कोरिया/एमसीबी@अविभाजित कोरिया के तीनों पूर्व विधायक अब बनें सांसद प्रतिनिधि…बारहवीं पास करके दसवीं पढ़ने की स्थिति

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-रवि सिंह-
कोरिया/एमसीबी,09 दिसम्बर 2024 (घटती-घटना)। कभी सत्ता के नशे में चूर होकर जिन विधायकों की चाल बदल गई थी उन्हे पिछले विधानसभा चुनाव में जनता ने बाहर का रास्ता दिखला दिया था, जो अधिकारियों पर अपना रौब झाड़ते थे, सीधे मुह किसी से बात नही करते थे,अधिकारी कर्मचारी से लेकर अन्य वर्ग को भी परेषान किया करते थे,हर गलत कार्य करने वाले को सहारा देते थे,यही नही कार्यकर्ताओं को भी तवज्जो नही देते थे उन्हे पिछले एक वर्ष से अपने पद के आगे पूर्व लिखा हुआ शोभा नही दे रहा था इस वजह से अब ऐसे माननीयों को सांसद प्रतिनिधी का पद लेना पड़ा है,यह पद पाकर ऐसे माननीय भले ही खुश हो और उनके समर्थक उन्हे सोशल मीडिया में बधाई देते फिर रहे हों लेकिन कार्यकर्ता एवं आम जन मानस में इसका उल्टा असर दिखलाई पड़ रहा है जनमानस में चर्चा है कि जो विधायक पद पर होने के दौरान खुद के दर्जनों प्रतिनिधी नियुक्त करते फिर रहे थे वे अब खुद प्रतिनिधी बन गए हैं जो कि हास्यप्रद ही कहा जा सकता है।
उनकी मनसा के अनुरूप बनाया गया या फिर अपनी मनसा थोपी गई?
कोरबा सांसद वैसे तो काफी अनुभवी नेत्री में मानी जाती है और उनके लिए गए निर्णय काफी अच्छे होते हैं, पर न जाने इस बार उन्होंने ऐसा निर्णय क्यों लिया? कि वह खुद ही आलोचना की शिकार हुई साथ ही अपने पूर्व विधायकों को भी आलोचना के जाल में फंसा दिया। कोरबा सांसद ज्योत्सना महंत काफी अच्छी नेत्री मानी जाती है उनके पास निर्णय लेने की क्षमता बहुत अधिक व अच्छी है और उनके निर्णय कई बार अच्छे भी साबित हुए हैं, पर इस बार लिया गया निर्णय उनके लिए सहित जिन्हें उन्होंने सांसद प्रतिनिधि चुना उनके लिए भी घातक हो गया है, सोशल मीडिया में जहां सत्ता पक्ष के छूट भैया नेता हावी हो गए हैं तो वहीं तमाम तरह से लोग इस फैसले को गलत बताने में नहीं झिझक रहे। अब सवाल यह उठता है कि जिन्हें सांसद प्रतिनिधि बनाया गया है उनकी मनसा के अनुरूप बनाया गया है या फिर अपनी मनसा थोपी गई है तमाम तरीके से यह सवाल अब उठ रहे हैं कई लोगों का कहना है कि जिन्हें बनाया गया उन्हें खुद पता नहीं था और अचानक उन्हें विधायक प्रतिनिधि का आदेश थमा दिया गया, पर वही कुछ का कहना है कि उनके मनसा के तहत ही इन्हें बनाया गया है क्योंकि कोई भी अधिकारी उनकी सुन नहीं रहा था जिस वजह से यह निर्णय लिया गया और उस आदेश में यह भी लिखा गया है कि संसद की अनुपस्थिति में इन प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया जाए।
उनका प्रयोग नई रणनीति कही प्रत्याशियों के दौड़ से बाहर करना तो नहीं?
