
संसार के अन्य देशों की तरह भारत में भी समय-समय पर कई प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं। असल में भारत त्योहारों का देश है। यहां पर अनेक जातियों, संप्रदायों, क्षेत्रों, रीति रिवाजों, परंपराओं तथा आस्था वाले लोग रहते हैं जो कि समय-समय पर शताब्दी से चले आ रहे त्योहारों को मनाते चले आ रहे हैं। भारत में अधिकांश त्यौहार फसलों के बोने या काटनेके बाद मनाए जाते हैं। अधिकांश त्यौहार फसलों के काटने के बाद इसलिए मनाए जाते हैं क्योंकि लोगों के पास पैसे आ जाते हैं। अतः उन्हें त्योहारों के माध्यम के द्वारा जश्न या खुशी मनाने का मौका मिल जाता है, ऐसा इसलिए क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है। ऐसा देखा गया है कि जç¸म्मीदार लोग आमतौर पर विवाह शादियां तथा त्योहारों को मनाने की परंपरा को फसलों के काटने के बाद ही करते हैं। भारत में बैसाखी, होली, दशहरा, दिवाली,तीज,लोहड़ी, भाई दूज, रक्षाबंधन, करवा चौथ,ईद,रोज़ा रखना, क्रिसमस, ईस्टर आदि त्यौहार हमारे देश के विभिन्न प्रकार के समुदायों के लोगों के द्वारा धूमधाम से मनाए जाते हैं। भारत के मनाए जाने वाले त्योहारों का अपना ही अर्थशास्त्र है। लेकिन पहले हमें देखना पड़ेगा कि अर्थशास्त्र किसे कहते हैं ,त्योहारों का अर्थशास्त्र क्या है के बारे में बात बाद में करेंगे। अर्थशास्त्र हमें बताता है कि हम लोग किस प्रकार से धन कमाते हैं और किस प्रकार से अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए खर्च करते हैं। जब वह विभिन्न प्रकार के काम जैसे खेती-बाड़ी, व्यापार, मजदूरी, कारखाने में काम करना, जमीन बेचना, इमारतों का निर्माण करना आदि के द्वारा धन कमाते हैं तो उसका कुछ हिस्सा घर गृहस्ती चलाने के लिए, खाने पीने, कपड़े, मकान, स्कूटर,कार आदि खरीदने में खर्च करते हैं और कुछ पैसे बचा कर रख लेते हैं यह सब बातें आगे अर्थव्यवस्था में कई और काम धंधों को बढ़ावा देने में काम आती है। अब देखना यह है कि हमारे त्योहारों का अर्थशास्त्र क्या है? अर्थात् वे हमारे देश की विभिन्न आर्थिक क्रियाओं को किस प्रकार से प्रभावित करते हैं। उदाहरण के तौर पर मार्च अप्रैल के महीने तक गेहूं की फसल पक कर तैयार हो जाती है और कटने लग जाती है। किसान लोगों के पास इस फसल को बेचने के बाद पैसा आ जाता है, परिणामस्वरूप बैसाखी का त्यौहार मनाया जाता है। इस त्यौहार पर किसान लोग नाचते हैं, गाते हैं, भांगड़ा डालते हैं, मेले लगते हैं, पंजाब में किसान लोग गुरुद्वारे में उत्सव मनाते हैं, पैसे खर्च करते हैं, नये कपड़े सिलवाते हैं, मेलों में कई प्रकार की चीजें बिकती हैं जिससे लोगों को रोजगार मिलता है। इसी प्रकार दशहरे की बात है। दशहरे से पहले देश के विभिन्न भागों में राम लीलाएं आयोजित की जाती हैं। इस मौके पर टेंट वाले, कुर्सियों वाले, रेहड़ी वाले, कलाकार लोग पैसा कमाते हैं। जब दशहरा आता है तब रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले बनाने को रोजगार मिलता है। जहां इन पुतलों को जलाया जाता है वहां लोगों के खाने पीने की चीजें, खिलौने,झूले आदि वाले भी मौजूद होते हैं जिन्हें रोजगार तथा आमदनी प्राप्त होती है। हमारे देश में साल में दो बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर लोग 9 दिन व्रत रखते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि वह बिल्कुल कुछ नहीं