वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला के द्वारा शिकायत करने पर थाने के स्टाफ ने की मारपीट
-विशेष संवाददाता-
कांकेर,01 नवम्बर 2024 (घटती-घटना)। अभिव्यक्ति की आजादी अब लगता है देश में बची नहीं? अपने अधिकारों पर भी अब लोग संशय में आ गए हैं,पहले व्यक्ति अपने अधिकारों को लेकर अपनी जिम्मेदारी को निभाते हुए किसी बात की सूचना दिया करता था,ताकि वह सूचना लोक सेवक ध्यान में रखकर उस मामले पर संज्ञान ले सके, पर अब सूचना देना भी गुनाह लगाने लगा है कुछ ऐसा ही मामला है इस समय सामने आया है जब कांकेर पुलिस ने एक पत्रकार को उसके दायित्वों का निर्वहन करने पर मारपीट की है,जानकारी के मुताबिक वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला अवैध सिलेंडर गोदाम में लगे आग की शिकायत करने पुलिस थाना कांकेर पहुंचे थे,सुभाष वार्ड में लोगों के लिए जान का खतरा बना अवैध सिलेंडर गोदाम कितना खतरनाक था इस बात का अंदाज शायद प्रशासन को भी ना,पर अपनी जिम्मेदारी को मानते हुए वरिष्ठ पत्रकार ने इस बात की शिकायत करने थाने पहुंच गए पर उन्हें क्या पता था कि यह शिकायत करना ही उनके लिए भारी पड़ जाएगा,जागरूक करना वह घटना की जानकारी देना ही वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला को भारी पड़ गया,इस सरकार में पत्रकारों क्यों पर हो रही बर्बरता को लेकर मामला बढ़ता ही जा,ऐसे क्या हुआ की छत्तीसगढ़ शांत प्रदेश अशांत प्रदेश कहलाने लगा,उसका कारण सिर्फ छत्तीसगढ़ में बेलगाम हुए पुलिसकर्मी ही है जो कार्यो से इस बात को साबित कर रहे हैं, उन्हें किसी की परवाह नहीं है सरकार चाहे किसी को भी वो उनकी मनमानी तो रहेगी,अंततः यह भी समझ में आ रहा है कि पुलिस वालों की मानसिकता को सुधार पाने में वर्तमान सरकार फेल है।
कमल शुक्ला ने अपने सोशल मीडिया हेंडल से लिखकर प्रदेश को जानकारी दी की कल रात मेरे साथ घटी घटना में मुझे साफ-साफ किसी षड्यंत्र की बु आ रही है जो बीजेपी पार्टी के भीतर से उठ रही है,ऐसा प्रतीत हो रहा है, मेरे साथ मारपीट होने के पहले थाने में एक फोन आया था उसके तुरंत बाद एक कांस्टेबिल उत्तेजित हो गया, लगता है कोई तो है जो पुलिस विभाग को मोहरा बनाकर गृह मंत्री के खिलाफ षड़यंत्र कर रहा है, थाने में तब कोई जिम्मेदार अधिकारी नहीं थे सब जुआ पकड़ने के लिए अपनी पूरी क्षमता दम खम के साथ लगाए हुए थे। पूरे कांकेर शहर की लाइट गोल थी, दीवाली का दिन था और आग लगने की घटना से पूरा शहर प्रभावित था। केवल मैं अकेले न्याय की बात करने के लिए थाना गया था। अब समझौते के लिए खूब दबाव बनाया जा रहा है,अब इस बुढ़ापे के समय में मुझ अंधा करने की कोशिश जो की गई है, उसको लेकर कौन-कौन से साथी समझौता करना चाहते हैं वही तय करें और कौन-कौन से साथी लड़ना चाहते हैं वह तय करें। मैं टूट चुका हूं, अपने गृहनगर में दो जवान लड़के जो मेरे बच्चे से भी कम उम्र के थे अगर वह मेरे ऊपर इस तरह से निर्ममता से हाथ उठा सकते हैं, मुझे अंधा करने की कोशिश कर सकते हैं तो मुझे नहीं लगता कि अब मेरे कोई काम करने का या जीने का भी मतलब है। यह एक वरिष्ठ पत्रकार की अंदर की आवाज थी और वर्तमान सरकार के सुशासन को कुशासन में बदलने का कृत था…शायद यह बात सरकार को समझ में ना आए पर लोग इस बात को भली-भांति समझ रहे हैं, सरकार के सुशासन को कुशासन में बदलने के लिए आखिर पुलिस विभाग क्यों आतुर है? यह भी गृह मंत्री को समझना जरूरी है साथ ही प्रदेश के भोले भाले सीधे मुख्यमंत्री को भी न्याय की दृष्टि से देखने की आवश्यकता है।