्था को नया जीवन दिया और इसे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना दिया। उनके नेतृत्व में भारत ने आर्थçक संकट से बाहर निकलकर तेजी से विकास किया। उनके योगदान के कारण उन्हें मौजूदा भारतीय अर्थव्यवस्था का आर्किटेक्ट माना जाता है।
प्रधानमंत्री के रूप में भी दिया था अहम योगदान
मनमोहन सिंह 2004 से 2014 तक भारतीय प्रधानमंत्री रहे। प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने अपनी सादगी और गहन विचारशीलता से भारतीय राजनीति में एक अहम स्थान बना लिया था। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद, भारत ने वैश्विक मंच पर नए सिरे से अपनी पहचान बनानी शुरू की थी। उनके नेतृत्व में भारत ने अमेरिका के साथ परमाणु समझौता किया, जो देश के लिए महत्वपूर्ण था। इस समझौते ने वैश्विक परमाणु शक्ति के रूप में भारत की स्थिति को और मजबूत किया था। प्रधानमंत्री के रूपम में मनमोहन ने गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में कई योजनाओं की शुरुआत की थी।
सम्मान और उपलब्धियां
1987 में उन्हें भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया. उनके नाम पर कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार दर्ज हैं. डॉ. मनमोहन सिंह अपने सादगीपूर्ण जीवन और ईमानदार छवि के लिए हमेशा जाने जाते रहेंगे. उन्होंने हमेशा देश की प्रगति और आम जनता के हित को प्राथमिकता दी. उनका निधन भारत के लिए एक बड़ी क्षति है. वे एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने न केवल भारत को आर्थिक संकट से उबारा बल्कि एक समृद्ध और स्थिर देश की नींव भी रखी । उनका जीवन आने वाली पीढç¸यों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा.