कोरिया,@बाघ के मौत का रहस्य से पर्दा उठा भी नहीं औरतेंदुआ की मौत की जानकारी आई

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-रवि सिंह-
कोरिया,17 नवम्बर 2024 (घटती-घटना)। कोरिया जिले के वन मंडल में बाघ की हुई मौत का खुलासा नहीं हो पा रहा है,कहा जाए तो बाघ की मौत कैसे हुई यह सिर्फ एक रहस्य ही बनकर रह गया है? मामला बेजुबान जानवरों का है क्या इसी वजह से मामला ठंडे बस्ते में है? यदि यही मामला मनुष्य की मौत से संबंधित होता तो फिर बवाल होता और कई तरीके से ला एन ऑर्डर बिगड़ जाता और कार्यवाही करने वालों को कार्यवाही करनी पड़ती, पर यहां स्थिति कुछ ऐसी है कि बेजुबान जानवरों की मौत पर बोलेगा कौन? कौन उठायेगा सवाल और कौन चाहेगा कार्यवाही? इसी वजह से राष्ट्र्रीय पशु की मौत की वजह सिर्फ रहस्य ही बनी रहेगी। कोरिया वन मंडल में जिस तरीके से जंगली जानवरों की मौत की खबरें लगातार आ रही है, उससे तो अब यही लगने लगा है कि कोरिया वन मंडल जंगली जानवरों के लिए सुरक्षित नहीं है,कभी बाघ मर रहे हैं तो कभी तेंदुआ तो कभी जंगली सूअर पर जिम्मेदार निर्माण में व्यस्त हैं और अपने और अपने परिजनों के लिए संपçा अर्जित करने में ही रत हैं, कोरिया वन मंडल के अधिकारी कर्मचारी सिर्फ निर्माण करने के लिए ही बेहतर है यह कहना ही अब सही लगता है, जंगली जानवरों की सुरक्षा की उम्मीद इनसे नहीं की जा सकती वहीं वनों की सुरक्षा भी वह करने में नाकाम हैं और जंगल कटते जा रहे हैं, यह बात इसलिए हो रही है क्योंकि हाल ही में बाघ की मौत के मामले में जो कुछ देखा या सुना जा रहा है वह कहीं ना कहीं बाघ के मौत की असल वजह को सबके सामने लाने से बचाने का प्रयास है, बाघ की मौत पहले जहर से बताई गई, फिर कुछ दिन बाद वन्यजीव संरक्षण, प्रबंधन और विकास केंद्र रोग निगरानी आईसीएआर-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान इज्जतनगर बरेली से रिपोर्ट आई उस में तो यह पता चला कि बाघ की मौत जहर से नहीं हुई है, इसके बाद अब यह कहा जा रहा है कि बाघ की पसलियों के तीन हड्डी टूटी हुई थी, अब यहां पर फिर सवाल उत्पन्न होता है कि यदि जब हड्डियां टूटी हुई थी तो प्रथम पीएम रिपोर्ट में ही इसकी पुष्टि क्यों नहीं हुई? इसके बाद भी यह बात अभी भी सामने नहीं आ पा रही है कि बाघ की मौत आखिर किस वजह से हुई? बाघ की मौत अनसुलझी पहेली बन गई है अब बाघ की मौत लोगों के लिए बूझो तो जाने जैसा हो गया है।
आपको बता दें कि भारत का राष्ट्र्रीय पशु बाघ है, बाघ को साल 1972 में आधिकारिक रूप से भारत का राष्ट्र्रीय पशु घोषित किया गया था, बाघ को भारत का राष्ट्र्रीय पशु इसलिए चुना गया क्योंकि वह लावण्यता, ताकत,फुर्तीलापन और अपार शक्ति का प्रतीक है, बाघों के संरक्षण के लिए 1 अप्रैल, 1973 को प्रोजेक्ट टाइगर लॉन्च किया गया था, यह परियोजना उाराखंड के जिम कॉर्बेट नेशनल से शुरू की गई थी, अब वह भारत का राष्ट्र्रीय पशु व जानवर है पर अपने राष्ट्र्रीय पशु