oppo_3

कविता@ शिक्षा बिना दुनिया

Share


वो भद्र मानव चला जा रहा था,
चलता ही जा रहा था
अपनी मानसिक शांति के लिए,
उस दौर में जब मनुष्य मरे जा रहा था
हथियारों से युक्त क्रांति के लिए,
भोर का समय,नीरवता लिये,
तभी देखा दो जगह रोशनी,
ना जोगन ना जोगनी,
एक जगह एक बालक ग्यारह साल का,
माथे पर लंबा तिलक,
मुस्कुराता चेहरा,
हाथ में थी आरती,
जोर जोर से गाये जा रहा था भजन,
दूसरे जगह कोई शोरशराबा नहीं,
पर बैठा था वहां भी एक बालक,
ढिबरी के अंजोर में
बार बार कुछ पढ़ रहा था,
अगल बगल बस्ता और किताबें,
बालक बुदबुदा रहा था ज्ञान विज्ञान की बातें,
भद्र पुरूष अवाक देखे जा रहा,
उन्हें लग रहा कि उस झोपड़ी से
कभी डॉक्टर,इंजीनियर,वकील,
निकल निकल आ रहा,
वह सोचने लगा कि काश यह
होता मेरा घर,
मैं करता यही बसर,
और होते ये सारे मेरे अपने,
जीवंत करते मेरे सभी सपने,
वो समझ गया कि यह शिक्षा का द्वार है,
उन्नति,प्रगति का संसार है,
उस दिन से उसने ठान लिया,
मूलमंत्र जान लिया,
कि शिक्षा देना व लेना बहुत जरूरी है,
इसके बिना दुनिया अधूरी है।
राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ छत्तीसगढ़


Share

Check Also

@लेख@ किसी भी काम हेतु हकीकत जानना जरुरी है

Share आदमी की जरुरत है रोटी कपड़ा और मकान और इसलिए ही आदमी जहाँ इंडस्ट्री …

Leave a Reply