- एक बार फिर पटना ग्राम पंचायत कार्यालय के नाम को मिटाकर नगर पंचायत कार्यालय पटना लिखा गया है…
- आचार संहिता लगते ही प्रथम नगर पंचायत अध्यक्ष बनने का सपना टूट जाएगा मनोनीत अध्यक्ष का…
- ग्राम पंचायत कार्यालय का नाम मिटवाकर वर्तमान सरपंच ने खुद ही अपने सामने खड़े होकर लिखवाया नगर पंचायत कार्यालय पटना:सूत्र
- फिर से मनोनीत अध्यक्ष उपाध्यक्ष व पार्षद के शपथ ग्रहण कार्यक्रम आयोजन करने की उठ रही मांग
- जिन्होंने खुद आमंत्रण-निमंत्रण के बाद किया था शपथ ग्रहण के कार्यक्रम का बहिष्कार वही अब कर रहे कार्यक्रम के लिए निवेदन
- क्या बहिष्कार करने वालों के झूठी बातों में आयेगा नगर पालिका प्रशासन,जिला प्रशासन?
-रवि सिंह-
कोरिया/पटना,19 दिसम्बर 2024 (घटती-घटना)। कोरिया जिले में कांग्रेस शासनकाल में लिया गया पटना को नगर पंचायत बनाने का निर्णय अब मजाक सा लगने लगा है, यह मजाक इसलिए लगने लगा है क्योंकि निर्णय लेने से लेकर पूर्णतः नगर पंचायत बनने तक की स्थिति पर गौर किया जाए तो ग्राम पंचायत बना रहे नगर पंचायत ना बने नगर पंचायत जल्दी अस्तित्व में आए ग्राम पंचायत भंग हो यह सब प्रक्रिया के बीच कोर्ट कचहरी सब चीज हो गई, राजपत्र प्रकाशन से लेकर तमाम तरीके से संतुष्ट करने का प्रयास किया गया पर उसके बाद भी टालमटोल व दो निकायों के बीच कार्यालयों के के बीच वर्चस्व की लड़ाई देखी गई, नगर पंचायत पटना नगर पंचायत होगा यह राजपत्र में प्रकाशित हुआ फिर पुराने निर्वाचित सरपंच व उप सरपंच सहित वार्ड पंचों को शासन के नियमानुसार और नियमों के अनुरूप मनोनीत कर अध्यक्ष उपाध्यक्ष व पार्षद बनाया गया इस राजपत्र को आए अभी 2 महीने से ऊपर हो गए पर किसी ने भी इसे मानने की इक्षा नहीं जताई, यहां तक कि जहां कांग्रेस पार्टी से सम्बद्ध पंचों ने अंदरूनी विरोध किया वहीं भाजपा से सम्बद्ध पंचों ने भी इसका विरोध ही किया, मनोनीत अध्यक्ष उपाध्यक्ष पार्षदों के लिए शपथ ग्रहण समारोह भी आयोजित किया गया पर शपथ ग्रहण भी नहीं हुआ और सभी मनोनीत सदस्यों ने ही इसका विरोध किया अब जब पंचायत का कार्यकाल खत्म होने जा रहा है तो फिर से यह मांग उठ रही है कि दोबारा शपथ ग्रहण कराया जाए, और सभी मनोनीत सदस्यों को शपथ दिलाया जाए वहीं यह मांग भी वही कर रहे हैं, जिन्होंने आमंत्रण मिलने के बाद भी झूठ का सहारा लिया और आमंत्रण का बहिष्कार भी किया और आमंत्रण न मिलने का झूठ बोलकर खुद को पाकसाफ भी साबित किया। अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिर कितने दिन के लिए यह मनोनयन वाले अध्यक्ष व उपाध्यक्ष या पार्षद होंगे या फिर सिर्फ बोर्ड में लिखने मात्रा के लिए यह शपथ ग्रहण करेंगे? वैसे शपथ ग्रहण होगा कि नहीं अभी यह भी तय नहीं है, क्योंकि बहिष्कार के बाद बहिष्कार करने वाले अनुनय विनय करने में