सूरजपुर,@सूरजपुर दोहरे हत्याकांड की कहानी सुलझ गई या अनसुलझी रह गई?

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ओंकार पाण्डेय –
सूरजपुर,17 अक्टूबर 2024 (घटती-घटना)। छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में जो घटना 14 अक्टूबर २०२४ को हुई वह घटना काफी हृदय विदारक थी यह घटना कभी ना भूली जा सकने वाली घटना है, इस घटना में किसी आम आदमी की नहीं एक पुलिसकर्मी की पत्नी व उसकी बच्ची की हत्या हो जाती है और यह हत्या करने वाला कोई और नहीं शहर का कबाड़ी होता है और उसके साथ एक राजनीति दल से जुड़े बड़े पदाधिकारी होते हैं, भले ही इस मामले में सभी आरोपी पकड़े गए और न्यायालय में भी वह पेश कर दिए गए लेकिन पूरे घटनाक्रम के पीछे की कहानी पुलिस की प्रेस विज्ञप्ति में भी साफ नहीं हो पाई,कहानी अभी भी सलझी है या अनसुलझी है यह कहना सभी का है,कहानी सुलझकर भी उलझी हुई है ऐसा अब कहा जाने लगा है क्योंकि आरोपियों को पकड़े जाने के बाद भी कई सवाल अभी भी खड़े हैं, जिसका जवाब आज भी लोग जानना चाहते हैं। पुलिस की कार्यवाही पुलिस परिवार को न्याय दिलाएगा या फिर इतिहास आरोपी या कबाड़ी को न्याय दिलाएगी या उसके साथियों सहयोगियों को न्याय दिलाएगा जो इसमें इस वारदात में उसके बराबर के सहभागी थे? यह तो समय के गर्भ में है। फिर भी जिस तरह की जल्दबाजी पुलिस की इतने बड़ी घटना में आरोपियों को न्यायालय में पेश करने व उन्हें जेल भेजने की दिखी उसके बाद यह सभी का कहना है कि बहुत कुछ इस मामले में ऐसा था जिसका की खुलासा पुलिस को प्रेस विज्ञप्ति में करना था। किन बड़े नेताओं का संरक्षण प्राप्त था आरोपियों को और किन किन किन के आरोपी संपर्क में थे? यह खुलासा होना जरूरी था किन पुलिसकर्मियों की शिकायत सामने आई जिनकी जांच के लिए दो जिले पुलिस अधिकारी एक हफ्ते में जांच कर सच्चाई सामने लाने आदेशित किए गए? यह भी स्पष्ट नहीं कर पाए आईजी सरगुजा। बड़ी हड़बड़ाहट में प्रेस कॉन्फ्रेंस किया गया क्यों दो दो पुलिस परिवार के परिजनों का हत्या ही अंतिम मानसिकता बना अपराधियों का और किसे किसने अपराध के लिए बुलाया या सभी साथ थे एक राय थे यह बहुत कुछ विषय है जो सामने लाना था पुलिस को।
क्या पुलिस ने बलरामपुर से आरोपी की वापसी बताकर आरोपी को बचने का रास्ता दिया?
पूरे मामले में खासकर हत्या मामले में अब एक आरोपी ही शामिल था यह बात या सन्देह समाप्त हो गया। मामले में अन्य दो आरोपी भी मुख्य भूमिका में थे हत्या के दौरान वह एक राय थे यह पुलिस की विवेचना अनुसार सामने आई बात है लेकिन एक आरोपी जिसे पहले मुख्य और एक मात्र आरोपी माना जा रहा था वह गिरफ्तार बलरामपुर से हुआ और उसकी गिरफ्तारी और उसके सुरजपुर वापसी का पूरा यौरा सोशल मीडिया और पुलिस की विवेचना में लिखी गई है और क्या ऐसा इसलिए किया गया जिससे वह बाद में बच निकले। वैसे मामले में जितने मुंह उतनी बांते लोगों का कहना है कि आरोपी की गिरफ्तारी बलरामपुर से होना और वहां से सुरजपुर लाए जाने का प्रचार पुलिस ने भी खूब किया और यह कहीं न कहीं हो सकता है उसे बाद में बचाव का मार्ग मिल सके ऐसा सहायक साबित हो।
पुलिस ने तो दिखाई मानवता और आरोपी के परिवार को बचाया पर क्या आरोपी का परिवार भी दिखा पाएगा मानवता?