व जानवर को भी सुरक्षित रखना वन विभाग की जिम्मेदारी है पर यह जिम्मेदारी भी वन विभाग नहीं निभा पा रहा, कोरिया वन मंडल में जिस तरीके से जंगली जानवरों की मौत की खबरें आती है उससे अब यह लगने लगा है कि जंगली जानवरों के लिए यह वन मंडल सुरक्षित नहीं है, इसकी वजह सिर्फ यहां के अधिकारी हैं जो सिर्फ निर्माण में व्यस्त है और अपार संपçा अर्जित कर वह कुबेर बनने में लगे हैं, इसके अलावा उनकी वन व वन प्राणियों की सुरक्षा जिम्मेदारी नहीं है? ऐसा अब लगने लगा है। हाल ही में बाघ की मौत जहर की वजह से बताई जा रही थी फिर अचानक कुछ दिन बाद यह बात आती है कि जहर से बाघ की मौत नहीं हुई, बाघ की पसली की तीन हड्डी टूटे हुए थे यह तो पता चल गया पर अभी भी यह नहीं पता चला कि बाघ की मौत हुई किस वजह से? हड्डी टूटने की वजह से मौत हुई या फिर और कोई कारण है अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा।
जब तक वन विभाग निर्माण कार्यों से बाहर नहीं निकलेगा,जब तक अथाह संपत्ति अर्जित करने वाली मानसिकता नष्ट नहीं होगी,वन्य जीव और वन सुरक्षित नहीं
वन विभाग को लेकर यह आम बात हो गई है कि वहां केवल निर्माण कार्य के लिए ही अधिकारी कर्मचारी नियुक्त हैं और उन्हें वनों और वन्य जीवों की सुरक्षा से कोई सरोकार नहीं और इसको लेकर वह बेफिक्र हैं। यदि वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के जीवन स्तर और उनके आर्थिक स्थिति पर नजर डाली जाए तो आज वह इस स्थिति में हैं कि वह धन कुबेर हैं, आज वह अलग अलग पद अनुसार करोड़पति से अरबपति हैं और उनका यह जीवन स्तर वन्य जीवों की सुरक्षा में सेंध लगातार वनों की सुरक्षा में सेंध लगाकर बन सकी है। अब यदि वन्य जीवों और वनों की सुरक्षा करनी है तो निर्माण कार्य से इस विभाग को मुक्त करना होगा तभी जाकर यह विभाग अपना मूल कार्य करेगा वरना यहां केवल निर्माण कार्य कर धन कुबेर बनने की ही लालसा लेकर लोग आते हैं और अपना उद्देश्य पूर्ण कर लौट जाते हैं।
क्या कहती है वन्यजीव संरक्षण, प्रबंधन और विकास केंद्र रोग निगरानी आईसीएआर की रिपोर्ट
वन्यजीव संरक्षण, प्रबंधन और विकास केंद्र रोग निगरानी आईसीएआर-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान इज्जतनगर बरेली की रिपोर्ट बताती है की बाघ के फेफड़े, लीवर, किडनी, हृदय, तिल्ली, पेट और आंतों के नमूनों का भारी धातुओं और आम तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशकों की मौजूदगी के लिए विश्लेषण किया गया जिसमे विषयले पदार्थों की मौजूदगी के लिए नमूने नकारात्मक पाए गए।

बाघ की मौत का रहस्य से पर्दा उठा भी नहीं और तेंदुआ की मौत की जानकारी आई…