उनका प्रयोग नई रणनीति यह हो सकती है कि जिन्हें भी जिन पूर्व विधायकों और विधायक पद के प्रत्याशियों को सांसद ने अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया है वह आगे अब प्रत्याशी नहीं होंगे विधायक पद के या उनमें से कुछ प्रत्याशी नहीं होंगे। वैसे कार्यकर्ताओं का मन इस मामले में काफी उदास हुआ है और दबी जबान से वह यह कहते सुने जा रहे हैं कि यह नई परम्परा पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित होने वाली है और पार्टी वाले समय में इसका खामियाजा भुगतेगी। कार्यकर्ता दबी जबान में यह कहते सुने जा रहे हैं कि जिन्हें जनता ने हाल ही में बुरी तरह नकार दिया वह अब सांसद की नजर में योग्य हो गए उन्हें सांसद बड़ी जिम्मेदारी दे रही हैं। कार्यकर्ताओं का हक इस तरह खत्म किया जा रहा है नई परंपरा से कार्यकर्ताओं का मनोबल अब टूटेगा यह कहना है कार्यकर्ताओं का। वैसे कार्यकर्ताओं का कहना यह भी है कि यदि सांसद को लगता है कि लोकसभा चुनाव में उनकी जीत पूर्व विधायकों की देन है तो यह गलत है, कार्यकर्ताओं का कहना है कि लोकसभा की जीत तब सुनिश्चित हुई अविभाजित जिले में जब लोगों को यह विश्वास हुआ कि अब पूर्व विधायकों से उनका पीछा छूट चुका है और उनसे उनका अब कोई लेना देना नहीं होगा। कार्यकर्ताओं ने इस नियुक्ति को लेकर यह भी विचार प्रकट किया कि यह नियुक्ति पूर्णतः ऐसी नियुक्ति है जिसके बाद पार्टी को आगामी चुनावों में नुकसान होना तय है।
क्या इतने बड़े क्षेत्र का दौरा नहीं कर पा रही इसलिए सांसद प्रतिनिधि चुनना पड़ा?
वैसे सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या सांसद ने यह निर्णय इसलिए लिया है क्योंकि वह बड़े क्षेत्र में दौरा नहीं कर पा रही हैं। सांसद ने अपना प्रतिनिधि बड़े क्षेत्र में इसलिए बनाया जिससे उन्हें हर जगह न जाना पड़े क्षेत्र में यह भी लोग कहते सुने जा रहे हैं। वैसे सांसद का निर्णय बड़े क्षेत्र की वजह से ऐसा है तो फिर कुछ हद तक सही है क्योंकि जब कभी वह किसी बैठक में उपस्थित हो पाने में बिलकुल सक्षम न पाएं किसी कारणवश तब उनका प्रतिनिधि शामिल हो जाए बैठक में। अब बात कुछ भी हो लेकिन यह नया पैंतरा ही माना जा रहा है सांसद का।
क्या पूर्व विधायक कि नहीं सुन रहा कोई इस वजह से उन्हें प्रतिनिधि नियुक्त किया गया?
क्या पूर्व विधायकों को लेकर प्रशासन का रुख सही नहीं है क्या उनकी प्रशासन नहीं सुन रहा है इसलिए पूर्व विधायकों को प्रतिनिधि बनाया गया है सांसद द्वारा।यदि ऐसा भी है तब भी सही है। वैसे पूर्व विधायकों की प्रशासन यदि नहीं सुन रहा और वह प्रतिनिधि सांसद का बनकर ही अपनी सुनवाई करवा पाएंगे तो ऐसे में यह भी कहना गलत नहीं होगा कि फिर उनकी प्रशासन से कार्य करा पाने की क्षमता या अपनी सुनवाई या विरोध दर्ज करने की क्षमता पर भी प्रश्न चिन्ह है।
तीनों पूर्व विधायक अब सांसद प्रतिनिधि
अविभाजित कोरिया में तीन विधानसभा सीट हैं जहां कि पूर्व में भरतपुर सोनहत विधानसभा से गुलाब कमरो, मनेंद्रगढ विधानसभा से विनय जायसवाल एवं बैकुंठपुर विधानसभा से श्रीमती अंबिका सिंहदेव विधायक हुआ करते थे। इन सभी पर साा का नषा सर चढकर बोल रहा था जिसकी वजह से वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में इन तीनों को हार का मुंह देखना पड़ा था। जाहिर सी बात है सत्ता की मलाई खा चुके इन तीनों माननीयों को विधायक पद के आगे पूर्व लिखना शोभा नही दे रहा था। पिछले दिनों क्षेत्र की सांसद श्रीमती ज्योत्सना महंत का कोरिया एवं एमसीबी दौरा हुआ यहां उन्होने अपने हाथों से तीनों पूर्व विधायको को नियुक्ति पत्र सौंपा है। जानकारी के तहत गुलाब कमरो को सरगुजा एवं उार क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण एवं भरतपुर सोनहत विधानसभा, विनय जायसवाल को विधानसभा क्षेत्र मनेंद्रगढ एवं श्रीमती अंबिका सिंहदेव को विधानसभा क्षेत्र बैकुंठपुर का सांसद प्रतिनिधी नियुक्त किया गया है। उक्त तीनों प्रतिनिधी सांसद की अनुपस्थिति में विभिन्न बैठकों में शामिल होंगे।
जिन्होने गली-गली में बनाये थे प्रतिनिधि,अब खुद बने
वर्ष 2018 में विधायक बनने के बाद तीनों विधानसभा क्षेत्र में दर्जनों विधायक प्रतिनिधी बनाये गए थे। अस्पताल, थाना, जनपद पंचायत,नगर पंचायत से लेकर ऐसे ऐसे स्थानों पर प्रतिनिधी रखे गए थे जिनका कही कोई औचित्य नही था। समय के साथ – साथ विधायक से लेकर उनके प्रतिनिधी भी पूर्व हो गए लेकिन अब माननीय विधायको को पूर्व होना ठीक नही लग रहा है,सो उन्होने खुद को सांसद प्रतिनिधी ही बनना सही समझा और संभवतः उनकी हामी पर ही उन्हे इस पद पर नियुक्त किया गया है। हलांकि इन तीनों की नियुक्ति से किरकिरी भी होने लगी है।
क्या कांग्रेस में नही है कोई और कार्यकर्ता?
