लेख@ अति भक्ति चोरी का लक्षण

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परमात्मा की भक्ति का मतलब है परमात्मा का सिमरन, चिंतन, मनन आदि में इतना लीन हो जाना कि व्यक्ति को दुनिया की सुध ही ना रहे। धर्म ,अर्थ ,काम… यह तीनों मनुष्य के जीवन का अभिन्न अंग है इनके बिना जीवन असंभव तो नहीं, कठिन जरूर है। हम सब जानते हैं कि हम सब यहां परमात्मा की मर्जी से आए हैं, जब चाहेगा वापिस‌ बुला लेगा। यह दुनिया हमारे लिए एक धर्मशाला है। अब
यहां हम रह रहे हैं, कल कोई और रहता था और कल कोई और रहेगा। वापिस जाते-जाते इस धर्मशाला को गंदा नहीं बल्कि सुंदर बनाकर जाना चाहिए ताकि यहां आने वाला नया मुसाफिर यही सोचे कि पहले वाला आदमी कितना अच्छा था। इसी बात को लेकर हमें धर्म की जरूरत पड़ती है जो कि हमें सद् मार्ग पर चलाता है, पाप
और पुण्य में फर्क बताता है, संस्कार सिखाता है, लोक परलोक सुधारने का मार्गदर्शन करता है। पहले जमाने में साधु, संत ,तपस्वी, ऋषि मुनि लोग संसार के माया मोह से परे हटकर जंगलों में, गुफाओं में, पर्वतों में जाकर प्रभु का सिमरन करते थे। काम, क्रोध ,लोभ, मोह, अहंकार आदि पर नियंत्रण करते थे। धर्म हमें आध्यात्मिकता की तरफ ले जाता है। संतोष, संयम, तृप्ति, स्व नियंत्रण का पाठ पढ़ाता है। धर्म हमें त्याग करने, माता-पिता की सेवा करने, स्ति्रयों, बच्चों, कमजोर लोगों पर दया करना सिखाता है। गुरुजनों का आदर करना सिखाता है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर हम धर्म से जुड़े महापुरुषों का गुणगान करते हैं, उनका अनुकरण करते हैं, उनके उदाहरण देते हैं।
लेकिन आजकल धर्म से संबंधित यह बातें देखने को नहीं मिलती। सच्चे अर्थों में धर्म देखने को नहीं मिलता। धर्म के नाम पर दिखावा, पाखंड, ढोंग आदि बातें देखने को मिलती हैं। आम चीजों में मिलावट की तरह धर्म में भी आजकल मिलावट हो गई है। पता ही नहीं चलता कि सच में धर्म का पालन कौन कर रहा है और धर्म के नाम पर दिखावा और पाखंड करके दूसरों को बेवकूफ कौन बना रहा है। ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु, ईसा मसीह आदि के नाम पर अलग-अलग पथ चले हुए हैं। सभी अपने आप को धर्म का ठेकेदार समझते हैं और दूसरों को गलत समझते हैं। धर्म से संबंधित अधिकांश लोगों का व्यवहार बगुले जैसा है जो मौका मिलते ही अपने शिकार को नहीं छोड़ता। बहुत सारे धर्माचार्य चालाकी से चमत्कार दिखाकर असाध्य बीमारियों का इलाज कर रहे हैं, लोगों को धर्म के रंग में रंग कर उनसे पैसे लूट रहे हैं, इन धर्माचार्यों के पास रहने क
े लिए वातानुकूलित महलनुमा निवास हैं, गाडç¸यां हैं, हवाई जहाज में सफर करते हैं, प्रवचन करने के लाखों रुपए लेते हैं। अपने भक्तों को माया से दूर रहने का उपदेश देते हैं जबकि खुद इस माया की दलदल में फंसे हुए हैं। बहुत सारे तथाकथित संत महंत, महात्मा, बाबे राजनेताओं से जुड़े हुए हैं। अपने भक्तों को अमुक पार्टी को वोट देने के लिए कहते हैं, काले धन को सफेद करने में भी लगे रहते हैं।
कुछ तथाकथित संत लोग कामवासना के शिकार होकर दोषी साबित होने पर जेलों की रौनक बढ़ा रहे हैं। आजकल जिसे देखो तीर्थ यात्रा करने जा रहा है, जगराते करवा रहा है, भंडारे करवा रहा है। सभी अपने आप को धर्म से जुड़ा हुआ दिखलाना चाहते हैं जबकि उनके मन में खोट भरा हुआ है। ऐसे लोगों ने गेरूए वस्त्र जरूर धारण कर रखे हैं लेकिन उनमें त्याग, संयम, परमात्मा के प्रति समर्पण भावना, सच्चाई, संतोष, तृप्ति, ईश्वर में अटूट विश्वास, धार्मिक ग्रंथो का ज्ञान तथा उन पर अमल करना आदि बातें देखने को नहीं मिलती। आजकल धर्म एक व्यापार बना हुआ है। जिसे धर्म का मतलब ही पता नहीं वह भी अपने आप को,,,, शास्त्रों में ऐसा लिखा है,,, कहकर धार्मिक होने का पाखंड करता है। अति भक्ति चोरी का लक्षण,,, वाली बात आम देखने को मिलती है। यह लोग धर्म के नाम पर भाईचारा, प्रेम, गुरुजनों तथा बुजुर्गों की सेवा करना, महिलाओं तथा बच्चियों की अस्मत की रक्षा करना, सच बोलना, ईमानदारी से कमाकर खाना, परिवार में सुख शांति बना कर रखना, क्षमा करना, अपनी आमदनी का कुछ भाग जरूरतमंदों पर खर्च करना आदि बातें नहीं सिखाते। क्या तिलक लगाने, गले में माला डालने, तालियां बजाकर भजन कीर्तन करने से भगवान मिल जाएगा अगर मन में छल,कपट,ईर्ष्या, अहंकार, क्रोध, दोगलापन, पाखंड और दिखावा छुपा हुआ है। धर्म के नाम पर आजकल दंगे फसाद होते हैं जबकि उर्दू के प्रसिद्ध शायर, मोहम्मद इकबाल ने कहां है,,, मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना,,,,के बावजूद भी धर्म के नाम पर हिंसा, हत्या, लूटमार, आगज़नी आदि की घटनाएं होती रहती हैं। यह सब तो धर्म नहीं है। जिसे देखो सनातन धर्म की बात करता है। बहुत अच्छा है।
प्रोफेसर शाम लाल कौशल
रोहतक( हरियाणा)


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