पुलिस ने अपनी मानवता का परिचय दिया और उग्र और आक्रोशित शहर के लोगों से आरोपियों के घर और परिवारवालों को पुलिस ने बचाया और सुरक्षित रखा,वहीं क्या अब आरोपियों के परिजन भी मानवता दिखाएंगे और वह आरोपियों के लिए कठोर दंड की मांग करेंगे क्या वह उन्हें आर्थिक या किसी भी तरह की मदद न करते हुए सजा कठोर सजा का भागी बनाने में पुलिस की मदद करेंगे। वैसे अब यह देखने वाली बात होगी कि क्या आरोपियों के परिजन आरोपियों का बहिष्कार कर उन्हें समाज के लिए हमेशा के लिए खतरा मानेंगे। वैसे यदि वह ऐसा कर जाते हैं तो यह एक मिशाल होगी और आगे से फिर अपराध भी कम होगा।
आरोपियों के चेहरे पर बिल्कुल भी नहीं नजर आई सिकन
पूरे मामले के सभी आरोपियों को जब पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सामने किया मीडिया के लोगों के सामने तब यह बिल्कुल नजर नहीं आया कि वह कोई भी शिकन चेहरे पर लाए हों उन्हें कोई अफसोस हो…कोई मलाल हो या उन्हें ग्लानि या भय हो। सभी एकदम निश्चिंत नजर आए और अपराध की गंभीरता से भी वह अनभिज्ञ नजर आए। कुल मिलाकर पेशेवर अपराधियों को भी उन्होंने पीछे छोड़ दिया अपनी भाव भंगिमा से उन्होंने यह साबित किया कि वह बिल्कुल निडर हैं और कोई फर्क फिक्र उन्हें नहीं है।
जो जिलाध्यक्ष आरोपी को पदाधिकारी ना होना बता रहा था वही निकला आरोपी
कांग्रेस के आनुषंगिक छात्र संघ एनएसयूआई के जिलाध्यक्ष सुरजपुर सी के चौधरी का खुद अपराध में शामिल होना सभी को आश्चर्य कर गया। अपराध घटित होने के दिन वह भी दो दो शवों के बरामद होने के बाद भी जिलाध्यक्ष एनएसयूआई सी के चौधरी सोशल मिडिया में यह बयान दे रहा था कि कुलदीप साहू का एनएसयूआई से कोई लेना देना नहीं है और वह किसी पद में नहीं है वहीं जब अपराध का खुलासा हुआ तो यह सामने आया कि वह खुद अपराधी है वह भी मुख्य। वैसे छात्र संघ के पदाधिकारी का ऐसा अमानवीय रूप सामने आना छात्र संघों के लिए भी विचारणीय है वहीं यह उन दलों के लिए भी विचारणीय है जिनके वह आनुषंगिक हैं। जब उनके छात्र नेता ही अमानवीय उदाहरण प्रस्तुत करेंगे तो आगे की कड़ी कैसे बनेगी समझा सकता है।
पूरे वारदात को अंजाम देने के बाद सभी साथी आम आदमी की तरह पुलिस के आगे पीछे घूमते रहे…
पूरी घटना और वारदात के बाद यह देखने को मिला कि आरोपी सभी निश्चिंत घूमते रहे वहीं केवल एक ही आरोपी को लेकर पुलिस भी दौड़ भाग करती रही जबकि अन्य सभी पुलिस के ही आगे पीछे घूमते रहे। पुलिस को भी तब पता चला कि आरोपी कई हैं और अन्य आराम से उनके ही आगे पीछे घूम रहे हैं जब कुलदीप साहू पकड़ा गया।
क्या अपने ही पुलिसकर्मी के लिए अधिकारी बड़ा निर्णय नहीं ले पाए?
पुलिस विभाग साथ ही सरगुजा आईजी खुद पूरे मामले में डटे रहे यह पुलिस विभाग बताता चला आता रहा कुलदीप साहू की गिरफ्तारी तक, वही जब प्रेस ब्रीफिंग हुई तब भी वह खुद प्रेस को संबोधित करते नजर आए लेकिन पूरी ब्रीफिंग यह बता गई कि पुलिस मजबूर थी अपराधियों के सामने। देखा जाए तो इस मामले मे पुलिस अपने ही विभाग के पुलिस कर्मी के पक्ष में कम नजर आई पटाक्षेप कर कानून व्यवस्था कायम करने के पीछे ही उसका पूरा ध्यान रहा! न पकड़े गए जघन्य अपराध के आरोपी ही उस तरह से नजर आए की कहा जा सके कि उनसे पुलिस की पूछताछ पुलिसिया रही । कुल मिलाकर अपने ही परिवार के मामले में पुलिस केवल किसी तरह बस पल्ला झाड़ती नजर आई जबकि यही पुलिस तब अक्रामक होती है जब इन्हें यह आदेश मिल जाता है कि कहीं घर उजड़ना है और वहां कानून व्यवस्था के लिए तैनात रहना है।
पहले दिन पुलिस का रुख था अलग फिर दूसरे दिन पुलिस का रुख कैसे बदला?
