- अध्यक्ष पद के लिए प्रबल एवम मजबूत दावेदार साबित हो सकती हैं गायत्री सिंह, अन्य के मुकाबले जनाधार भी गायत्री सिंह का है स्थिर
- भाजपा ने पहले भी दो बार गायत्री सिंह को दिया है सरपंच पद के लिए समर्थन
- अध्यक्ष पद के लिए भी पार्टी से समर्थन मिल जाए तो अचरज की बात नहीं
- अन्य कोई प्रबल दावेदार पार्ट से है भी नहीं पटना में जो अध्यक्ष पद के लिए मजबूत और सर्वमान्य साबित हो
- जिन-जिन नामों पर चर्चा जारी है सभी नामों पर विरोध भी अंदरखाने जारी है यह भी बताते हैं:सूत्र
-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर/पटना,21 नवम्बर 2024 (घटती-घटना)। अंततः ग्राम पंचायत पटना जो नगर पंचायत पटना बन चुका था वह पूर्ण अस्तित्व में आ ही गया और अब अध्यक्ष उपाध्यक्ष सहित सदस्य पार्षदों का मनोनयन भी शासन स्तर से हो गया। विरोध और समर्थन के बीच राज्य शासन ने राजपत्र का प्रकाशन किया और वर्तमान सरपंच को ही और उप सरपंच सहित कुछ पंचों को क्रमशः अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, पार्षद मनोनीत कर दिया और मामले में नगर पंचायत ही अब पटना रहने वाला है यह तय कर दिया। वैसे अध्यक्ष, उपाध्यक्ष सहित पार्षदों के मनोनयन को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा की काफी कुछ सोच समझकर मनोनयन किया गया है और कहीं न कहीं वर्तमान सरपंच जिन्हें अध्यक्ष मनोनीत किया गया है उन्हें भाजपा ने अपने पाले में भी लेने का प्रयास किया है, जिससे आगे होने वाले नगर पंचायत चुनाव के समय प्रत्याशी चयन को लेकर एक विकल्प वह भी उपलब्ध रहें यदि उनकी मंशा जाहिर हो सके सहमति मिल सके। वर्तमान सरपंच दो बार की सरपंच हैं और उन्हें दोनों ही बार खुलकर भाजपा का ही समर्थन केवल मिला था और अन्य दलों का उन्हें समर्थन नहीं मिला था इसलिए भाजपा ने इस बात का भी शायद ध्यान रखा है कि वह भाजपा से जुड़कर ही आगे राजनीति करेंगी। वैसे वर्तमान सरपंच वहीं अब मनोनीत नगर पंचायत अध्यक्ष गायत्री सिंह का जनाधार भी काफी है पटना में और यह कहना गलत नहीं होगा कि अन्य के मुकाबले वह मजबूत हैं और कहीं न कहीं स्वीकार्य भी हैं।
जारी कार्यकाल में कुछ आसपास रहने वालों के कारण जरूर लोग नाराज नजर आए…
गायत्री सिंह का जारी कार्यकाल उनके कुछ आसपास रहने वालों के कारण जरूर ऐसा रहा जिसमें लोग नाराज नजर आए लेकिन सभी उन्हीं से नाराज थे यह कहना गलत होगा लोग उनसे अधिक उनसे नाराज थे, जो उनके साथ थे और उनसे अधिक हस्तक्षेप जाहिर करते थे पंचायत में। वैसे देखा जाए तो यह कोई नई बात नहीं है जब किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि का कार्यकाल जारी कार्यकाल ऐसा हो जिसमें कुछ लोग नाराज न हों, ऐसा हमेशा होता है और हर जनप्रतिनिधि के साथ होता है जिसमें वह अपने कार्यकाल के दौरान सभी को प्रसन्न नहीं रख पाता है लेकिन जब पुनः निर्वाचन का मामला सामने आता है तब अन्य की तुलना में वही अधिक समर्थन जुटा पाता है क्योंकि उसका कार्यकाल लोग देखे और सुने होते हैं।
पटना में भाजपा के लिए प्रत्याशी चयन का मामला काफी उलझा हुआ…
गायत्री सिंह का पटना में अध्यक्ष पद के लिए मनोनयन होना कहीं न कहीं इस तरह की ही सभी संभावनाओं के साथ की एक प्रायोजित घटना है जिसे पार्टी ने काफी सोच समझकर जाहिर किया है और घोषित किया है। गायत्री सिंह पर पार्टी भाजपा दांव खेल सकती है यह कहना गलत नहीं होगा। वैसे पटना में भाजपा के लिए प्रत्याशी चयन का मामला काफी उलझा हुआ है और केवल भाजपा के लिए ही उलझा हुआ है यह भी कहना गलत है कांग्रेस के लिए भी यही मामला है कि वह अध्यक्ष के लिए किसे आगे करे वह इस चिंता में हैं क्योंकि दोनों ही दलों में सर्वमान्य और जनप्रतिनिधि की योग्यता रखने वाला कोई नजर नहीं आ रहा है। ऐसा कोई अभी नहीं है जो सेवाभाव के साथ अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी कर रहा हो। जितने भी दावेदार अब तक सामने हैं दोनों दलों से जो दावा कर रहे हैं टिकट लाने का वह सभी पटना के लोगों के हिसाब से जिताऊ भी नहीं है न ही वह जनसेवा का उद्देश्य ही रखते हैं भावना ही रखते हैं ऐसा लोगों का ही कहना है।
व्यापारी सहित ठेकेदार ही ज्यादा हैं जो कांग्रेस भाजपा से दावेदार हैं…
व्यापारी सहित ठेकेदार ही ज्यादा हैं जो कांग्रेस भाजपा से दावेदार हैं वैसे पटना की जनता अपना प्रतिनिधि बेहतर ही चुनेगी यह भी तय है क्योंकि यहां की जनता हमेशा ही इस मामले में सजग मानी जाती है। पटना में आने वाला चुनाव जो नगरीय निकाय अंतर्गत होने वाला चुनाव होगा वह काफी रोचक होगा यह दिखाई देगा। वैसे भाजपा कांग्रेस के एक और चीज पटना के नगरीय निकाय चुनाव और प्रत्याशी चयन के दौरान दिखाई देगी ऐसा माना जा रहा है वह यह की एक दूसरे की टांग खिंचाई नेता करते नजर आयेंगे और पीठ पीछे एक दूसरे के खिलाफ वह काम करेंगे जो जो दावेदार हैं यह होना तय है। अब इस स्थिति में गायत्री सिंह ही बाजी मारने लायक प्रत्याशी नजर आती हैं यह कहना ग़लत नहीं होगा। वैसे गायत्री सिंह को कांग्रेस में भी प्रवेश दिलाने उनके समर्थकों ने प्रयास किया था और तत्कालीन पूर्व विधायक के पास उनकी परेड कराई गई थी लेकिन तब उन्होंने कांग्रेस प्रवेश नहीं किया था वहीं ऐसा भी कहना सही होगा कि यदि आज साा में कांग्रेस भी होती गायत्री सिंह को लेकर वह भी प्रत्याशी के बतौर उन्हें प्राथमिकता देती यह देखने को मिलता।