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कविता@ ठंडी की धूप

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मास है शरद ऋतु, सिहराती ठंडी है
रोम-रोम सिहरन,तन को कँपाती है।
धूप है सुनहरी ये,मन को लुभाती है
ठंड की है धूप,तन-मन को भाती है।
धूप है सलौनी और बड़ी मस्तानी है
बाग में बहार आई लगती सुहानी है।
फूल हैं खिलते अब कली मुस्काई है
ठंड की धूप में रौनकता भर आई है।
शीतल सुगन्ध ठंडी हवा चली आई है
तरु-तृण धरा सभी ओस से नहाई है।
मोतियों की लçड़याँ तृण ने सजायी है
ठंड की धूप ने सजीली इसे बनायी है।
धूप है सुहानी बड़ी नित मन भाती है
छाया में है सिहरन, धूप ये सुहाती है।
धूप है सुहानी यह,बाहर ये बुलाती है
ठंड की धूप हमें, नित लुभा जाती है।
अशोक पटेल आशु
तुस्मा,शिवरीनारायण(छ ग)


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