बाघ की मौत का मामला अब तक वन विभाग हल नही कर पाया है और ताजा मामला तेंदुए की मौत का सामने आ गया है। वही अफसर मीडिया से मुँह छिपाते फिर रहे है इस मामले में भी विज्ञप्ति जारी कर सवालों से बचने की कोशिश कर रहे है, जारी की विज्ञप्ति में गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान बैकुण्ठपुर के संचालक ने तेंदुए की मौत को लेकर विज्ञप्ति जारी कर बताया है कि दिनांक 15.11.2024 को क्षेत्रीय कर्मचारियों की गश्ती के दौरान बीट टामापहाड़,सर्किल देवसील, पार्क परिक्षेत्र कमर्जी अंतर्गत एक तेंदुआ की मृत्यु की सूचना प्राप्त हुई। घटना की पुष्टि उपरान्त क्षेत्रीय कर्मचारियों द्वारा वरिष्ठ अधिकारियों को देर रात घटना की सूचना दी गई। उक्त घटना स्थल दुर्गम पहाड़ी, संचार साधन (नेटवर्क) विहीन क्षेत्र में स्थित है। दिनांक 16.11.2024 को वन संरक्षक (वन्यप्राणी) सरगुजा वन वृा,अम्बिकापुर, संचालक गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान, पशु चिकित्सकों की टीम, गोमर्डा अभ्यारण्य के डॉग स्मयड टीम एवं क्षेत्रीय कर्मचारी घटना स्थल पर पहुंचे। क्षेत्रीय कर्मचारियों एवं गोमर्डा अभ्यारण्य के डॉग स्मयड टीम द्वारा घटना स्थल के आस-पास के क्षेत्र में पतासाजी किया गया। स्थल निरीक्षण उपरान्त विभागीय अधिकारी / कर्मचारी, ग्रामीणों की उपस्थिति में तीन सदस्यीय पशु चिकित्सक दल के द्वारा शव विच्छेदन किया गया। पशु चिकित्सकीय टीम के परीक्षण के दौरान मृत तेंदुए के स्किन, नाखून, दांत एवं सभी अंग सुरक्षित पाये गये। मृत तेंदुए के आवश्यक सेम्पल को प्रयोगशाला परीक्षण हेतु प्रीजर्व किया गया। शव विच्छेदन उपरान्त नियमानुसार शव का दाह संस्कार किया गया। घटना की गंभीरता को देखते हुए डॉग स्मयड टीम,स्ट्राईक फोर्स, क्षेत्रीय कर्मचारियों के संयुक्त टीम द्वारा त्वरित कार्यवाही की जा रही है। विस्तृत पोस्टमार्टम रिपोर्ट उपरान्त ही मृत्यु के संभावित कारणों के विषय में जानकारी प्राप्त होगी। तेंदुए के मृत्यु की सभी संभावित कारणों की विवेचना की जा रही है।
शव में पड़ गए थे कीड़े
तेंदुए की मौत को लेकर पार्क के अफसर पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार कर रहे है,जबकि ग्रामीणों की माने तो शव 7 से 10 दिन पुराना हो चुका था, उंसमे कीड़े पड़ चुके थे। 15 नवम्बर की शाम को विभाग को तेंदुए की मौत की जानकारी मिल गई, दूसरे दिन विभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचे, और दिनभर किसी को घटनास्थल जाने नही दिया गया। पोस्टमार्टम सहित तमाम प्रक्रिया करके मामले की जानकारी मीडिया को नही दी गई,दूसरे दिन एडिशनल पीसीसीएफ प्रेम कुमार ने एक प्रतिष्ठित अखबार को तेंदुए की मौत की पुष्टि कर दी,जिसके बाद स्थानीय अधिकारियों ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर मामले की जानकारी दी।
नाराज है मैदानी अमला, माइलेज अलाउंस भी बन्द
गुरु घासीदास राष्ट्र्रीय उद्यान हो या कोरिया वन मंडल यहां अशिकारियो की मनमानी से विभाग का मैदानी अमला खासा नाराज है , अफसर कभी कभार ही दौरे पर आते है। तानाशाही रवैये के कारण उनमें नाराजगी भरी हुई है। दूसरी ओर कैम्पा के तहत मैदानी अमले को माइलेज अलाउंस 1000 रूपए मिला करता था परंतु अब वो भी बन्द हो गया है, अफसर रेंजर लक्सरी वाहनों में घूमते है जबकि अपना जेब से पेट्रोल भरवाकर मैदानी अमला जंगल मे रखवाली कर रहा है, यही कारण है काम मे समर्पण की भावना अब खत्म हो चुकी है।
