- पिछले सरकार ने भ्रष्टाचार मामले को पाया था सही और की थी कार्यवाही…सरकार बदलते ही कार्रवाई पर डाला गया पर्दा?
- पिछली सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोप में जिसे किया था निलंबित उस संयुक्त संचालक को मिली इस सरकार में इच्छा अनुसार पोस्टिंग?
- मामला शिक्षा विभाग का…जहां पदोन्नति पोस्टिंग मामले में हुआ था करोड़ों का खेल उसे समय की सरकार ने एक्शन भी लिया पर वर्तमान सरकार में नहीं दिखा कोई रिएक्शन?
- सुनियोजित तरीके से शिक्षकों से वसूले गए थे पैसे,मामले को लगातार घटती-घटना ने प्रमुखता से उठाया था सवाल
- काउंसलिंग प्रक्रिया में गड़बड़ी के कारण कई शिक्षक रह गए थे पदोन्नति से वंचित
- जिन शिक्षकों ने मामले को प्रमुखता से उठाया,उन्हें होना पड़ा था निलंबित,पिछली सरकार ने बैठाई थी जांच समिति और भ्रष्टाचार के मामले को पाया था सही
- समिति के अनुशंसा पर खुद शिक्षा मंत्री के निर्देश पर हुई थी संयुक्त संचालक के निलंबन की कार्यवाही
- लेनदेन कर सेटिंग करने वाले शिक्षक भी हुए थे प्रभावित, पर सरकार बदलते ही भ्रष्टाचार के मामले पर तत्काल हुई लीपापोती
- सरकार बदलते ही लेनदेन वाले शिक्षकों को भी मिली इच्छा अनुसार पोस्टिंग, जैसी थी उनकी मंशा।

-भूपेन्द्र सिंह-
अम्बिकापुर 24 नवम्बर 2024 (घटती-घटना)। शिक्षा विभाग और उसमें पदस्थ शिक्षक जिन्हें समाज निर्माता भी कहा जाता है, और जो सामाजिक ताने-बाने के रीढ की हड्डी कहलाते हैं, जिन पर भावी पीढ़ी को तैयार करने की जिम्मेदारी होती है, और जिन पर भ्रष्टाचार मुक्त समाज के निर्माण की अहम जिम्मेदारी होती है। यदि वही भ्रष्टाचार का शिकार हों और उनमें से कुछ भ्रष्टाचार में संलिप्त हो जाएं,तो फिर शिक्षा विभाग के अधिकारियों और नियुक्त शिक्षकों से जिस समाज के निर्माण की कल्पना की जाती है, वह सफेद हाथी की भांति ही होगा। कुछ ऐसा ही पिछली सरकार में देखने सुनने को मिला था, जब शिक्षकों की विभागीय पदोन्नति प्रक्रिया में जमकर पैसों का खेल हुआ और पदोन्नति उपरांत इच्छित स्थान पर पदस्थापना के लिए करोड़ों का लेनदेन हुआ था, जिसकी शिकायतें भी हुई, शिकायतकर्ता कुछ शिक्षकों को निलंबन की गाज भी झेलनी पड़ी, सरकार ने जांच समिति भी बैठाई और भ्रष्टाचार को सही पाया। परिणाम स्वरुप पिछली सरकार ने भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने के लिए संभाग स्तर के संयुक्त संचालक को निलंबित किया और पदोन्नति उपरांत संशोधन पदस्थापना के माध्यम से जिन शिक्षकों ने लेनदेन कर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया था, उन पर भी कार्यवाही की गाज लटकती रही। चुनाव हुए,सरकार बदली और सरकार के बदलते ही तत्काल पिछली सरकार के भ्रष्टाचार के आरोपियों को क्लीन चिट प्रदान कर दी गई। मामले का लब्बोलुआब यह निकला की पिछली सरकार ने सरगुजा संभाग के जिस संयुक्त संचालक को निलंबित किया था और भ्रष्टाचार में संलिप्त जिन शिक्षकों ने लेनदेन कर काउंसलिंग प्रक्रिया को दरकिनार कर इच्छा अनुसार पदस्थापन ली थी, सत्ताशासन बदलते ही उन्हें मलाई परोस दी गई।
भ्रष्टाचार के इस पूरे मामले को दैनिक घटती-घटना ने लगातार प्रमुखता से उजागर किया था। जिसे तत्कालीन सरकार ने इस पर गंभीरता से संज्ञान लिया था। मामला इतना हाई प्रोफाइल बन गया था कि तत्कालीन शिक्षा मंत्री से मंत्रालय तक वापस लेना पड़ा था। और पूरे प्रदेश में इस प्रकार के भ्रष्टाचार को लेकर अनेक कार्यवाही की गई थी। मामला एक व्हाट्सएप चैट से उजागर हुआ था, जिसमें संभाग स्तर पर शिक्षकों की विभागीय पदोन्नति तथा काउंसलिंग के पश्चात पदस्थापना आदेश के पूर्व ही लेन-देन कर सेटिंग करने वाले एक अति उत्साहित शिक्षक ने आदेश पूर्व ही व्हाट्सएप पर पदस्थापन का स्थान वायरल कर दिया गया था। इसके पश्चात दैनिक घटती घटना ने अपने स्तर पर मामले की पूरी छानबीन की थी और भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए अनेक तथ्य भी प्रस्तुत किए थे। भ्रष्टाचार कर करोड़ों रुपए लेनदेन कर जूनियर शिक्षकों को इच्छित पदस्थापना स्थापना देने के लिए जो खेल रचा गया था, मामले के उजागर होने के बाद पूरे खेल को सुनियोजित तरीके से बदल दिया गया। ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। और इसके लिए इस प्रकार की पटकथा तैयार की गई की काउंसलिंग प्रक्रिया का तो पालन किया गया,परंतु लेनदेन वाले शिक्षकों को एक दूसरे का स्थान बदलकर पोस्टिंग आदेश जारी किया गया। जिसे संशोधन के माध्यम से सुधार जा सके। कुल मिलाकर पुरी की पूरी काउंसलिंग प्रक्रिया को ही धता बताया गया और बाद में हुआ भी ऐसा भी भ्रष्टाचार में संलिप्त लेनदेन वाले शिक्षकों को आपसी समन्वय के आधार पर उनकी पदस्थापना परिवर्तित की गई।
सरकार बदली तो सब बदला
परंतु इसी बीच चुनाव हुए, सरकार बदली और सरकार के बदलते ही नई सरकार ने भ्रष्टाचार और करोड़ों के लेनदेन के इस मामले को सिरे से खारिज करते हुए शून्य कर दिया। साथ ही सांठ-गांठ वाले शिक्षकों को इच्छा अनुसार पद स्थापना आदेश भी दे दिया गया। और जिस आरोप में संभागीय संयुक्त संचालक हेमंत उपाध्याय को निलंबित किया गया था, उसे वर्तमान सरकार ने हाल ही में पुरस्कृत करते हुए पुनः सरगुजा का संयुक्त संचालक बनाकर भेज दिया। पूरे मामले में सबसे ज्यादा नुकसान उन शिक्षकों का हुआ जिन्हें विभागीय पदोन्नति उपरांत काउंसलिंग के माध्यम से स्थान चयन करने का उचित मौका नहीं मिला और मजबूरीवश उन्हें अपनी पदोन्नति त्यागना पड़ा। क्योंकि भ्रष्टाचार कर सर्व सुविधा सुलभ स्थान को या तो काउंसलिंग प्रक्रिया से विलुप्त कर दिया गया, या पैसों का लेनदेन कर उन्हें आरक्षित कर दिया गया था।
दैनिक घटती-घटना ने मामले को लेकर लगातार प्रमुखता से खबर प्रकाशित की जिस वजह से सरकार को जांच समिति बैठानी पड़ी
दैनिक घटती-घटना ने मामले को लेकर लगातार प्रकाशित करने और प्रमुखता से उठाने के कारण सरकार को जांच समिति बैठाने पड़ी। जिसमें समिति ने यह पाया कि तत्कालीन संभागीय संयुक्त संचालक ने अपने अधिकार से परे जाकर पदस्थापना स्थल में संशोधन किया। जबकि यह अधिकार डीपीआई रायपुर को है। मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने संभागीय संयुक्त संचालक हेमंत उपाध्याय को निलंबित कर दिया और लेनदेन द्वारा सांठ-गांठ कर इच्छा अनुसार जगह पाने को प्रयासरत शिक्षकों पर भी कार्यवाही की अनुशंसा कर दी। फल स्वरूप ऐसे शिक्षक चार माह से अवैतनिक और बिना किसी पदस्थापना स्थल के रहे। जिन पर किसी भी क्षण कार्यवाही संभावित थी। क्योंकि विभाग और सरकार का स्पष्ट आदेश था की जिन्हें जहां पर स्थापना मिली है, उन्हें वहीं पर ज्वाइन करना होगा, अन्यथा अनुशासनात्मक कार्यवाही होगी। और उनके आदेश में किसी प्रकार का संशोधन नहीं होगा।
भ्रष्टाचार से प्रभावित कुछ शिक्षकों को निलंबित भी कर दिया गया था…
मामले को लेकर जब प्रभावित शिक्षक तत्कालीन संभागीय संयुक्त संचालक हेमंत उपाध्याय के कार्यालय शिकायत करने गए तो संयुक्त संचालक द्वारा उन शिक्षकों के साथ अभद्रता पूर्वक व्यवहार किया गया। जिसका वीडियो भी वायरल हुआ था और वायरल वीडियो में अपनी अभद्रता के कारण होने वाली छीछालेदर से निपटने के लिए तत्कालीन संयुक्त संचालक हेमंत उपाध्याय ने भ्रष्टाचार से प्रभावित कुछ शिक्षकों को निलंबित भी कर दिया था। परंतु इस मामले ने ऐसा तूल पकड़ा की तत्कालीन शिक्षा मंत्री डॉ प्रेमसाय सिंह को अपना पद तक गंवाना पड़ा था। और सरकार ने अपनी छवि सुधारने के लिए ताबड़तोड़ कार्यवाही की थी। पर समझ में यह नहीं आता की पिछली सरकार ने जिस मामले को भ्रष्टाचार माना था और कार्यवाही सुनिश्चित की थी। सरकार बदलते ही वर्तमान भाजपा सरकार ने भ्रष्टाचार में संलिप्त अधिकारियों को इच्छा अनुसार पोस्टिंग देकर पुरस्कृत किया, जबकि भारतीय जनता पार्टी भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करती है। वहीं विपक्ष भी सुषुप्त अवस्था में पड़ा हुआ है जिसे जन सरोकारों से कोई लेना-देना नहीं है।