लगे तो हैं लेकिन उन्हें अभी सफलता नहीं मिली है। अब सब कुछ किरकिरी कराने के बाद अब प्रथम अध्यक्ष कहलाना पार्षद कहलाना कितना उचित होगा? यह भी अब सवाल है जहां शांतिपूर्वक प्रथम नगर पंचायत अध्यक्ष बनना था वहां पर वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे थे पंचायत की सरपंच नगर पंचायत के सीएमओ दोनों आपसी तकरार पर चल रहे थे। वैसे कांग्रेस से जुड़े पंच पूरे मामले में इस भूमिका में थे कि उन्हें पद मिला नहीं मनोनयन में इसलिए शपथ हो ही न जिससे किसी का प्रथम कहलाना संभव नहीं होगा और सभी उनके साथ नजर आयेंगे। पूरा समीकरण और विरोध कांग्रेस समर्थित पंचों का पेंच था जिसमें भाजपा समर्थित पंच सहयोगी थे और बराबर की उनकी मंशा थी कि यह मनोनयन न हो नगर पंचायत का अस्तित्व समाप्त हो जाए।
यदि शपथ ग्रहण होता है तो कितने दिनों का कार्यकाल होगा मनोनीत अध्यक्ष उपाध्यक्ष एवं पार्षदों का?
यदि अब प्रशासन प्रथम बार आयोजित शपथ ग्रहण कार्यक्रम के बहिष्कार उपरांत पुनः शपथ ग्रहण कार्यक्रम कराने की अनुमति नगर पंचायत को देता है और बहिष्कार करने वालों का शपथ ग्रहण होता है जिन्हें शासन ने मनोनीत किया है तो उनका कार्यकाल कितने दिनों का होगा यह देखना होगा। क्या आचार संहिता जल्द लगने वाली है और संभवतः इसी माह नगरीय निकाय चुनाव की घोषणा होनी है और मनोनयन का कोई विशेष लाभ मनोनीत अध्यक्ष उपाध्यक्ष पार्षद नहीं उठा पाएंगे और वह शपथ लेकर भी केवल एक दो दिन बाद पूर्व हो जायेगे। वैसे प्रथम आयोजित शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार नहीं किया होता इन्होंने तो इन्हें कुछ दिन का अनुभव नगरीय निकाय का होता जिसका लाभ उन्हें चुनाव में होता।
अब क्या वर्तमान सरपंच को शपथ ग्रहण न करने का कहीं अफसोस तो नहीं हो रहा?
वर्तमान सरपंच का खुद खड़े होकर नगर पंचायत के नाम का लेखन पंचायत के नाम को मिटवाकर करवाना यह बतलाता है कि वह स्वीकार कर चुकी हैं कि पटना अब नगर पंचायत ही रहने वाला है। वैसे क्या उन्हें अफसोस हो रहा है और वह शपथ ग्रहण का बहिष्कार कर खुद को ही खुद से ठगा महसूस कर रही हैं क्योंकि अब उनके साथ रहने वाले पंच शपथ ग्रहण की करवाने की मांग कर रहे हैं जबकि उन्हीं के द्वारा सरपंच के साथ मिलकर उसका विरोध किया गया था। वैसे सरपंच सहित उनके साथ रहने वाले पंच अब शपथ ग्रहण न करके कहीं न कहीं अफसोस में हैं।
पंचायत कार्यालय मिटाकर अब पूर्ण नगर पंचायत कार्यालय लिखा गया
अब पटना नगर पंचायत का बोर्ड पंचायत कार्यालय के नाम के आगे लग गया। अब नगर पंचायत लिखा हुआ बोर्ड ही नजर आ रहा है पंचायत कार्यालय में अब कहा जाए तो सभी विरोध करने वालों ने मान लिया कि पटना नगर पंचायत ही रहने वाला है वहीं इस बात को स्वीकार करने वालों में पटना सरपंच उनके समर्थक भी अब शामिल है।