क्षेत्र में एक बाघ और विचरण कर रहा
जिस इलाके में बाध के साथ तेंदुजा की बॉडी मिली है, उसी क्षेत्र में एक और बाध विचरण कर रहा है। ऐसे में बाघ की सुरक्षा को लेकर प्रश्न चिन्ह खड़े हो रहे हैं। गौरतलय है कि गुरु घासीदास नेसनल पार्क को टाइगर रिजर्व बनाया जाना है। ऐसे में क्षेत्र में लगातार शेड्? यूल। प्रजाति के वन्यजीवों की लगातार बॉडी मिलने की घटना को एनटीसीए ले सकती है।
राष्ट्रीय पशु की मौत के मामले में सीसीएफ,डीएफओ व एसडीओ के विरुद्ध कार्यवाही क्यों नहीं हुई?
बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है और बाघ की मौत वाली घटना यह बहुत बड़ी बात है और इतने बड़े मामले में संबंधित विभाग छोटे कर्मचारियों की लापरवाही बताकर कार्यवाही तो कर दिया पर क्या बड़े अधिकारियों की लापरवाही नहीं है? छोटे कर्मचारी पर ही ध्यान रखने के लिए बड़े अधिकारियों को रखा गया है पर क्या हुआ क्या वह अपने कर्मचारियों पर ध्यान रख पा रहे थे? सूत्रों का कहना है कि रेंजर अपने क्षेत्र में नहीं रहते थे पर सवाल यह है कि जब रेंजर अपने क्षेत्र में नहीं रहते थे तो उस समय डीएफओ एसडीओ का ध्यान उनके ऊपर नहीं गया? यदि इस पूरे मामले पर कार्यवाही होनी थी तो ऊपर के बड़े अधिकारियों से लेकर नीचे के कर्मचारियों पर होनी थी, पर नीचे के कर्मचारियों पर कार्यवाही करके बड़े अधिकारियों को क्या बचा लिया गया?
मनुष्य के लिए पुलिस व जानवरों के लिए वन विभाग के पास सुरक्षा की जिम्मेदारी
जिस तरह समाज में मनुष्य के लिए पुलिस विभाग का निर्माण किया गया है ताकि उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी वह निभाएं और मनुष्यों पर होने वाले अत्याचारों पर कार्यवाही कर न्याय दिलाए, कुछ इसी तरह वन प्राणियों के लिए भी वन विभाग बनाया गया है ताकि वन प्राणियों की सुरक्षा इनकी जिम्मेदारी हो,कहा जाए तो बेजुबान वन प्राणियों के संरक्षण व सुरक्षा के लिए वन विभाग बनाया गया है जहां पर उनकी जिम्मेदारी है वन प्राणियों के साथ वनों को बचाना और वन विभाग में वन प्राणियों व जंगलों को लेकर कठोर कानून बनाए गए हैं जो सजा भी देते हैं, वन प्राणियों को नुकसान पहुंचाने वालों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई का प्रावधान है जंगलों को नुकसान पहुंचाने वाले के विरुद्ध भी कठोर कार्रवाई का प्रावधान है पर इसके बावजूद विभाग पूरी तरीके से फेल है अपने में कर्तव्य से भटक कर निर्माण में व्यस्त है संपçा अथाह अर्जित करने में लगा है,यही वजह है कि जंगल का कानून वन प्रणियों के लिए बना सुरक्षा का कानून सभी ध्वस्त हो रहे हैं इसके जिम्मेदार सिर्फ जिम्मेदार वन विभाग के उच्च अधिकारी ही माने जाएंगे।


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