वैसे तो जीभ बोलती हैं
पर यदि ये सोचती होती
तो सोचती कि. ……
कितना बोलता है इंसान
भला -बुरा न जाने क्या -क्या
मुझसे कहलवा जाता है इंसान।
ईर्ष्या ,नफरत से भरा हो,
पर मुझसे मिश्री सी बातें कहलवाता है ।
हँसी, मजाक कभी यूँ ही बेमतलब
बोलता जाता है ।
ईश भजन तो ये मुझसे
मतलब से करवाता है ।
वरना ये तो हर समय मुझसे
स्वार्थ ही पूर्ण करवाता है ।
बोलती तो मैं हूँ पर
सोचती हूँ कि. …..
ये दोहरा व्यक्तित्व कैसे
जी लेता है इंसान।
गरिमा राकेश गौतम
कोटा(राजस्थान)
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