पंजाब के एक छोटे से कस्बे धनौला में पारंपरिक रूप से लकड़ी के खिलौने बनाने वाले सैकड़ों कारीगरों की आर्थिक बदहाली परेशान करने वाली है। दशकों से ये कारीगर बच्चों के लिए लकड़ी के ट्रैक्टर, बस, कम्बाइन, ट्रॉली आदि बनाते आ रहे हैं। पहले हजारों घरों के बच्चे इन खिलौनों से खेलकर खुश होते थे जिससे इन कारीगरों के बच्चों के भरण-पोषण का रास्ता खुलता था। पर अब हालात बदल रहे हैं। धनौला के कारीगरों के बनाए खिलौने बड़ी कंपनियों के बनाए अति आधुनिक खिलौने से होड़ में पिछड़ रहे हैं। इसका नतीजा इन कारीगरों के परिवार तंगहाली के रूप में सामने है।
बरनाला और संगरूर के बीच बसे खिलौनों के लिए मशहूर धनौला के कारीगरों की यह हालत उस समय है, जब भारतीय खिलौना बाजार को संभावनाओं से भरपूर बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि देश में खिलौनों का बाजार फल-फूल रहा है।
केंद्रीय व्यापार एवं उद्योग मंत्रालय की ओर से इस साल प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि वित्तीय वर्ष 2014-15 से वित्तीय वर्ष 2022-23 के बीच हमारे देश के खिलौना उद्योग में तीव्र गति से उन्नति हुई है। यह रिपोर्ट दावा करती है कि एक ओर जहां हमारे देश से खिलौनों के निर्यात में 239 फीसदी की भारी बढ़ोतरी हुई है, वहीं दूसरी ओर आयात में 52 प्रतिशत तक की कमी आई है। यह भी दावा है कि ‘मेक इन इंडिया’ अभियान से हमारे देश का खिलौना उद्योग नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया है। खिलौना उद्योग में हमारी प्रगति से चीन को झटका लगा है। जैसा कि इस रिपोर्ट में कहा गया
-अमरपाल सिंह वर्मा-
धनौला पंजाब
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