हत्याकांड के दिन सरगुजा संभाग की पुलिस आईजी सरगुजा के निर्देश और नेतृत्व में जिस तरह सक्रिय नज़र आई वही पुलिस अपराधियों की गिरफ्तारी के बाद क्यों सुस्त हुई यह सवाल भी उठ रहे हैं। लोगों का कहना है सब कुछ इसमें भी सेट कर ले गई पुलिस यह उनका सोशल मीडिया अकाउंट कह रहा है कि सेटिंग कर ली गई वहीं अब यदि लोगों का आरोप सही है तो यह काफी निंदा योग्य विषय है
जान बचाकर भागने वाला कबाड़ी आखिर झारखंड से क्यों लौटा क्यों अपना लोकेशन ऑन किया?
वैसे जब पूरे मामले मे शामिल एक आरोपी को पुलिस पकड़ चुकी थी जिसका नाम सीके चौधरी था और वह कुलदीप के साथ पूरे हत्याकांड में शामिल था उसके बावजूद पुलिस खुलासा क्यों नहीं कर रही थी क्यों कुलदीप का इंतजार कर रही थी। वहीं जो कुलदीप जान बचाकर प्रदेश से भाग चुका था वह क्यों एक सवारी बस से लौट रहा था। देखा जाए तो यही समझ में आ रहा है लोगों के जो वह सोशल मीडिया मेंअपने उदगार स्वरुप लिख भी रहे हैं कि कुलदीप का वापस आना ही एक प्रयोग है जहां उसे बचाया जाना ही एक निर्देश है।
क्या पुलिस कर्मी के परिवार के हत्या में भी हो रही राजनीति… क्या वोट बैंक के राजनीति को लेकर सरकार ने नहीं अपनाया कड़ा रुख?
कुलदीप साहू एक बड़ी जाती समुदाय से ताल्लुक रखता है। आज इस समुदाय की प्रदेश में निर्णायक भूमिका को लेकर कोई इनकार कर सके ऐसा संभव नहीं है। एक बड़े वोट बैंक समुदाय से ताल्लुक रखने के कारण कुलदीप को अभयदान मिल रहा है इस जघन्य अपराध उपरांत यह भी लोग कहने लगे है। कुल मिलाकर क्या सरकार ही मामले मे जरा शिथिल हुई और आरोपियों अपराधियों को कहीं न कहीं संरक्षण मिला कुछ मामले में यह कहना गलत नहीं होगा।
पुलिस का नजर में कहानी सुलझ गई जनता की नजर में कहानी उलझ गई?
सुरजपुर एक प्रधान आरक्षक की पत्नी और पुत्री की हत्या मामले में पुलिस ने काफी तत्परता दिखाते हुए अपराधियों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया यह उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बता दिया। आरोपियों की गिरफ्तारी और उसने उनका जुर्म कबूल करवाकर ही पुलिस ने उन्हें जेल भेजा और न्यायालय में पेश कर जेल भेजने का रास्ता तय किया। पुलिस ने यह साबित किया कि उन्होंने जल्द ही मामले को सुलझा लिया और आरोपी अब सलाखों के पीछे हैं वहीं लोगों की बात को यदि सुने तो कहानी मामले में अनसुलझी रह गई है। हत्या साथ ही हत्या उपरांत का आरोपियों का शवों को अन्यत्र ले जाकर फेंकने का कृत्य क्यों उन्होंने किया यह स्पष्ट नहीं किया गया? आरोपियों में से प्रहार किसने किया और हत्या की असली योजना तत्काल में ही सही किसने बनाई यह भी नहीं बताया गया विज्ञप्ति में? देखा जाए तो काफी जल्दबाजी में दिखाई दी पुलिस की कार्यवाही?
पुलिस अब कितना सबूत इकट्ठा कर सकती है अपने प्रधान आरक्षक को न्याय दिलाने के लिए
पूरा मामला अब शांत होने को है पर इस मामले के बीच यदि उम्मीद है तो वह उस प्रधान आरक्षक को जो अपने ही विभाग से यह उम्मीद लगाए बैठा है कि उसे न्याय मिल जाए, अब इस मामले में अधिकारी वह भी विवेचना अधिकारी से उम्मीद होगी कि कितना अधिक से अधिक सबूत इकट्ठा कर आरोपी को सजा के दरवाजे तक ले जा पाते हैं विवेचक ,क्योंकि अब सारी चीज ईमानदारी से आरोपी को सजा तक ले जाने की कार्यवाही पर ही टिकी हुई है क्योंकि अब पुलिस क्या करेगी इससे अब जनता को कोई लेना-देना नहीं है अब सिर्फ समय उस दिन का इंतजार करेगा जिस दिन पुलिस अपने प्रधान आरक्षक को न्याय दिलाने के लिए आरोपी को सजा दिला पाएगी भले ही आरोपी पर 3 अपराध दर्ज किए गए हैं गंभीर धाराओं के तहत दर्ज किए गए हैं पर तीनों अपराधों को सजा तक पुलिस कैसे पहुंचाएगी यह इनके विवेचना व सबूत पर टिका है? यदि पुलिस सजा नहीं दिला पाई तो मान कर चलिए की छत्तीसगढ़ के इतिहास में एक और पुलिस की नाकामी के रूप में यह मामला दर्ज हो जाएगा जो अपने ही विभाग के कर्मचारियों को न्याय नहीं दिला पाया ऐसा साबित होगा?
