@कविता @पुलक-ठुमक नव पग-पग चले नाथ

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मुदित मन माता यशोमति को देखो,
कान्हा संग मन से क्रीड़ा कर रही हैं।
माथे मोर मुकुट सोहे पॉंव पैंजनिया,
मोहिनी सुघर छवि मन लुभा रही हैं।
पुलक-ठुमक नव पग-पग चलें नाथ,
बॉकी छवि सभी के मन भा रही हैं,
बन्द कारागार भी खामोश देखता,
निरपराध वसुदेव-देवकी तड़प रही हैं।
एक-एक पल का आनन्द-भोग भोगते,
ग्वाल-बाल, बछड़े-गाय मोह रही हैं,
संग जाते घर-घर माखन चुराते कृष्ण,
ऑंख दृश्य रुचिकर स्वयं संजो रही हैं।
सारी धेनुओं का पय पीते-पिलाते हुए,
श्याम संग भोरी राधा थिरक रही हैं,
यमुना सुखद कूल झूम-झूम बह रही,
नाचे मोर, पपीहा, कोयल गा रही हैं।
कण-कण झूमें उर मगन मुदित भाव,
क्षण-क्षण रुचिकर नृत्य कर रही हैं,
ऐसा युग द्वापर बखान क्या करूॅ नाथ!
पल-पल अर्पण हरीश को कर रही हैं।
प्रतिभा पाण्डेय
चेन्नई तमिलनाडु


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