पूर्व विधायको को सांसद श्रीमती ज्योत्सना महंत ने अपना प्रतिनिधी नियुक्त किया है,इससे कई सवाल उठने लगे हैं। कार्यकर्ताओं से लेकर पदाधिकारियों में निराषा भी देखी जा रही है साथ ही उनकी किरकिरी और हंसी भी हो रही है। कार्यकर्ता दुखी मन से प्रश्न खड़ा कर हैं कि क्या कांग्रेस में कोइ और ईमानदार कार्यकर्ता नही हैं जो इन पूर्व विधायको को यह पद देना पड़ा है।
लोकसभा चुनाव में बढत का मिला ईनाम या कोई और चाल
सांसद प्रतिनिधियों की नियुक्ति पत्र में भले ही हस्ताक्षर सांसद ज्योत्सना महंत ने किया है लेकिन यह नियुक्ति नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर चरणदास महंत की मर्जी के बिना संभव नही है यह सभी को मालूम है। गत लोकसभा चुनाव में अविभाजित कोरिया की तीनों विधानसभा सीट पर भाजपा प्रत्याषी सरोज पांडेय को भीतरघात का सामना करना पड़ा था और यहां से कांग्रेस प्रत्याशी ज्योत्सना महंत ने अच्छी खासी बढत बनाई थी। नियुक्ति के पीछे डॉ. महंत की मंशा क्या है यह तो उन्हे ही मालूम है लेकिन लोकसभा चुनाव में बढत का ईनाम साथ ही साथ यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि महंत ने इससे जरूर ही कोई राजनैतिक चाल चली है।
मैं बारहवीं पास करके अब फिर से दसवीं पढूंगा की तर्ज पर पूर्व विधायक बने प्रतिनिधि?
कोरबा लोकसभा सांसद ज्योत्सना चरण दास महंत ने अविभाजित कोरिया जिले के लिए अपने 4 प्रतिनिधियों की नियुक्ति की है। इन नियुक्तियों में आश्चर्यजनक यह है कि सभी नियुक्तियां पूर्व विधायकों की है साथ ही एक विधायक पद के प्रत्याशी का भी नाम इस नियुक्ति में शामिल है नियुक्त सभी पूर्व विधायक और विधायक प्रत्याशी चुनाव बुरी तरह हार गए थे जिन्हें क्षेत्र के कार्यकर्ताओं ने नकार दिया था उन्हें ही प्रतिनिधि बनाया गया है। जिन पूर्व विधायकों को और विधायक पद के प्रत्याशी को सांसद ने अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया है सभी की नियुक्तियों के बाद यह प्रश्न भी उठने लगा कि यह तो एक तरह से पदोन्नति नहीं है इसे पदावनति ही कहा जाए तो सही है वहीं यह कुछ ऐसा ही है कि कोई छात्र यह कहे 12 वीं पास करके वह 10 वीं कक्षा में ही पढ़ाई करेगा। नियुक्तियों के बाद पार्टी के कार्यकर्ताओं में निराशा का माहौल है वहीं इसे इस नजरिए से भी देखा जा रहा है कि यह नेता प्रतिपक्ष चरण दास महंत की एक नई रणनीति है या प्रयोग है?
क्या घोड़े पर बैठने वाले को गधा पर बैठाया गया?
वैसे पूरा मामला घोड़े से उतरकर गधे पर बैठने वाला है। अब देखना है कि अब कार्यकर्ताओं का हक लूटकर पूर्व विधायक क्या ऐसा कर पाते हैं जिससे पार्टी को फायदा होता है। वैसे अपने कार्यकाल में पूर्व विधायकों ने कुछ भी अच्छा किया होता इतनी बड़ी हार नही होती।


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