सूरजपुर कांड…कुछ सवाल
1-जिला बदर अपराधी को खुले में घूमने की हिम्मत कहां से मिली?
2-तालिब शेख के अलावा अन्य किसी पुलिस वाले से उसकी दुश्मनी थी क्या?
3- क्या कुलदीप को पता था कि तालिब घर पर नहीं है? यदी हां तो यह जानकारी कहां से मिली?
4-अशोक कबाड़ी को इतना फलने-फूलने का मौका किसने दिया।
5- क्या यह सच है कि इसके पहले भी थाने में कुलदीप एक टी आई को थप्पड़ मार चुका था?
6- क्या बिना पुलिस मदद के कबाड़ का इतना बड़ा व्यवसाय संचालित किया जा सकता है?
7- क्या कुलदीप के साथ पुलिस वालों की भी मिली भगत हो सकती है?
8-अपराधी कुलदीप वापस गढवा से किस मकसद से आ रहा था। क्या यह संभव है कि जंहा वह इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे चुका है एवं शहर में गुस्सा उफान पर है वहीं वह वापस आए?
9-पुलिस को यदि यह पता था कि कुलदीप वापस आ रहा है तो पुलिस ने बस को फालो क्यूं नहीं किया?
10-क्या पुलिस ने सुनियोजित तरीके से कुलदीप को इनकाउंटर से बचाने के लिए समर्पण कराया जिसे गिरफ्तारी का नाम दिया जा रहा है।
12- क्या साहू समाज का बड़ा वोट बैंक भाजपा के साथ होने के कारण राजनैतिक एवं सामाजिक दबाव के कारण केस हल्का तो नहीं किया जा रहा।
14-पुलिस के छोटे सिपाहियों साथ-साथ बड़े स्तर के पुलिस अधिकारी की भी संलिप्तता की जांच होगी क्या?
15-कंही ऐसा तो नहीं पूरी घटना में लीपापोती हो जाए एवं अपराधी कुछ साल बाद बरी हो जाए?
मामले से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण सवाल
1: जिस पुलिसकर्मी पर उबलता हुआ तेल फेंका गया उस समय आरोपी के साथ कौन-कौन था घटना में कौन-कौन शामिल थे?
2: आरोपी ने आखिर पुलिसकर्मी पर तेल क्यों फेंका ऐसा करने के पीछे उसकी मंशा क्या उसे मारना था या फिर पुलिस को डराना मात्र था?
3: पुलिस को ही आरोपी ने टारगेट क्यों बनाया?
4: पुलिस पर गाड़ी चढ़ाने के दौरान गाड़ी में कौन-कौन से आरोपी सवार थे?
5: जब आरोपी की तालिब से दुश्मनी थी और तालीब थाने के सामने खड़ा था तो फिर आरोपियों ने तालिब के घर का रुख क्यों किया?
6: क्या आरोपी ठान चुके थे कि प्रधान आरक्षक की पत्नी व बच्ची को मारना ही है,इस वजह से वह उसके गैर उपस्थित में उसके घर गए?
7: क्या आरोपियों में से एक का पिता जो पुलिस की पकड़ से था दूर क्या उसी ने ही पूरे मामले को सेट कर दिया?
8: मुख्य आरोपी बाहर भाग रहा था या वापस सूरजपुर आ रहा था यह भी बात हास्यपद लग रही?
9: क्या इसके वापसी आने की बात कहीं पूरे मामले में बच निकलने की गुंजाइश तो नहीं?
10: आखिर बलरामपुर वापस क्यों आ रहा था ऐसा लग रहा था कि वह आरोपी नहीं कोई व्यक्ति कहीं से घूम के आ रहा हो।
11: क्या अन्य आरोपी जो इसके साथ कांड में शामिल थे वह लोगों को चकमा देने के लिए सभी आमजनों के सामने घूम रहे थे पुलिस को गुमरहा करने के लिए?
12: जो जिलाध्यक्ष सोशल मीडिया पर बता रहा था कि कुलदीप उसकी पार्टी का नहीं आखिर वही कुलदीप के साथ हत्याकांड में शामिल था कैसे?


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