@ भारत में सर्वाधिक गरीब लोग…
संयुक्त राष्ट्र संघ की फूड वेस्ट इंडेक्स सर्वे के अनुसार 2024 में हर एक नौ में से एक व्यक्ति पर्याप्त भोजन तथा आवश्यक पोषक तत्वों से वंचित और भूका रह जाता हैद्य संयुक्त राष्ट्र संघ के स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार पूरी दुनिया में एड्स, मलेरिया ,टीवी और करोना 2021 में जितने व्यक्ति की मृत्यु हुई है उससे कहीं ज्यादा लोग भुखमरी से ग्रस्त होकर भगवान को प्यारे हो गए है । संयुक्त राष्ट्र संघ के आंकड़ों के अनुसार ही पूरी दुनिया में गरीबों की संख्या लगभग 130 करोड़ है और दूसरी तरफ दुनिया में सर्वाधिक गरीब व्यक्ति भारत में निवासरत हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम के अंतर्गत फूड वेस्ट इंडेक्स 2021 की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में 93 करोड़ लाख तक खाना कूड़े करकट के रूप में बर्बाद हुआ है। जिनमें घरों से निकला हुआ भोज्य पदार्थ का कूड़ा करकट लगभग 55 प्रतिशत होटल रेस्टोरेंट एवं अन्य बाजार के भोजन बेचने वालों 24 प्रतिशत तथा अन्य क्षेत्र में लगभग 22 से 24 प्रतिशत भोजन बर्बाद हुआ है। पूरे विश्व में भोजन के बर्बाद होने से भुखमरी के आंकड़े और भी बढ़ गए हैं। बड़ी हैरानी और हैरतअंगेज बात यह है कि पूरे विश्व में प्रति व्यक्ति 1 साल में लगभग 122 से 124 किलोग्राम भोजन बर्बाद कर देता हैद्य भारत में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 50 किलो ,अफगानिस्तान 82 किलो, नेपाल 79 किलो ,श्रीलंका 76 किलो, पाकिस्तान 74 किलो और भूटान जैसा छोटा देश 79 किलो भोजन बर्बाद करता है। भोजन बर्बाद करने की एवं भोजन को कूड़ा करकट बनाकर फेंकने की कुसंस्कृति ही लगातार कई देशों को गरीब से गरीबतर बनाते जा रही है। पूरे विश्व स्तर पर विकसित विकासशील एवं गरीब देश भोजन की निर्मम बर्बादी करते आ रहे हैं। एक तरफ संयुक्त राष्ट्र संघ भुखमरी उन्मूलन के लिए अभियान चलाकर रखा है जिसका नाम दिया गया है जीरो हंगर यानी कि भुखमरी शून्य स्तर पर लाने का प्रयास जारी है पर इस अभियान में विकासशील ,गरीब तथा विकसित देश अपने देशों में खाद्य पदार्थ के अपशिष्ट को फेंक कर अवरोध पैदा करने में कोई कमी बेसी नहीं छोड़ रहे हैं। वर्तमान परिदृश्य में कुछ विकासशील देशों में बढ़ती जनसंख्या और लगातार गिरते अनाज के उत्पादन के साथ-साथ अन्न की निर्मम बर्बादी की वजह से दुनिया भर में भूख और भुखमरी से पैदा होने वाली समस्याओं तथा भुखमरी से मरने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यह भारत देश का दुर्भाग्य है की कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार कि भारत में करीब 50 हजार करोड़ की कीमत का हर साल अपशिष्ट के रूप में अन्न बर्बाद होता है, शायद आपको अंदाजा ना हो कि इतना अनाज बिहार जैसे बड़े राज्य की जनसंख्या को 1 वर्ष तक अन्य की आपूर्ति कर सकता है। भोजन की बर्बादी एक सामाजिक अपसंस्कृति एवं कुसंस्कृति की तरह व्याप्त होती जा रही है, विवाह समारोह अन्य उत्सव बफे सिस्टम एवं अन्य सामाजिक समारोह में अपनी थाली में ज्यादा से ज्यादा भोजन लेकर उसे बर्बाद कर देने की प्रवृत्ति अब आम हो गई है और थाली में पड़ा हुआ अनाज या तो सड़ जाता है अथवा बाहर फेंक दिया जाता है। भोजन की इस तरह बर्बादी एक तरह से कुसंस्कृति को बढ़ावा देकर एक सामाजिक बुराई के रूप में सामने आ रही है। अनाज को थाली या कूड़ेदान में फेंक देने से उससे केवल अनाज की बर्बादी नहीं होती बल्कि ऊर्जा, जल ,पोषक तत्वों की बर्बादी होती है। अलावा इसको पैदा करने वाले किसानों को भी एक तरह निराशा का सामना करना पड़ता है अनाज उत्पादन के लिए जितनी मेहनत मशक्कत किसान करता है उसके अलावा खेती की जमीन बढ़ाने के लिए वनों का विनाश भी बड़ी तेजी से हो रहा है एवं उस जमीन की उर्वरा शक्ति का भी निरंतर क्षरण हो रहा है ।लगातार रसायनिक खादों रासायनिक तत्वों के उपयोग के कारण मिट्टी की गुणवत्ता तो खराब हो ही रही है। इसके अलावा पर्यावरण एवं वातावरण भी खराब होता जा रहा है एवं खाद्य पदार्थ के अपशिष्ट छोड़ने से जानवरों की खाने से जानवरों को भी जीवन का खतरा बनते जा रहा है। इससे अन्य संक्रामक बीमारियां भी फैलने का खतरा बढ़ने लगा है। अनाज को अपशिष्ट के रूप में बर्बाद करने से न सिर्फ अनाज बर्बाद होता है बल्कि किसान की मेहनत जमीन का क्षरण उसमें लगने वाली सिंचाई के लिए पानी की बर्बादी एवं समय का दुरुपयोग भी माना जाता है। हमारे द्वारा जो भोजन का अपशिष्ट पदार्थ कूड़ेदान में छोड़ दिया जाता है उसकी वजह से वैश्विक अनुसंधान से यह बताया गया है की ग्रीन हाउस गैस ने 10 से 15त्न तक का इजाफा होता है खराब पदार्थों से गैस उत्सर्जन के कारण वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग का भी खतरा दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहा है। पदार्थ को छोड़ने से वातावरण दूषित होता है एवं संक्रामक बीमारियां न सिर्फ जानवरों में बल्कि इंसानों में भी तेजी से फैलने लगती है एवं इंसान की मौत तक होने लगी है। संयुक्त राष्ट्र संघ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार यदि भोजन के अपशिष्ट पदार्थ इसी तरह थोड़े जाएंगे तो कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन से मानव जीवन के लिए बहुत बड़ा खतरा बढ़ सकता है एवं मनुष्य घुट घुट कर जीने के लिए मजबूर हो सकता है। भारत विशेष के संदर्भ में यह केवल देश के नागरिकों को ही सलाह दी जा सकती है कि वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा गरीबी वाले देश में अनाज एवं भोजन की बर्बादी से बचें जिससे अनाज का सदुपयोग भूखे तथा जरूरतमंदों को मुहैया कराया जा सके एवं अपशिष्ट पदार्थों छोड़ने से ग्लोबल वार्मिंग तथा हानिकारक संक्रमण से बचा जा सकेगा।
संजीव ठाकुर
रायपुर छत्तीसगढ़,
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