खाते , बल्कि व्रत से संबंधित और चीजें खाते हैं जिन्हें बेचने वालों को आमदनी प्राप्त होती है व्यापार को बढ़ावा मिलता है। हमारे देश में धान के काटने के बाद दिवाली का रोशनियों का त्यौहार आता है। वैसे तो हिंदुओं के सभी त्योहार एक से बढ़कर एक बड़े हैं जिन पर लोग पैसे खर्च करते हैं और जिनके कारण रोजगार, उत्पादन और आमदनी में तथा विभिन्न प्रकार के करो के द्वारा सरकारी राजस्व में वृद्धि होती है और ट्रांसपोर्टरों को भी आमदनी प्राप्त होती है लेकिन दिवाली का त्योहार हिंदुओं का सबसे बड़ा त्यौहार है जिससे गंगा जमुना संस्कृति के तहत हिंदू ,सिख ,मुसलमान आदि मिलकर मनाते हैं। दिवाली से कुछ दिन पहले अधिकांश लोग अपने घरों तथा दुकानों की मरम्मत कराते हैं, उन्हें रंग रोगन तथा सफेदी कराते हैं और दिवाली के त्योहार से कुछ दिन पहले से ही पटाखे,बम, फुलझडç¸यां आदि जलाना शुरू कर देते हैं। दिवाली से 2 दिन पहले हमारे यहां धनतेरस मनाए जाने की परंपरा है जिसके तहत लोग अपने समर्थ के अनुसार नए-नए बर्तन, चांदी तथा सोने के गहने खरीदते हैं। खरीददारों की भीड़ से दीवाली से कुछ दिन पहले से ही बाजार लोगों से खचाखच भरे होते हैं। दिवाली पर मिट्टी के दिए, मोमबत्तीयां, बम, फुलझड़ीयां, खिलौने, कागज के बने हुए सजावट के आकर्षक फूल, अपने इष्ट देव की शीशे से जड़ी फोटो, पूजा के लिए मिट्टी की बनी हुई दिवाली खरीदते हैं। करोड़ों का व्यापार होता है। दो-तीन दिन पहले बिजली से जगमगाने वाली रोशनी करने वाली लडç¸याँ खरीदी जाती हैं, लोग आपस में मिठाई तथा उपहारों का आदान-प्रदान करके एक दूसरे को दिवाली की शुभकामनाएं देते हैं। मिठाई की दुकानों पर खरीदारों की भीड़ लगी होती है। इन सब बातों से लोगों को आमदनी प्राप्त होती है। रात के समय जब दिवाली पूजन होता है तो कुछ लोग चांदी से बने श्री गणेश तथा लक्ष्मी की मूर्तियों का भी पूजन करते हैं, कुछ लोग इस दिन दीए जलाकर रोशनी करने के अलावा घरों को गेंदे तथा गुलाब के फूलों से भी सजाते हैं। दिवाली वाले दिन लोग अपने रिश्तेदारों , शुभचिंतकों, मित्रों तथा पड़ोसियों में मिठाइयां आदि का भी आदान प्रदान करते हैं। जिससे हलवाइयों का काम करने वाले दुकानदारों की चांदी हो जाती है। इसी तरह करवा चौथ, नवरात्रि, भाई दूज, रक्षाबंधन आदि त्योहारों पर भी मिठाईयों, कपड़ों का आदान-पर होता है। लोहड़ी के त्योहार पर लोग रात को अपने मोहल्ले या घरों में आग जलाकर पूजन करते हैं, गुड़ तथा चीनी की बनी रेवडç¸यां , समोसे आदि खरीदते हैं, अगले संक्रांति के दिन बुजुर्गों को कंबल अथवा लोई दिए जाने की भी परंपराहै। इसी तरह ईद, क्रिसमस, ईस्टर आदि गैर हिंदू त्योहारों पर भी लोग अपने-अपने ढंग से जश्न मनाते हैं, नए-नए कपड़े सिलवाते हैं, गरीबों को दान करते हैं क्रिसमस पर उपहार दिए जाने, चर्च में कैंडल जलाने की परंपरा है। इसदिन ईसाइयों में खूब उत्साह होता है, बच्चों के लिए झूले, खिलौने था बड़ों के लिए खरीदारी के लिए बाजार लगते हैं। सिख धर्म को मानने वाले लोग गुरुपूरब पर लंगर, जल सेवा तथा हलवे का प्रसाद बांटते हैं। इस तरह भारत में जो भिन्न-भिन्न समुदायों द्वारा जो त्योहार मनाए जाते हैं उनका अपना ही अर्थशास्त्र है जिसके मुताबिक उन्हें आमदनी तथा रोजगार मिलता है, व्यापार में वृद्धि होती है तथा सरकार को करोड़ों से आमदनी प्राप्त होती है।
प्रोफेसर शाम लाल कौशल
रोहतक ( हरियाणा)